रेबीज: जिसका कोई इलाज नहीं, पर रोकथाम निश्चित है!

punjabkesari.in Monday, Sep 29, 2025 - 10:44 PM (IST)

हाल के दिनों में शायद ही कोई ऐसा हो जिसने रेबीज का नाम न सुना हो। जहाँ एक ओर, पशु प्रेमी सड़क के कुत्तों के समर्थन में पूरी भावना से आगे आए हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों ने इस बीमारी को लेकर कई तरह के मिथक और भ्रम भी फैलाए। इन सब के बीच, बहुत से लोग इस जानलेवा बीमारी के बारे में सही मायने में जागरूक भी हुए हैं।

 

तो चलिए, आज रेबीज के बारे में विस्तार से बात करते हैं - क्योंकि आज, 28 सितंबर को पूरी दुनिया 'विश्व रेबीज दिवस' मना रही है। यह कैलेंडर की कोई आम तारीख नहीं है, बल्कि यह उस महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर की पुण्यतिथि है, जिन्होंने दुनिया का पहला रेबीज का टीका विकसित किया था।

 

रेबीज इंसानियत के लिए ज्ञात सबसे पुरानी और सबसे घातक बीमारियों में से एक है। यह एक वायरस के कारण होती है जो जानवरों की लार के ज़रिये इंसानों में फैलता है। यह वायरस काटने, खरोंचने या जानवर की लार के सीधे संपर्क में आने (जैसे आँख, मुँह या खुले घाव) से फैलता है। इंसानों में रेबीज के 99% मामलों के लिए कुत्ते ही ज़िम्मेदार होते हैं। रेबीज स्तनधारी जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली, मवेशी और जंगली जानवरों को भी संक्रमित कर सकता है। 5 से 14 साल के बच्चे विशेष रूप से इसके प्रति संवेदनशील होते हैं और अक्सर इसका सबसे ज़्यादा शिकार बनते हैं। यह घातक वायरस सीधे तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है और अगर समय पर इलाज न किया जाए तो मौत का कारण बन सकता है। एक बार लक्षण दिखने के बाद रेबीज का कोई इलाज नहीं है, लेकिन समय पर टीकाकरण से इसे 100% रोका जा सकता है।

 

हर साल, दुनिया भर में रेबीज से अनुमानित 59,000 लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें से ज़्यादातर मामले अफ्रीका और एशिया से होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया में रेबीज से होने वाली कुल मौतों का लगभग 36% हिस्सा भारत में होता है, जो इसे एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय बनाता है। भारत में समस्या यह नहीं है कि रेबीज को रोका नहीं जा सकता, बल्कि यह है कि जागरूकता की कमी, इलाज में देरी या घरेलू नुस्खों पर निर्भरता के कारण आज भी कई लोग अपनी जान गँवा देते हैं।

 

कभी-कभी डर भी एक बड़ी भूमिका निभाता है। कुछ समय पहले एक बच्चे का दिल दहला देने वाला मामला सामने आया था, जिसे खेलते समय एक कुत्ते ने काट लिया था। डांट के डर से उसने यह बात अपने माता-पिता से छिपा ली। जब तक रेबीज के लक्षण सामने आए, तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उस बच्चे की जान चली गई। ऐसी कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि जीवन बचाने के लिए टीके जितने ही ज़रूरी, जागरूकता और खुली बातचीत भी है।

 

रेबीज से बचाव कैसे करें?

 

1. जानवर के काटने के बाद का उपचार (Post-exposure prophylaxis):

जानवर के काटने के बाद बचाव का पहला और सबसे सरल तरीका है - घाव और खरोंच को तुरंत साबुन और बहते पानी से कम से कम 15 मिनट तक धोना। अगर साबुन उपलब्ध न हो, तो केवल पानी से ही अच्छी तरह साफ़ करें। घाव धोना रेबीज के खिलाफ सबसे प्रभावी प्राथमिक उपचार है, क्योंकि यह वायरस को तंत्रिका तंत्र तक पहुँचने से पहले ही घाव वाली जगह से काफी हद तक हटा देता है। घाव पर मिर्च पाउडर, हल्दी, पौधों का रस, एसिड या क्षार जैसी जलन पैदा करने वाली चीजें लगाने से बचें और घाव को किसी पट्टी से न ढकें।

