इन गंभीर सवालों पर क्यों चुप हैं प्रधानमंत्री मोदी?

Friday, Oct 06, 2017 - 01:52 PM (IST)

नई दिल्ली: गिरती जीडीपी को लेकर पिछले दिनों अपनी ही पार्टी के नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और शत्रुघ्न सिन्हा के निशाने पर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीरवार को विज्ञान भवन में दिए भाषण में देशवासियों खासकर व्यापारियों की चिंता के निवारण का भरपूर प्रयास किया। हालंाकि जाने-माने अर्थशास्त्रियों के मुताबिक इसके बावजूद भी अभी कई ऐसे गंभीर सवाल बरकरार हैं, जिन पर प्रधानमंत्री ने चुप्पी साध रखी है।

निजी सेक्टर में निवेश?
प्रधानमंत्री ने निजी सेक्टर में निवेश के बारे में कुछ नहीं कहा। वाजिब सवाल है कि उनकी सरकार निजी क्षेत्र में निवेश में कुछ खास क्यों नहीं कर सकी? मॉनीटरिंग कंपनी के सीईओ महेश व्यास कहते हैं कि जारी तिमाही में निवेश के प्रस्ताव पिछली 15 तिमाही में सबसे कम हैं।

नए रोजगार
पीएम ने नए रोजगार पैदा न हो पाने की गंभीर समस्या के बारे में कुछ भी नहीं बोला। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ओबीसी वर्ग में बेरोजगारी की दर बहुत तेजी से बढ़ रही है। कई योजनाएं लागू करने के बावजूद सरकार के पास इस गंभीर सवाल का जवाब नहीं है।

महंगाई पर ब्रेक का श्रेय?
पीएम ने राजकोषीय घाटे में सुधार की बात कही है। यह सही है कि सरकारी घाटे में कमी आई है। लेकिन, ऐसा सरकार की नीति के चलते नहीं बल्कि क्रूड ऑयल के दामों में आई कमी के चलते हुआ है, जिससे आयात बिलों में गिरावट हुई है। वहीं, कम महंगाई का श्रेय आरबीआई को जाता है, जिसकी अच्छी नीति ने खुदरा महंगाई को लम्बे समय के लिए रोक कर रखा।

जीडीपी कैसे ऊपर होगी?
मोदी ने केवल जून की तिमाही में कम जीडीपी दर (5.7 फीसदी) की आलोचना के लिए आलोचकों को निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि यूपीए के दौर में यह इससे भी नीचे जा चुकी थी। यह पूरी तरह से सही नहीं है। सच यह है कि विकास दर पिछली पांच तिमाही से लगातार गिर रही है। जीडीपी में ज्यादातर गिरावट जनवरी-मार्च और अप्रैल-जून में ज्यादा सरकारी खर्च के कारण हुई। वहीं दो कार्यकाल की तुलना भी ठीक नहीं है क्योंकि जीडीपी का फॉर्मूला बदल गया है। ऐसे में सवाल है कि गिर रही जीडीपी कैसे ऊपर जाएगी और नुकसान की भरपाई कैसे होगी।

बैंकिंग क्षेत्र पर चुप्पी? 
बैंकिंग क्षेत्र में गड़बड़ी पर पीएम ने कुछ भी नहीं बोला। हालांकि, पीएम एनपीए से न निपटने के लिए यूपीए पर दोष मढ़ सकते हैं, लेकिन डूबते ऋण और पुनर्पूंजीकरण से निपटने में देरी के लिए कोई बहाना नहीं बना सकते। तीन साल में एनपीए की समस्या जस की तस बनी हुई है। यह बड़ा सवाल खड़ा करता है क्योंकि बैंकिंग इंडस्ट्री की 70 फीसदी संपत्ति पर राज्यों के स्वामित्व वाले बैंकों के जरिए सरकार का नियंत्रण है।

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