जलियांवाला बाग हत्याकांड की पीड़ा आज भी हर भारतीय के दिल में

punjabkesari.in Saturday, Apr 13, 2019 - 03:39 AM (IST)

आज मानव इतिहास के एक जघन्य हत्याकांड तथा भारत में अंग्रेजी हुकूमत के सबसे काले अध्याय, जलियांवाला बाग हत्याकांड की 100वीं वाॢषकी है। ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर के आदेश पर जलियांवाला बाग में एकत्र हजारों मासूम नागरिकों की भीड़ पर गोलियां चलाई गईं। सैंकड़ों की संख्या में निर्दोष नागरिक हताहत और गंभीर रूप से घायल हुए। 

13 अप्रैल, 1919 को उस दिन भी बैसाखी का ही अवसर था जब महिलाओं और बच्चों सहित हजारों की संख्या में नागरिक वहां एकत्र हुए। वे सरकार द्वारा ऐसी सभाओं पर लगाए गए प्रतिबंध से प्राय: अनभिज्ञ थे। बिना किसी पूर्व चेतावनी के उस भीड़ पर 10 मिनट तक अंधाधुंध गोलियां चलाई गईं जब तक कि आखिरी गोली भी समाप्त न हो गई। 

इस जघन्य हत्याकांड ने विश्व को स्तब्ध कर दिया। इस घटना ने देश के स्वाधीनता आंदोलन की दिशा को ही बदल दिया। आक्रोश और क्षोभ  से प्रेरित राष्ट्रवादी लहर देशभर में फैल गई। अंग्रेजी हुकूमत की भयावह क्रूरता से क्षुब्ध गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड को पत्र लिख कर अपना रोष जताया और विरोध में अंग्रेजों द्वारा दिए गए नाइट के खिताब को लौटा दिया। यहां उस पत्र के कुछ अंशों को उद्धृत करना समीचीन होगा जिससे वर्तमान पीढ़ी को उस वेदना का अहसास हो सके जो उस समय की जनता ने पाषाण-हृदय अंग्रेजी हुकूमत की असंवेदनशीलता के कारण झेली थी। 

गुरुदेव ने अपने पत्र में लिखा था, ‘‘स्थानीय विरोध को कुचलने के लिए पंजाब सरकार द्वारा उठाए गए सख्त कदमों की भयावह असंवेदनशीलता ने एक झटके से उस निरीहता को हमारे मानस के सामने उजागर कर दिया है जिसमें अंग्रेजों के गुलाम भारत की जनता स्वयं को पाती है। अभागे नागरिकों पर जिस सख्ती और कठोरता से कार्रवाई की गई, इस कठोर सजा को देने के लिए जो तरीके अपनाए गए, उन्हें देख कर हम आश्वस्त हैं कि निकट या सुदूर भूतकाल में भी, सभ्य शासन के इतिहास में कतिपय अपवादों को छोड़कर, उनकी तुलना नहीं मिलेगी। यह ध्यान में रखते हुए कि यह बर्ताव एक निरीह, शस्त्रहीन जनता पर उस प्रशासन द्वारा किया गया जिसके पास मानव जीवन को नष्ट करने के सबसे सक्षम और जघन्य साधन और संगठन हैं। यकीनन इसकी न तो कोई राजनीतिक अपरिहार्यता थी और न ही कोई नैतिक औचित्य।’’

वायसराय से स्वयं को नाइट की उपाधि से मुक्त करने का आग्रह करते हुए टैगोर ने लिखा, ‘‘इस अपमान के परिपे्रक्ष्य में अब ये सम्मानार्थ दिए गए तमगे और भी शर्मनाक लगने लगे हैं। मैं इन विशिष्ट सम्मानों से मुक्त हो, अब अपने देशवासियों के साथ खड़ा होना चाहता हूं, जिन्हें उनकी तथाकथित तुच्छता के कारण वह अपमान सहना पड़ रहा है जो अमानवीय है।’’ यद्यपि इस भीषण नरसंहार को घटे 100 वर्ष बीत गए हैं-इसकी वेदना आज भी हर भारतीय के हृदय को पीड़ित करती है। इतिहास घटनाओं का ब्यौरा मात्र नहीं है। वह हमें सीख भी देता है कि कुटिल कुत्सित मानसिकता किस हद तक गिर सकती है और हमें भविष्य के लिए सतर्क रहने की सीख देता है। इतिहास हमें बताता है कि बुराई की आयु क्षणिक होती है। जैसा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि, ‘‘सम्पूर्ण इतिहास में प्रेम और सत्य की सदैव विजय हुई है। बहुत से क्रूर निरंकुश हत्यारे शासक हुए हैं जो कुछ समय तक तो अजेय समझे जाते थे लेकिन अंतत: वे सभी परास्त हुए...यह सदैव विचार में रखें।’’ 

जलियांवाला बाग की दुर्घटना के बाद, आज भारत और विश्व आगे बढ़ चुके हैं। महात्मा गांधी ने विश्व को दिखाया कि कैसे शांति और अङ्क्षहसा के सामने विश्व की सबसे ताकतवर औपनिवेशिक सत्ता ने भी घुटने टेक दिए। नि:संदेह उपनिवेशवाद का दौर अब गुजर चुका है फिर भी यह जरूरी है कि हम इतिहास से सबक सीखें और मानवता के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करें। आज यह पहले से कहीं जरूरी है कि विश्व के हर कोने में स्थायी शांति स्थापित हो और धरती पर सतत, स्थायी और प्रकृति सम्मत विकास सुनिश्चित किया जा सके। 

