लाहौर के महाराजा ने इंग्लैंड की महारानी को तोहफे में नहीं, बल्कि दबाव में दिया था कोहिनूर

punjabkesari.in Tuesday, Oct 16, 2018 - 09:25 PM (IST)

नई दिल्ली/चंडीगढ: लाहौर के महाराजा ने करीब 170 वर्ष पहले इंग्लैंड की महारानी को 108 कैरेट का कोहिनूर ‘‘सर्मिपत किया’’ था ‘‘न कि उनके हवाले किया’’ था। यह सूचना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने लुधियाना के एक सामाजिक कार्यकर्ता के सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगे गए सवालों के जवाब में दी। उन्होंने पूछा था कि क्या बेशकीमती हीरा अंग्रेजों को उपहार में दिया गया था या किन्हीं अन्य कारणों से इसे हस्तांतरित किया गया था।      

गौरतलब है कि एएसआई की तरफ से दस अक्तूबर को दिया गया लिखित जवाब अप्रैल 2016 में केंद्र सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय को दिए गए जवाब से भिन्न है। सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि कोहिनूर की अनुमानित कीमत 20 करोड़ डॉलर से ज्यादा है जिसे न तो चुराया गया था, न ही अंग्रेज शासक उसे ‘‘जबर्दस्ती’’ ले गए बल्कि पंजाब के पूर्ववर्ती शासकों ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया था।      

रोहित सभरवाल ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने करीब एक महीने पहले आरटीआई दायर की थी जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से जवाब मांगा गया था। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि उन सवालों को एएसआई के पास भेज दिया जिसने उनके जवाब दिए हैं।’’  जवाब के मुताबिक, ‘‘राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखे रिकॉर्ड के मुताबिक लॉर्ड डलहौजी और महाराजा दिलीप सिंह के बीच 1849 में लाहौर संधि हुई थी जिसके तहत लाहौर के महाराजा ने कोहिनूर हीरा को इंग्लैंड की महारानी को सर्मिपत कर दिया था।’’ कोहिनूर का मतलब ‘प्रकाश का पर्वत’ होता है और यह बड़ा, रंगहीन हीरा है जो 14वीं सदी की शुरुआत में दक्षिण भारत में पाया गया था। 

औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों के पास चले गए इस बेशकीमती हीरे के मालिकाना हक को लेकर विवाद है और भारत सहित कम से कम चार देश इस पर अपना दावा जताते हैं। जवाब में संधि के बारे में संक्षिप्त में बताया गया है कि ‘‘बेशकीमती पत्थर कोहिनूर को महाराजा रणजीत सिंह ने शाह सुजा उल मुल्क से लिया था जिसे लाहौर के महाराजा ने इंग्लैंड की महारानी को सर्मिपत कर दिया।’’ जवाब के मुताबिक संधि से प्रतीत होता है कि ‘‘दिलीप सिंह की इच्छा पर अंग्रेजों को कोहिनूर नहीं सौंपा गया था। संधि के समय दिलीप सिंह नाबालिग थे।’’  

सभरवाल ने कहा कि हाल में वह इंग्लैंड गए थे और ‘‘वहां एक संग्रहालय में मैंने कोहिनूर को देखा और मुझे वहां सूचना दी गई कि यह उपहार में दिया गया था।’’ उन्होंने लुधियाना से पीटीआई को फोन पर बताया, ‘‘इसलिए भारत लौटने के बाद जवाब हासिल करने के लिए मैंने आरटीआई दायर करने का निर्णय किया।’’ उन्होंने कहा कि एएसआई और 2016 में केंद्र के जवाब में ‘‘परस्पर विरोधाभास’’ है और इसलिए केंद्र सरकार को इस पर गौर करना चाहिए।     


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