सेलिब्रिटी शेफ से बन गए सोशल वर्कर

punjabkesari.in Monday, Jan 19, 2015 - 12:20 PM (IST)

एक वक्त था, जब वह 5 स्टार होटल के सेलिब्रिटी शेफ थे। स्विट्जरलैंट में एलीट जॉब के लिए उनका नाम चुना जा चुका था, लेकिन यूरोप रवाना होने से पहले वह अपने शहर मदुरै गए और उनकी जिंदगी बदल गई। नारायणन कृष्णन सब कुछ छोड़कर एक हफ्ते के भीतर सोशल वर्कर बन गए।

बदल गया जीवन का लक्ष्य

साल 2002 का यह वाक्या है। नारायणन कृष्णन के लिए दोहरी खुशियों का समय था। वह अवॉर्ड विनिंग शेफ तो पहले ही बन चुके थे, उन्हें स्विट्जरलैंट में बड़े पैकेज पर जॉब के लिए भी चुन लिया गया। वह यूरोप जाने की तैयारियों में थे, पर उसके पहले परिवार के साथ खुशियां मना लेना चाहते थे। वह मदुरै (तमिलनाडु) पहुंच गए। परिवार के बीच खुशियों का मजा दोगुना हो गया। कुछ वक्त निकाल कर वह शहर के ही एक मंदिर के लिए निकले थे। रास्ते में एक पुल के नीचे का दृश्य देखकर उनका दिल-दिमाग सुन्न हो गया। उन्होंने एक लाचार और भूखे बुजुर्ग को अपना मल खाते देखा। वह वहीं रुक गए और खाने का इंतजाम कर उस बुजुर्ग को खिलाने लगे। इस घटना से उनकी जिंदगी का लक्ष्य बदल गया। उन्होंने बेसहारा और मानसिक रूप से कमजोर ऐसे लोगों की मदद करने की ठान ली, जो खुद अपनी देखभाल नहीं कर सकते।

अक्षय ट्रस्ट की स्थापना

नौकरी और यूरोप जाने का ख्याल छोड़कर उन्होंने ‘अक्षय’ ट्रस्ट की स्थापना की। आज नारायणन और उनकी टीम रोजाना शहर के सैकड़ों लोगों की भूख मिटाती है, मानसिक रूप से बीमार बुजुर्ग और लाचार खास तौर पर इनमें शामिल हैं। उनके दिन की शुरूआत सुबह 4 बजे से होती है। दान में मिली वैन में नारायणन और उनकी टीम के लोग मीलों का सफर करते हैं। गलियों-नुक्कड़ों पर वे गर्मागर्म खाना बांटते जाते हैं। वह कहते हैं, ‘मानसिक रूप से बीमार बहुत से लोग गरीबी के चलते सड़कों के किनारे अपने हाल पर छोड़ दिए जाते हैं। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता।’ वह अपने साथ कंघी, ब्लेड और रेजर लेकर चलते हैं। बुजुर्गों की भूख मिटाने के साथ ही वह उनकी शेविंग और हेयर कट भी करते हैं।

समर्पित कर दिया जीवन

नारायणन अपनी सारी कमाई ‘अक्षय’ ट्रस्ट में लगा चुके हैं। दान की रकम से ट्रस्ट का संचालन होता है, पर यह रकम इतनी नहीं होती कि आसानी से लाचार-बेसहारा लोगों का पेट भरा जा सके। खुद को ट्रस्ट के काम में समर्पित कर चुके नारायणन बताते हैं, ‘मुझे पढ़ाने में माता-पिता ने बहुत तकलीफें उठाई। उन्होंने बहुत खर्च भी किया।’ वह बताते हैं, ‘एक बार मैंने अपनी मां से कहा कि वह आकर देखें कि मैं क्या कर रहा हूं, घर लौटने के बाद उन्होंने कहा कि तुम दूसरों का पेट भरते हो, बाकी जिंदगी हम तुम्हारा पेट भरते रहेंगे। इसके बाद से माता-पिता ही मेरा जिम्मा उठा रहे हैं।’ हालांकि, पिछले साल उनके ट्रस्ट के साथ बड़ा विवाद भी जुड़ा। कुछ महिलाओं ने ट्रस्ट के कई स्टाफ पर यौन प्रताडऩा का आरोप जड़ा था, जिस पर मद्रास हाईकोर्ट ने जांच के आदेश दिए थे।


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