दिन ढलते ही घरों में सिमट जाती है ‘टापू’ के लोगों की जिंदगी

punjabkesari.in Sunday, Dec 09, 2018 - 04:08 AM (IST)

लसिआण गांव के बिल्कुल करीब से गुजरती है पाकिस्तान की सीमा। यह गांव 7-8 ऐसे गांवों में शामिल है जो उस टापू जैसे क्षेत्र में स्थित है जिसे दो तरफ से दरियाओं तथा एक ओर से सीमा ने घेरा हुआ है। लसिआण के तो तीन तरफ से सीमा गुजरती है। गांव की आबादी से महज 500 मीटर दूर सीमा पर तार वाली बाड़ लगी हुई है और उसके अंदर गांव के बहुत से किसानों की जमीन है। युद्ध के दिन नहीं हैं और इस क्षेत्र से आतंकियों की घुसपैठ की आशंका भी बहुत कम है, फिर भी गांव के लोगों में हर समय सहम तथा चिंता की स्थिति बनी रहती है। 

लोगों के चेहरों पर डर तथा चिंता की लकीरें स्पष्ट पढ़ी जा सकती हैं। एक कारण तो यह भी है कि देश के विभाजन के समय से ही पाकिस्तान के साथ संबंध सुखद नहीं रहे तथा दूसरा कारण आतंकवाद है जिसने अतीत में पंजाब सहित भारत के कई राज्यों का बहुत नुक्सान किया है। किसान जब भी तार-बाड़ तथा सीमा के बीच स्थित जमीनों पर खेती करने के लिए जाते हैं तो पहले बी.एस.एफ. के अधिकारियों से इजाजत लेनी पड़ती है। उस जमीन में वे अपनी मर्जी की फसल नहीं बीज सकते। यही कारण है कि तार-बाड़ के भीतर  कहीं भी गन्ने की फसल दिखाई नहीं देती, जबकि बाकी जमीन में गन्ने को प्राथमिकता दी जाती है। 

‘पंजाब केसरी’ की राहत वितरण टीम के सदस्यों ने देखा कि लसिआण के खेतों में जगह-जगह पर बंकर बने हुए हैं, जो बताते हैं कि युद्ध के दिनों में यहां कैसी स्थिति होती होगी। सेना का सबसे पहला कार्य यह होता है कि क्षेत्र के गांवों को खाली करवा लिया जाता है। इन लोगों को अपने परिवारों सहित रावी के पार गुरदासपुर या अन्य क्षेत्रों में सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ती है। पंजाब तथा देश के बाकी हिस्सों के साथ इस क्षेत्र का सम्पर्क सामान्य जैसा नहीं है। लोग अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए ही दीनानगर, गुरदासपुर आदि जाते हैं या किसी खुशी-गमी की स्थिति में अन्य स्थानों पर रहने वाले रिश्तेदारों के पास आना-जाना होता है। लोग दिन के समय ही काम-धंधे निपटा कर अपने घरौंदों में लौट आते हैं। सूर्य ढलते ही जिंदगी घरों में सिमट कर रह जाती है। 

इस क्षेत्र के गांव दो विधानसभा हलकों से संबंधित हैं। कुछ गांव पठानकोट जिला के विधानसभा हलका भोआ तथा कुछ गुरदासपुर जिले के दीनानगर से संबंधित हैं। लोगों को शिकायत है कि राजनीतिक लोग तो वोटों के समय भी इन गांवों के साथ पूरा सम्पर्क नहीं रखते, चुनावों के बाद किसने पूछना है? लोगों का सामाजिक जीवन अपने गांवों तथा विवाह-शादियों आदि तक ही सीमित है। नशों तथा लड़ाई-झगड़ों का रुझान बहुत कम है। यही कारण है कि इस क्षेत्र में संबंधित थानों की पुलिस भी कभी नहीं जाती। ‘टापू’ के गांवों में तो कोई पुलिस चौकी भी नहीं है। 

क्षेत्र में सड़कें खस्ताहाल तथा आवागमन के साधन भी लोगों के अपने-अपने हैं। सरकारी या प्राइवेट बसों की लोगों ने यहां कभी शक्ल भी नहीं देखी। अधिकतर लोगों के पास मोटरसाइकिल हैं या फिर खच्चर-रेहड़े ही ‘ट्रांसपोर्ट’ के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं। लसिआण गांव में अच्छा पढ़ा-लिखा व्यक्ति एक ही है। उसने अपना नाम साईं दास काटल (62) बताया, जिसने बी.एससी. नान-मैडीकल की हुई है। वह रिटायर्ड अध्यापक है जो गांव के बच्चों को पढ़ाने में रुचि रखता है। उसने बताया कि क्षेत्र में एक ही मिडल स्कूल गांव भरिआल में स्थित है, उसे भी सरकार हाईस्कूल नहीं बना सकी। 

इस कारण गांव के अधिकतर बच्चे अनपढ़ ही रह जाते हैं तथा थोड़े-बहुत ही मिडल तक पढ़ाई करते हैं। रावी दरिया पार कर दूर-दराज स्थित स्कूलों-कालेजों में जाने की कोई हिम्मत ही नहीं करता। काटल ने बताया कि पक्के पुल तथा सड़कों की कमी के कारण क्षेत्र की तरक्की को लकवा मार गया है। गांवों में पीने वाले पानी की हालत संतोषजनक नहीं है। स्वास्थ्य सुविधाओं का कोई नामोनिशान नहीं है। सारे क्षेत्र में कोई डिस्पैंसरी तक नहीं। नीम-हकीम ही काम चलाते हैं या फिर दीनानगर जाना पड़ता है। लोगों की पुकार है कि सरकार इस नजरअंदाज  क्षेत्र की ओर अच्छी नजर डाले।-जोगिंद्र सिंह



 


 


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Pardeep

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