IBC के आने के बाद कर्ज किस्तें नहीं भरने का विकल्प समाप्त, व्यवहार में आया बदलाव: CAG

Thursday, Oct 01, 2020 - 11:21 PM (IST)

नई दिल्लीः भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) जी सी मुर्मू ने बृहस्पतिवार को कहा कि दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के आने के बाद अब कर्ज लेने वालों के व्यवहार में बदलाव आया है। अब कर्ज की किस्तें नहीं चुकाने का विकल्प समाप्त हो गया है और कंपनी का स्वामित्व अब दैवीय अधिकार जैसा नहीं रह गया है। 

उन्होंने भारतीय दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के चौथे वार्षिक दिवस के मौके पर ‘आईबीसी: अडैप्टेबिलिटी इज दी की टू सस्टेनिंग रिफॉर्म्स इन दी टाइम्स ऑफ अ पैनडेमिक' विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि व्यवहार (कर्ज लेने वालों के) में आये इस बदलाव का परिणाम आईबीसी के बाहर के कर्जदाताओं के लिये उल्लेखनीय वसूली के रूप में सामने आया है। मुर्मू ने कहा कि इस संहिता की सबसे शानदार उपलब्धियों में से एक यह है कि कर्ज लेने वालों के साथ ही कर्ज देने वालों के भी व्यवहार में भी बड़ा बदलाव आया है। 

उन्होंने कहा, ‘‘यह उन्हें डिफॉल्ट (कर्ज की किस्तें चुकाने में चूक करने) से बचने के लिये सर्वोत्तम प्रयास करने को प्रेरित कर रहा है। इसके अलावा, यह कर्जदारों को संहिता के दायरे से परे कर्जदाता के साथ डिफॉल्ट के मुद्दे का समाधान निकालने के लिये प्रोत्साहित करता है। संहिता (आईबीसी) के कारण अब कर्ज की किस्तें नहीं चुकाने का विकल्प समाप्त हो गया है और कंपनी का स्वामित्व अब दैवीय अधिकार जैसा नहीं रह गया है।'' 

कैग ने कहा कि संहिता का ऋण बाजार पर प्रभाव पड़ा है क्योंकि संकल्प और परिसमापन के प्रावधान में चूक की घटनाओं में कमी आयी है। यह कर्जदाताओं को कंपनी के पुनरुद्धार या उसकी संपत्तियों की बिक्री के माध्यम से बकाया की वसूली करने में सक्षम बनाता है। मुर्मू ने कहा,‘‘यह संहिता बैंकिंग प्रणाली की एनपीए (गैर निष्पादित परिसंपत्ति) की समस्या को हल करने में भी मदद कर रहा है।''उन्होंने कहा कि संहिता ने एक सामंजस्यपूर्ण और व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र भी बनाया है।
 

Pardeep

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