सरकारी चिकित्सकों के सिर पर बाहरी दुकानों की दवाइयां का धंधा खूब फल फूल रहा

punjabkesari.in Monday, Apr 23, 2018 - 12:48 PM (IST)

चम्बा : सरकारें गरीबों को सरकारी स्तर पर मुफ्त में दवाइयां मुहैया करवाने के नाम पर भले हर वर्ष करोड़ों रुपए पानी की तरह खर्च कर दें लेकिन सच्चाई यह है कि सरकारी चिकित्सालयों में तैनात कुछ चिकित्सकों का निजी हित इस योजना की सफलता में आड़े आ रहा है। अधिक पैसा कमाने की चाहत है में कुछ सरकारी संस्थानों में तैनात चिकित्सक अस्पताल में दवाइयां होने के बावजूद बाहरी दुकानों की दवाइयां धड़ल्ले से लिख रहे हैं।

चिकित्सकों के सिर पर निजी दवाइयों की दुकानों का धंधा खूब चमक रहा
मजेदार बात यह है कि इस मामले में प्रदेश की सभी सरकारें अब तक ऊंची-ऊंची बातें करती हुईं नजर तो आई हैं लेकिन पूरे राज्य में अब तक एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया है कि किसी सरकारी चिकित्सक द्वारा अस्पताल से बाहर की दवाइयां या फिर जैनरिक दवाइयां नहीं लिखे जाने पर उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई अमल में लाई गई हो। यही वजह है कि यह मामला महज चेतावनियां जारी करने तक ही सीमित रहा है और आज भी कुछ चिकित्सक हर दिन सरकारी ड्यूटी करते हुए भी हजारों रुपए की मोटी कमाई दवाइयों के कमीशन के रूप में कमा रहे हैं। शायद यही वजह है कि केंद्र व राज्य सरकार के पैसों से सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों के लिए खरीदी गई दवाइयां लोगों को तो नहीं मिल रही हैं लेकिन सरकारी चिकित्सकों के सिर पर निजी दवाइयों की दुकानों का धंधा खूब चमका हुआ है।

मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा
जानकारी के अनुसार मैडीकल कालेज चम्बा या फिर जिला के विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों की बात करें तो यहां वहीं लोग आते हैं जोकि निजी क्लीनिकों की भारी भरकम फीस या फिर उनके उपचार का लाभ नहीं मिले से निराश हो चुके होते हैं। ऐसे रोगियों व उनके परिवारों को सही मायने में सरकारी स्वास्थ्य संस्थान ही आखिरी उम्मीद नजर आते हैं। उनके इस भरोसे व उनकी मजबूरी का कुछ सरकारी संस्थानों में तैनात चिकित्सक इस कदर नाजायज फायदा उठा रहे हैं कि वे भगवान के बराबर दर्जे वाले इस पेशे को पैसा कमाने की मशीन का रूप दिए हुए हैं। ऐसे चिकित्सकों की करतूतों से रोगी व उसके तीमारदार भी भलीभांति परिचित होते हैं लेकिन उनके लिए उक्त स्थिति मुंह खोलने की हरगिज इजाजत नहीं देती है। यही वजह है कि यह गोरख धंधा जिला चम्बा में खूब फलफूल रहा है।

डाक्टरों की कमी का रोना रोती है सरकार
हर बार प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान चरमराई स्वास्थ्य सेवाओं को विरोधी दल अपना मुख्य हथियार बनाता है तो सत्ताधारी दल स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए कार्यों को अपनी उपलब्धियों को गिनाने का कोई मौका नहीं चुकता है लेकिन सच्चाई हमेशा यही रही है कि गरीब व मध्यवर्गी परिवारों को महंगाई के दौर में अपने उपचार के लिए बाजार से ही महंगी दवाइयों को खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। सरकारी हमेशा प्रदेश में चिकित्सकों की कमी का हवाला देकर लोगों की आवाज को दबाने का प्रयास करती रही है तो इसी बात का फायदा उठाकर सरकारी संस्थानों में तैनात चिकित्सक अपने ऊपरी किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं होने की बात को भलीभांति भांपते हुए सरकारी आदेशों को बावजूद निजी प्रैक्टिस से लेकर बाजार की दवाइयां लिखने से नहीं हिचकिचाते हैं।

अस्पतालों के मुफ्त दवा केंद्रों से निराश लौट रहे लोग
जिला के लगभग सभी स्वास्थ्य संस्थानों में रोगियों को मुफ्त में सरकारी दवाइयां मुहैया करवाने के लिए दवा केंद्र मौजूद हैं। जब भी कोई सरकारी चिकित्सक दवाइयां लिखता है तो लोग सबसे पहले अस्पतालों के दवा केंद्र की ओर रुख करते हैं लेकिन वहां चिकित्सक द्वारा लिखी गई दवाइयां नहीं होने की बात कही जाती है, ऐसे में निराश होकर रोगी अथवा उसके तीमारदार दवाइयां खरीदने के लिए निजी दवाइयों की दुकानों की ओर रुख करते हैं।

सीधे रोगी के खाते में हों पैसे जमा
जिला व्यापार मंडल अध्यक्ष विरेंद्र महाजन का कहना है कि यह बेहद ङ्क्षचता का विषय है कि सरकार लोगों को मुफ्त दवाइयां मुहैया करवाने के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च करती है लेकिन इस योजना का लोगों को उस कदर लाभ नहीं मिल रहा है जितना उन्हें लाभ मिलना चाहिए। इससे बेहतर है कि सरकार सीधे लोगों के खाते में दवाइयां का खर्चा जमा कर दे। ऐसी व्यवस्था होने से लोगों को सही मायने में इस योजना का पूरा का पूरा लाभ मिलेगा।

गरीब आदमी पर नहीं देता  कोई ध्यान
सुदर्शन कुमार का कहना है कि हर 5 वर्ष बाद सरकार बदलती है लेकिन चिकित्सक व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं होता है। इतना जरूरी है कि नेता लोग एक-दूसरे पर उंगली उठाते रहते हैं लेकिन सही मायने में गरीब आदमी के प्रति कोई भी गंभीरता नहीं दिखाता है। कई बार तो जीवन रक्षक दवाइयों को बाजार से लाने के लिए मजबूर किया जाता है। 


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kirti

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