मेनोपॉज़ असल में क्या है? क्यों ज़्यादातर भारतीय महिलाएँ शुरुआती लक्षणों को पहचान नहीं पातीं
punjabkesari.in Thursday, Nov 06, 2025 - 04:27 PM (IST)
मेनोपॉज़ महिलाओं के जीवन का एक बहुत ही नेचुरल पड़ाव है, जो पीरियड्स के बंद होने को दर्शाता है। जब लगातार 12 महीने तक पीरियड्स नहीं आते, तो इसे मेनोपॉज़ माना जाता है। यह बदलाव अचानक नहीं होता, बल्कि कई सालों तक चलने वाली एक प्रक्रिया का असर है, जो पेरीमेनोपॉस से शुरू होती है। इस समय हार्मोन में बदलाव शुरू होते हैं, पीरियड्स अनियमित होते हैं और कई लक्षण धीरे-धीरे नज़र आने लगते हैं। डॉ. राखी गोयल, फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट, बिरला फ़र्टिलिटी एंड आईवीएफ, चंडीगढ़ ने बताया कि इस दौर में वासोमोटर सिम्पटम्स, नींद में परेशानी, मूड में बदलाव, और हड्डियों और दिल से जुड़ी समस्याएँ देखी जाती हैं।
क्यों महिलाएँ शुरुआती संकेत नज़रअंदाज़ कर देती हैं
अधिकांश भारतीय महिलाएँ मेनोपॉज़ के शुरुआती सिम्पटम्स को स्ट्रेस, काम का बोझ या नींद की कमी का असर समझकर अनदेखा कर देती हैं। देशभर के अध्ययन में पाया गया है कि कई महिलाओं में जोड़ों का दर्द, थकान, हॉट फ़्लैश, अनिद्रा और घबराहट जैसे लक्षण देखे जाते हैं, पर वे इनका संबंध हार्मोनल बदलावों से नहीं जोड़तीं। जर्नल ऑफ़ फ़ैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर में प्रकाशित एक मल्टी-सेंट्रिक स्टडी में लगभग दो-तिहाई महिलाओं को यह जानकारी नहीं थी कि मेनोपॉज़ मूड, नींद या हड्डियों के स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। वहीं, क्लाइमेक्टेरिक जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में बताया गया कि अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में जागरूकता और इलाज की सुविधाओं में बड़ा अंतर है – खासकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएँ हार्मोन थेरेपी जैसी उपचार से काफ़ी कम परिचित हैं।
कल्चर और सिस्टम से जुड़ी बाधाएँ
भारतीय समाज में रीप्रोडक्टिव उम्र पर खुलकर बात अभी भी बात नहीं होती है। मूड, लिबिडो और याददाश्त पर असर डालने वाले लक्षणों को अक्सर ‘बढ़ती उम्र’ या ‘स्ट्रेस’ समझकर सामान्य मान लिया जाता है। हरियाणा और गुरुग्राम में हुए रिसर्च में पाया गया कि बहुत कम महिलाएँ मेनोपॉज़ के इमोशनल और फिजिकल असर को पहचानती हैं, और बहुत कम को यह जानकारी होती है कि इस समय हार्मोन थेरपी जैसी इलाज उपलब्ध हैं।
क्यों यह ज़रूरी है — और क्या बदलना चाहिए
पेरीमेनोपॉस के लक्षणों को अनदेखा करना सिर्फ़ असुविधा नहीं, बल्कि एक बड़ा अवसर छोड़ना भी है। अगर सही समय पर जाँच हो जाए, तो लाइफस्टाइल में बदलाव और सही ट्रीटमेंट से महिलाओं की हड्डियों, दिल और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रखा जा सकता है।
महिलाओं और डॉक्टरों के लिए प्रैक्टिकल कदम
सिर्फ़ पीरियड्स रुकने पर ध्यान देने की बजाय, डॉक्टरों को 35 वर्ष से ऊपर की महिलाओं में नींद, फ़्लैश, भूलने की आदत या सेक्स लाइफ में बदलाव जैसे पहलुओं पर भी बात करनी चाहिए। समाज में इस चरण को सामान्य बनाना और हर ज़िले में मेनोपॉज़ क्लिनिक या सलाह सेवाओं की पहुंच बढ़ाना समय की मांग है। सही समय पर पहचान होने पर, लाइफस्टाइल से जुड़े सुझाव, थेरेपी और हड्डियों के स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग से महिलाओं की ज़िन्दगी की गुणवता को मदद मिल सकती है।