 

घाव साफ करने के बाद, अगला कदम बिना देर किए टीकाकरण का कोर्स शुरू करना है। आमतौर पर, डॉक्टर की सलाह के अनुसार 4-5 टीके लगाए जाते हैं। सबसे ज़रूरी बात यह है कि कोर्स को पूरा करें - इसे बीच में बिल्कुल न छोड़ें। अगर कोई एक डोज़ भूल भी जाए, तो भी कोर्स को जारी रखने में कभी देर नहीं होती। काटने की गंभीरता के आधार पर, रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन (rabies immunoglobulins) की भी आवश्यकता पड़ सकती है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस टीके के लिए कोई उम्र की पाबंदी नहीं है - यहाँ तक कि नवजात शिशु, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएँ भी इसे सुरक्षित रूप से ले सकती हैं।

 

2. जोखिम से पहले बचाव (Pre-exposure prophylaxis):

यह उन लोगों के लिए सुझाया जाता है जिन्हें संक्रमण का खतरा अधिक होता है, जैसे कि पशु चिकित्सक, जानवरों की देखभाल करने वाले और स्वास्थ्य कार्यकर्ता। यह टीका तीन डोज़ में दिया जाता है - पहले दिन, 7वें दिन और 21वें या 28वें दिन। यह उन्हें किसी भी आकस्मिक जोखिम की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करता है।

 

3. कुत्तों का टीकाकरण:

चूंकि इंसानों में 99% रेबीज के मामले कुत्तों के काटने से होते हैं, इसलिए कुत्तों का टीकाकरण इस बीमारी के संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने का सबसे शक्तिशाली तरीका है। जब हम बड़े पैमाने पर कुत्तों का टीकाकरण करते हैं, तो हम सिर्फ उनकी नहीं बल्कि पूरे समुदाय की रक्षा कर रहे होते हैं। जिम्मेदार पालतू पशु मालिकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके पालतू जानवरों को नियमित रूप से टीका लगाया जाए, और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सड़क के कुत्तों का टीकाकरण अभियान भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

 

खतरों को पहचानें

हम सब जानते हैं कि टीकाकरण ही बचाव की कुंजी है, लेकिन अगर लोग समय पर रेबीज से संक्रमित कुत्ते की पहचान करना सीख जाएं, तो कई जानें बचाई जा सकती हैं।

इसके चेतावनी संकेतों में शामिल हैं: अचानक बिना वजह आक्रामक होना, असामान्य या बेचैन व्यवहार, कमजोरी या लकवा, भौंकने या गुर्राने के तरीके में बदलाव और मुंह से अत्यधिक लार टपकना या झाग आना।

 

रेबीज सिर्फ कुत्तों तक सीमित नहीं है। एक बार जब वायरस इंसान के शरीर में प्रवेश कर जाता है, तो इसके अपने लक्षण दिखने लगते हैं: इसकी शुरुआत अक्सर काटे गए स्थान पर दर्द, झुनझुनी या खुजली से होती है। जल्द ही चिंता, भ्रम, उत्तेजना या मतिभ्रम जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। मरीज़ को पानी से डर (हाइड्रोफोबिया) या हवा के झोंके से भी डर (एरोफोबिया) लग सकता है। इसके अलावा, निगलने में कठिनाई, बेचैनी और अत्यधिक लार आना भी इसके लक्षण हैं। दुख की बात यह है कि एक बार ये लक्षण दिखने पर, रेबीज लगभग हमेशा एक सप्ताह के भीतर मौत का कारण बनता है।

 

इस वर्ष 2025 की थीम है: “अभी कार्रवाई करें: आप, मैं और समुदाय”। यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। यह थीम हमें याद दिलाती है कि बदलाव घर से शुरू होता है और पूरे समुदाय में फैलता है। रेबीज को रोका जा सकता है, लेकिन केवल तभी जब हममें से हर कोई अपनी जिम्मेदारी समझे और इंसानों और जानवरों दोनों की रक्षा के लिए एक साथ खड़ा हो। आज उठाया गया एक छोटा कदम, जैसे किसी पालतू जानवर को टीका लगवाना या किसी को समय पर इलाज दिलाने में मदद करना, कल किसी की जान बचा सकता है।


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Content Editor

Diksha Raghuwanshi