इस दिशा में प्रयास विद्यालयों से लेकर उच्चस्थ शिखर वार्ताओं तक, हर स्तर पर आवश्यक रूप से किए जाने चाहिएं। बिना शांति के विकास संभव नहीं। एक नई और बराबरी की वैश्विक व्यवस्था की स्थापना हेतु, विश्व के सभी  देशों को एकमत से एकत्र होना होगा-ऐसी वैश्विक व्यवस्था जिसमें शक्ति, सत्ता और उत्तरदायित्व सांझा हो, सभी के विचारों और अभिव्यक्ति का आदर हो। धरती के साधन सम्पदा सांझा हों। प्रकारान्तर से, नई व्यवस्था सभी देशों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराए। 

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि चंद शक्ति सम्पन्न राष्ट्र या समुदाय ही बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों पर अपना प्रभावी वर्चस्व न कायम कर लें। हर राष्ट्र की आवाज को सुना जाना चाहिए। भारत किसी भी वैश्विक मुद्दे पर अपना विचार इसी आधार पर, इसी परिप्रेक्ष्य में तय करता है। इसी पृष्ठभूमि में भारत तथा कुछ और देश राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में अधिक प्रभावी और सक्रिय भूमिका की मांग कर रहे हैं। 

वस्तुत: हम अनादि काल से वसुधैव कुटुंबकम के आदर्श का अनुसरण करते रहे हैं। हम सम्पूर्ण विश्व को एक ही परिवार मानते हैं। अपने इन्हीं सांस्कृतिक मूल्यों के कारण, विश्वगुरु होते हुए भी भारत ने अपने लम्बे इतिहास में कभी भी किसी पर आक्रमण नहीं किया। इतिहास में लम्बे समय तक विश्व सम्पदा में 27 प्रतिशत का योगदान करने के बावजूद, भारत की कभी भी कोई औपनिवेशक महत्वांकाक्षा नहीं रही। हमारी शांतिप्रिय  परम्परा, अहिंसावादी दार्शनिक परम्परा के बावजूद भारत को इतिहास में लगातार आततायी आक्रमणों का सामना करना पड़ा और गत कई दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा है। 

आतंकवाद है सबसे गंभीर चुनौती
आतंकवाद आज मानवता के समक्ष सबसे गंभीर चुनौती है। विश्व के कई देश कुत्सित मानसिकता से जन्मी ङ्क्षहसा को झेल रहे हैं। भारत में हम दशकों से आतंकवादी हमलों और घटनाओं का सामना कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र और विश्व के नेताओं को, 1996 से संयुक्त राष्ट्र में लम्बित भारत द्वारा प्रस्तावित काम्प्रिहैंसिव कन्वैंशन ऑन इंटरनैशनल टैररिज्म (सीसीआईटी) के मसौदे पर प्राथमिकता देते हुए शीघ्रातिशीघ्र फैसला लेना चाहिए। 

जो राष्ट्र आतंकवाद को राष्ट्रीय नीति के तहत प्रश्रय देते हैं उन्हें विश्वमत को हाईजैक करने नहीं दिया जा सकता। वे विश्व स्थायित्व और शांति के लिए खतरा है। उन्हें विश्व समुदाय से अलग-थलग करना जरूरी है। मूलत: आतंकवादी गतिविधियों के लिए संसाधन जुटाने के सभी मार्गों को बंद करना आवश्यक है। ऐसे देशों के विरुद्ध कड़े अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध लगाए जाने चाहिएं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, विश्व समुदाय को एकजुट होकर यह सुनिश्चित करना होगा कि आतंकवाद को प्रश्रय देने वाला एक भी राष्ट्र प्रतिबंधों से बचा न रहे। हर देश यह याद रखे कि अंतत: आतंकवाद का जहर किसी को नहीं बख्शेगा। कोई नहीं जानता कि जो आज आतंकवाद की वीभत्स सच्चाई से मुंह चुरा रहे हैं कल वही आतंकवादी हमलों के शिकार हो जाएं। आतंकवाद का अंत तभी संभव है जब हम परस्पर मानवता पर मंडराते इस खतरे की गंभीरता को समझें, इस वीभत्स सच्चाई को स्वीकार करें और इसके विरुद्ध सांझा लड़ाई के लिए तत्पर हों। 

जलवायु परिवर्तन को रोका जाए
आज जबकि तकनीकी क्रांति हमारी आधुनिक जीवन शैली को अभूतपूर्व और तीव्रतर गति से प्रभावित कर रही है, उसने अखिल विश्व को एक वैश्विक गांव में तबदील कर दिया है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपेक्षित है कि वह इस अवसर का लाभ उठाए और अल्पविकसित तथा विकासशील देशों में गरीबी में बसर करने वाले असंख्य नागरिकों के जीवन स्तर में गुणात्मक बदलाव लाएं। सभी राष्ट्र जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सांझा प्रयास करें तथा प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन को रोकें। हमें भावी पीढ़ी के जीवन और पृथ्वी के भविष्य को दांव पर लगाने का कोई हक नहीं है। 

एक बार पुन: मैं महात्मा गांधी के गंभीर परामर्श का स्मरण दिलाना चाहूंगा जिन्होंने कहा था कि धरती सभी की आवश्यकता तो पूरी कर सकती है पर किसी की लालसा या लालच को पूरा नहीं कर सकती। अंत में मैं, दिल्ली स्थित ‘‘यादे जलियां संग्रहालय’’ में उस ऐतिहासिक घटना से संबंधित फोटोग्राफ, चित्र, समाचारपत्रों की कतरनों को संकलित और संरक्षित करने और उन्हें सुरुचिपूर्ण तरीके से प्रदर्शित करने के लिए सरकार के प्रयासों का अभिनंदन करता है। यह संग्रहालय जलियांवाला बाग कांड का आधिकारिक विवरण प्रस्तुत करता है।-एम. वेंकैया नायडू


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News