MOVIE REVIEW: ''मोहल्ला अस्सी''

11/16/2018 11:50:10 AM

मुंबई: बॉलीवुड एक्टर सनी देअोल की फिल्म 'मोहल्ला अस्सी' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। ये फिल्म कहानीकार काशीनाथ सिंह की किताब 'काशी का अस्सी' पर बेस्ड है। फिल्म का निर्देशन चंद्रप्रकाश द्व‍िवेदी ने किया है। उन्हें सीरियल चाणक्य और पिंजर जैसी फिल्म के लिए जाना जाता है। इस बार उन्होंने बनारस के अस्सी घाट के इर्द-गिर्द होने वाली घटनाओं पर कहानी बुनी है। वैसे यह फिल्म साल 2015 में रिलीज होने वाली थी, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट की दखल की वजह से इस पर स्टे लग गया था और उसके पहले यह फिल्म ऑनलाइन लीक भी हो गई थी। अब लगभग 3 साल के बाद फिल्म रिलीज हुई है।

 

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कहानी

फिल्म की कहानी 1988 से 1998 के बीच के बनारस में दर्शायी गई है। बनारस का मोहल्ला अस्सी है, जहां के ब्राह्मणों की बस्ती में पांडेय ( सनी देओल ) अपनी पत्नी (साक्षी तंवर) और बच्चों के साथ रहते हैं। पांडेय का काम घाट पर बैठकर अपने जजमानों की कुंडली बनाना और संस्कृत की शिक्षा देना है। एक तरफ जहां चाय की टपरी पर राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा चलती है तो वहीं दूसरी तरफ टूरिस्ट गाइड कन्नी गुरु (रवि किशन) बनारस आए विदेशी सैलानियों को घुमाता है। इसी बीच राम मंदिर का मुद्दा, विदेशियों को किराए पर मकान देने जैसे कई मुद्दे सामने आते हैं और आखिरकार कहानी को विराम मिलता है, जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।


डायरेक्शन


फिल्म की कहानी दिलचस्प है और अगर ये 3-4 साल पहले रिलीज हो जाती तो शायद इसका प्रभाव ज्यादा पड़ता, किन्तु अभी यह काफी धूमिल सी नजर आती है।  चंद्रप्रकाश ने बनारस की यात्रा इस फिल्म के जरिए बखूबी कराई है। वहां के गली-मुहल्लों का एक फ्लेवर मिलता है। नुक्कड़ पर बैठकर होने वाली चर्चाओं और राजनीतिक मुद्दों की तरफ भी खुलकर बातचीत की गई है, साथ ही संस्कृति और धर्म से संबंधित बातों को भी अच्छे तरह से दर्शाया गया है। जमीनी हकीकत देखने को मिलती है। सनी देओल एक ब्राह्मण के किरदार में अच्छा अभिनय करते नजर आते हैं, वहीँ रवि किशन की मौजूदगी आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर लाती है, साक्षी तंवर ने बखूब अभिनय किया है। बाकी किरदारों का भी सहज अभिनय है। तमाम विवादों के बाद फिल्म को रिलीज करना अपने आप में बड़ा कदम है।

 

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कमज़ोर कड़ियां

फिल्म की कमजोर कड़ी इसका इंटरवल के बाद का हिस्सा है जो कि काफी बिखरा-बिखरा है। हर एक मुद्दा मिक्स होता नजर आता है। धर्म-संस्कृति तथा राजनीतिक मुद्दे कहीं न कहीं बिखर जाते हैं और किरदारों से जो आपका मेल इंटरवल से पहले होता है, वो दूसरे हिस्से में किसी और दिशा में चला जाता है। फिल्म का संगीत भी हिट नहीं हो पाया है। शायद विवादों में घिरे रहने के बाद फिल्म की कटाई छंटाई के दौरान कई चीजें हटा दी गई होंगी, जिसकी वजह से फाइनल कट बिखरा-बिखरा लग रहा है।


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Konika


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