कभी Citrus Fruits के लिए खास पहचान रखता था यह क्षेत्र, अब ढूंढे नहीं मिल रहे

punjabkesari.in Thursday, Nov 22, 2018 - 04:37 PM (IST)

ऊना(सुरेन्द्र शर्मा): हिमाचल के अधिकतर हिस्से विलुप्त साइट्रस प्रजाति के उत्थान के लिए बागवानी विभाग ने मुंह मोड़ लिया है। कभी गलगल, किम्ब, किन्नू, संतरा और नींबू के उत्पादन के लिए निचले हिमाचल के कई जिले खास तौर पर पहचाने जाते थे। लेकिन अब हालत यह है कि गलगल कहीं ढूंढे नहीं मिलता है। बताया जा रहा है कि अब किसानों और बागवानों ने किन्नू की फसल से भी मुंह मोड़ लिया है। केवल चुनिंदा बागवान ही साइट्रस के उत्पादन में लगे हुए हैं। कुछ जिलों में तो यह प्रजाति पूरी तरह से विलुप्त हो गई है। इसमें ऊना जिला सबसे आगे है। यह प्रजातियां यहां लगभग समाप्त होने की कगार पर हैं।
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मार्कीट में आने वाला गलगल 40 से 45 रुपए किलो बिक रहा

जिला ऊना के किसान मानते हैं कि सरकार ने बागवानी विभाग में नई तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया। जिसकी वजह से खट्टे, निम्बू व आम जैसे फलदार पौधे खत्म हो गए हैं। पंजाब के सीमावर्ती जिला ऊना की बात करें तो यहां निम्बू प्रजाति की फसल समाप्त हो गई है। गलगल (खट्टे) यहां देखने को नहीं मिलता है। मार्कीट में आने वाला गलगल 40 से 45 रुपए किलो इसलिए बिक रहा है क्योंकि अब यहां इसका उत्पादन नहीं हो रहा है। मार्कीटिंग की समस्या, उचित समर्थन मूल्य का अभाव, जंगली जीवों का उत्पात, नई तकनीक का न होना और बागवानों को समय-समय पर सही मार्गदर्शन न मिलने की वजह से हिमाचल के एक हिस्से से निम्बू प्रजाति लगभग खत्म हो गई है।

बागवानों ने अन्य फलदार पौधों के लिए ज्यादा रुचि नहीं दिखाई

बागवानी विभाग बागवानों/किसानों के प्रति कितना समर्पित है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिला ऊना में बागवानी विकास अधिकारियों के स्वीकृत 11 पदों में से 9 पद खाली हैं। केवल 2 एच.डी.ओ. के सहारे ही ऊना जिला चलाया जा रहा है।डिप्टी डायरेक्टर हॉर्टीकल्चर डा. सुधीर शर्मा कहते हैं कि बागवानों ने किन्नू प्रजाति सहित अन्य फलदार पौधों के लिए ज्यादा रुचि नहीं दिखाई है। अब विभाग फिर से इस ओर किसानों को आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है।   


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