60 दिन में निबटेंगे फैसले, अब नहीं फंसेगी रकम

Monday, Sep 19, 2016 - 01:48 PM (IST)

भोपालः रियल एस्टेट बिल 2016 प्रापर्टी बाजार से जुड़े हर पक्ष के लिए राहत लेकर आ रहा है। बिल पास होने के बाद हर राज्य में रेग्यूलेटरी अथॉरिटी गठित की जाएगी। अथॉरिटी में मंजूरी के बाद प्रापर्टी के लेन-देन के हर विवाद पर 60 दिन में फैसला आएगा।

इससे बिल्डिंग प्रोजेक्ट और रजिस्ट्री पर लगने वाली अनावश्यक रोक और विलंब की स्थिति नहीं बनेगी। निवेशकों और बिल्डर्स के लिए ये प्रक्रिया विवाद खत्म करने का पहले से सरल माध्यम बनेगी। बिल्डर्स के लिए बिल तमाम राहतों के साथ स्थाइत्व भी पैदा करेगा। नियमों की सख्ती के बाद अब प्रापर्टी बाजार में केवल बिग शॉट्स ही टिक सकेंगे। इससे प्रतिस्पर्धा कम जो जाएगी। प्रोजेक्ट की बुकिंग लेने से पहले बिल्डर्स को जमीन की खरीदी और बिल्डिंग परमिशन की एनओसी जैसी तमाम औपचारिकताएं पहले ही पूरी करनी होंगी।

ऐसी होगी व्यवस्था
- राज्यों में रियल एस्टेट कारोबार पर अथॉरिटी की नजर रहेगी। ग्राहक और बिल्डर्स के बीच विवाद के सभी मामले यहां सुने जाएंगे।
- खरीदारों और बिल्डरों के बीच लेन देन की निगरानी होगी। राज्य स्तर पर रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी इसे गवर्न करेगी।
- बुकिंग की 70 प्रतिशत राशि को अलग खाते में रखना होगा। इसका इस्तेमाल केवल प्रोजेक्ट पर किया जा सकेगा।
- समय सीमा में प्रोजेक्ट पूरा नहीं होने पर ग्राहकों को बिल्डर्स ब्याज देंगे।
- एकमुश्त कैपिटल लगाने और बुकिंग से पहले तमाम एनओसी जुटाने जैसी शर्तों को पूरा करने के लिए बड़े समूह बचेंगे जिससे प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी।
- रियल एस्टेट बिल की शर्तें पूरी करने पर वित्तीय संस्थाएं भरोसे की नजर से देखेंगी। रिस्क रेशो घटेगा और लोन मिलने में आसानी होगी।
- जमीन और एनओसी की झंझट बुकिंग से पहले ही निपटने से प्रोजेक्ट समय पर पूरे होंगे और लागत जल्दी वसूल हो जाएगी।
- प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए ज्यादातर मझौंले बिल्डर्स भूस्वामी से अनुबंध के आधार पर जमीन का दाम चुकाए बगैर शुरूआती अनुमतियां जुगाड़कर कंस्ट्रक्शन शुरू कर देते हैं।
- लुभावने ब्रोशर तैयार कर इन प्रोजेक्ट पर बुकिंग लेने का काम शुरू हो जाता है। इससे ही निर्माण चलता रहता है।
- पर्याप्त रकम जमा होने पर जमीन के दाम चुकाए जाते हैं और रजिस्ट्री नामांतरण की कार्रवाई पूरी होती है।
- बुकिंग के बाद यदि कंस्ट्रक्शन रुक गया तो आगे की किस्तें निवेशक नहीं देते ऐसे में रकम फंस जाती है।

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