एक टिकट बचा सकती है आपकी जिंदगी

Monday, Aug 07, 2017 - 03:22 PM (IST)

नई दिल्लीः अक्सर कई लोगों को आदत होती है कि जब वे बस, रेल या फिर फ्लाइट की टिकट लेते हैं तो सफर करने बाद टिकट को फेंक देते हैं लेकिन कई बार यह हमारे लिए मुसीबत का कारण भी बन सकता है और कई बार किसी बड़ी मुसीबत से बचा भी सकती है। कुछ ऐसे ही हुआ नरेश कुमार उर्फ नीतू के साथ। उसने 2012 में हिमाचल प्रदेश के नेरवा से चामुंडा तक का बस टिकट खरीदा। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसे इस छोटे से सफर की सजा भुगतनी पड़ेगी लेकिन साथ ही एक छोटा-सा टिकट उसे 15 साल की कैद होने से बचा भी लेगा।

ये है मामला
दरअसल पुलिस ने 2012 में सुबह 6.15 बजे डिपो प्रभारी सीता राम व श्याम सिंह और बस कंडक्टर खेमराम की मौजूदगी में मजहोली से दो किलो चरस के साथ नीतू को गिरफ्तार किया। पुलिस ने उसके खिलाफ नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 की धारा 20 और 61 के तहत मुकद्दमा चलाया।

हिमाचल हाईकोर्ट ने सुनाई 15 साल की सजा
कोर्ट में ट्रायल शुरू होने पर केस दो थ्योरियों पर चला, एक तो पुलिस की और दूसरी नीतू की बस टिकट के आधार पर। केस में संदेह के चलते शिमला विशेष न्यायाधीश ने उसे बरी कर मुकद्दमा रद्द कर दिया। जबकि हिमाचल हाईकोर्ट ने पुलिस की थ्योरी और गवाहों के आधार पर नीतू को 15 साल की जेल और 2 लाख रुपए जुर्माना लगाने का आदेश दिया।हाईकोर्ट ने पीड़ित के वकील की सभी दलीलों को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के मुताबिक कोर्ट एक बस टिकट की थ्योरी पर नहीं चल सकती क्योंकि समय का अंतराल कोई बड़ी बात नहीं है। इसलिए कोर्ट ने नीतू को बरी करने से इंकार कर दिया। इसके बाद पीड़ित नीतू के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट ने नीतू को किया बरी
दरअसल इस केस में दो थ्योरी थी। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में नीतू की गिरफ्तारी 6.15 पर दिखाई जबकि उसने बस 6.51 पर बस ली थी। और बस करीब 8 बजे तक उस स्थान पर पहुंची जहां से पुलिस ने नीतू को गिरफ्तार किया। ऐसे में पुलिस 6.15 पर उसे कैसे अरेस्ट कर सकती है। वहीं कोर्ट में बस डिपो प्रभारी सीता राम ने बताया कि उसकी मौजूदगी में पुलिस ने नीतू को अरेस्ट नहीं किया बल्कि से उसे थाने में 1 बजे  बुलाकर कागजों पर साइन करवा लिए। गवाहों के आधार और नीतू के पास मौजूदा बस टिकट के समय के आधार पर कोर्ट ने पुलिस की थ्योरी को मानने से इंकार कर दिया। पीड़ित के वकील मल्होत्रा ने कहा कि पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी को गलत दिखाया है और झूठा केस दायर किया है। कोर्ट ने नीतू को बाइज्जत बरी कर दिया। इस तरह नीतू एक टिकट की वजह से 15 साल की सजा भुगतने से बच गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बस टिकट से पूरी तरह बात साफ थी कि नीतू गुनहगार नहीं है क्योंकि इतने ज्यादा समय के अंतर में पुलिस कैसे मजहोली पहुंच गई जबकि सने बस ही 6.51 पर पकड़ी। हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्होंने केवल पुलिस और गवाह को ही आधार बनाया जबकि केस के दो पहलू थे।

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