सेव बर्ड : कहीं इतिहास न बन जाए चिडिय़ा और ‘चहचहाहट’

punjabkesari.in Sunday, Dec 09, 2018 - 03:01 PM (IST)

सिरसा(ललित): आसमां में चूं-चूं करने वाली चिडिय़ा रानी अब बहुत कम ही दिखाई देती है। चिडिय़ा रानी की चहकने की आवाज सुनने को कान तरस जाते हैं। चिडिय़ों की लगातार कम हो रही संख्या के कारण ही ऐसा हो रहा है। कभी हर रोज सुबह-सवेरे उठकर पेड़ की डाल पर चिडिय़ा रानी शोर मचाया करती थी, जिससे लोगों की नींद खुली जाती और वह जाग जाते थे। अब वह शोर भी सुनाई नहीं देता। चिडिय़ा रानी के साथ-साथ बहुत से ऐसे पक्षी हैं जिनकी संख्या पहले की बजाय काफी कम हो गई है। अब वो पक्षी कभी-कभार ही दिखाई पड़ते हैं।

इन पक्षियों की गणना न होने के कारण इनके लुप्त होने का सही आंकड़ा तो वाइल्ड लाइफ विभाग किसी के पास नहीं है। इसलिए अनुमानित है कि पक्षियों की संख्या पहले की बजाय निरंतर घटती जा रही है। पहले सुबह-सवेरे व शाम के समय पक्षियों के झुंड आसमां में उड़ते हुए दिखाई दिया करते थे, अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। प्रकृति के साथ मनुष्य के द्वारा की गई छेड़छाड़ ने मानवजाति के साथ-साथ पशु-पक्षियों की प्रजाति को नुक्सान पहुंचाया है।

रेडिएशन का पड़ता है प्रभाव
अध्ययन में यह सामने आ चुका है कि टावर से निकलने वाले रेडिएशन का मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण आदमी को कैंसर सहित अन्य बीमारियां होने की संभावना अधिक रहती है। पक्षियों की संख्या घटने का एक कारण रेडिएशन का प्रभाव भी माना जा रहा है। क्योंकि यह माना जा रहा है कि रेडिएशन का अगर दुष्प्रभाव आदमी के स्वास्थ्य पर पड़ता है तो पक्षियों पर भी जरूर पड़ेगा। विशेषज्ञ तो यही मानते हैं कि रेडिएशन के प्रभाव से यह स्थिति हुई है जिसकी वजह से पक्षियों की संख्या निरंतर घट रही है।

मोबाइल टॉवर से निकलने वाले रेडिएशन पक्षियों को बीमार करते हैं। उनके मस्तिष्क व प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालते हैं। शहरी क्षेत्रों में जहां मोबाइल टावरों की संख्या ज्यादा है उन क्षेत्रों में पक्षियों की संख्या अधिक घटी है और कई क्षेत्रों में तो इनकी संख्या अब न के बराबर रह गई है। अभी नाइजीरिया में 5-जी टेस्टिंग के दौरान हुई 297 पक्षियों की जो मौत हुई है, उसको लेकर यह माना जा रहा है कि टेस्टिंग के दौरान यह रेडिएशन का ही प्रभाव है। रेडिएशन के प्रभाव से बेजुबान पक्षी तड़प-तड़पकर अकाल मौत का शिकार हुए हैं।

वृक्षों की अंधाधुंध कटाई पर लगे रोक आधुनिकरण व विकास की दौड़ में मानव काफी आगे निकल गया है। मनुष्य ने कच्चे मकानों की जगह पक्के मकान बना लिए हैं। इन कच्चे मकानों में चिडिय़ा रानी अपने घौंसले बनाकर रहा करती थी। वह दाना चुगकर लाती और घौंसले में आकर विश्राम किया करती। कच्चे मकानों में चिडिय़ा आसानी से घौंसला बना लेती और उसमें वह सुरक्षित महसूस किया करती। अब कच्चे मकान नहीं रहे। पक्षियों को आशियाना बनने की जगह पेड़ों पर भी नहीं मिल पा रही। पेड़ों की कटाई निरंतर जारी है। बरगद, पीपल सहित जिन पेड़ों पर पक्षी घौंसला बनाना पसंद करते हैं, उनकी संख्या अब बहुत कम हो गई है।

पक्षियों को अपने आशियाने के लिए सुरक्षित जगह नहीं मिल पा रही। वहीं, ऋतु बदलने के दौर में प्रवासी पक्षियों ने भी हमारे इस क्षेत्र में आने से दूरी बना ली है। इस सीजन तक प्रवासी पक्षियों की बहुत-सी प्रजातियां इस क्षेत्र में दिखाई दिया करती थीं। जिला में खासकर ओटू झील के क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों की बहुत-सी प्रजातियां दिखाई देती थीं, अब ऐसा नहीं है। इक्का-दुक्का ही प्रवासी पक्षी अब इस क्षेत्र में आते हैं।

पक्षीराज ने ‘सेव बर्ड’ का दिया संदेश हाल ही में अक्षय कुमार की रिलीज हुई मूवी 2.0 रोबेट में इस मुद्दे को उठाया गया है। इस मूवी में सेव बर्ड का संदेश देते हुए पक्षी राजन अक्षय कुमार का कहना है कि सैलफोन का पमता पर प्रभाव पडऩे के प्रयोग करने वाला हर व्यक्ति पक्षियों का हत्यारा है। अगर हम पक्षियों को बचाना चाहते है तो हमें सैलफोन का प्रयोग बंद कर देना चाहिए या कम से कम करना चाहिए। मूवी के अंदर पक्षी राजन अक्षय रेडिएशन के प्रभाव को पक्षियों की मौत की सबसे बड़ी वजह बताते हैं। मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन पक्षियों के मस्तिष्क और प्रजनन क्षमता पर सीधा प्रभाव डालते हैं। जिससे उनकी मौत हो रही है। प्रजनन क्षारण पक्षी जो अंडा देते हैं वह कमजोर हो जाता है जिसकी वजह से अंडा शीघ्र ही टूट जाता है।

लीलू राम, वाइल्ड लाइफ इंस्पैक्टर
‘छोटी चिडिय़ा अब आसमां में दिखाई नहीं देती। बहुत ही कम यह देखने को मिलती है। कुछ वर्ष पूर्व तो चिडिय़ों के चहचहाने की आवाज सबको सुनाई दिया करती थी, धीरे-धीरे सब गायब हो रहा है। विभाग की ओर से पक्षियों की कोई गणना नहीं करवाई जाती, इसलिए यह बताना बड़ा मुश्किल है कि इनकी संख्या कितनी थी। संख्या घटी है या नहीं। चिडिय़ा सहित पक्षियों की और भी प्रजातियां हैं जो अब दिखाई नहीं देती। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पक्षियों की संख्या घट रही है। पक्षियों की संख्या घटने के कई कारण है। अब कच्चे मकान नहीं रहे। पेड़ की कटाई होने से जंगल खत्म होते जा रहे है। जिसका नुक्सान पक्षियों को उठाना पड़ रहा है। ’


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Deepak Paul

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