क्यों स्वच्छ नहीं हो रही उत्तर भारत की हवा

Wednesday, Nov 22, 2017 - 03:13 AM (IST)

नई दिल्ली: भले ही अपने दावों में सरकार सरप्लस बिजली होने के दावे करती हो मगर देश में बिजली की जरूरतें पूरी करने के लिए और पावर प्लांट लगाने की जरूरत है लेकिन सरकार इन पावर प्लांटों में आवश्यक प्रदूषण स्टैंडर्ड लागू करवाने की तरफ ध्यान नहीं दे रही है। इस कारण उत्तर भारत में हवा बेहद जहरीली हो गई है। 

यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड और यू.एस. स्पेस एजैंसी नासा की तरफ से एक अध्ययन पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बहुत ज्यादा कोयला जलाए जाने के कारण सल्फर डाइआक्साइड (एसओ2) के उत्सर्जन में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई है जबकि चीन में सल्फर डाइआक्साइड के उत्सर्जन में 75 प्रतिशत की कमी आई है। चीन और भारत विश्वभर में कोयले के सबसे बड़े खपतकार हैं और भारत तो एसओ2 उत्सर्जन में चीन को भी मात दे रहा है। 

रिपोर्ट कहती है कि स्मॉग भारत और चीन के लिए बहुत बड़ी सार्वजनिक गंभीर समस्या है। दोनों ही देश वास्तव में पावर प्लांट और इंडस्ट्री के लिए बड़े स्तर पर कोयले का इस्तेमाल करते हैं जो कि प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है। लोकसभा में 10 अगस्त, 2017 को पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया गया है कि पिछले 3 वर्षों में देशभर के पावर प्लांटों में उत्पन्न 72 प्रतिशत बिजली कोयले के इस्तेमाल पर निर्भर है जबकि पिछले एक दशक से पावर प्लांटों में कोयले की खपत 74 प्रतिशत तक बढ़ गई है। 

एयर क्वालिटी पर रिसर्च कर रहे ऐश्वर्य सुधीर का कहना है कि कोयले का इस्तेमाल कर रहे पावर प्लांटों में उत्सर्जन नियंत्रण नियम लागू करवाने में सरकार के फेल होने से वायु प्रदूषण लैवल खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। उनका कहना है कि दिल्ली में 300 किलोमीटर के रेडियस में 13 कोल-फायर्ड प्लांट काम कर रहे हैं जिनमें सल्फर डाइआक्साइड और नाइट्रोजन डाइआक्साइड के उत्र्सन पर कोई नियंत्रण नहीं है। ये दोनों तत्व पार्टिकुलेट मैटर लैवल बढ़ाते हैं। आई.आई.टी. कानपुर की जनवरी, 2016 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में हर रोज 141 टन सल्फर डाइआक्साइड उत्सर्जन होता है। इंडस्ट्रीयल स्रोत मुताबिक कुल उत्सर्जन का 90 प्रतिशत हिस्सा पावर प्लांटों से है। 

हर साल 10 लाख अकाल मौतें
मैरीलैंड स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक कोयले के जलने से सबसे ज्यादा सल्फर डाइआक्साइड उत्पन्न होती है जो कि जहरीली हवा का एक कारक है। सल्फर डाइआक्साइड उत्सर्जन से सल्फेट एरोसोल पैदा होती है जो कि भारत और चीन में गहरी धुंध का कारक है। इस प्रदूषण के कारण ही हर साल 10 लाख अकाल मौतें होती हैं। रिपोर्ट मुताबिक 2005 से 2016 के बीच भारत में एसओ2 उत्सर्जन बढ़ा है जिसके लिए ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों में स्थित पावर प्लांट भी उत्तरदायी हैं। इससे पश्चिम तट पर भी ‘हॉटस्पॉट’ बढ़ा है। 

वहीं ओजोन मॉनीटर कर रहे नासा सैटेलाइट के मुताबिक भी भारत और चीन में इस समय के दौरान एसओ2 की मात्रा में बेहद ज्यादा वृद्धि हुई है। दूसरी तरफ इस दशक में पावर प्लांटों में कोयले का इस्तेमाल भी 50 प्रतिशत की बजाय 100 प्रतिशत तक बढ़ा है जबकि चीन में एसओ2 का लैवल कम हुआ है। इसके पीछे कारण चीन द्वारा पावर प्लांटों को कोयले की बजाय नॉन कोल-बेस्ड पावर प्लांटों में तबदील करना भी है। हालांकि इससे चीन की अर्थव्यवस्था में भी कमी आई है। दूसरी तरफ थर्मल पावर प्लांटों में प्रदूषण कम करने वाले यंत्र लगाकर चीन ने प्रदूषण कम करने में काफी बड़ी उपलब्धि हासिल की है। 

बिजली की बढ़ती मांग के आगे उत्तर भारत में प्रदूषण पर काबू पाने के लिए लंबा रास्ता अपनाना होगा  
चीन के मुकाबले भारत में घनी आबादी के चलते सल्फर डाइआक्साइड उत्सर्जन स्वास्थ्य या गहरी धुंध के लिए बड़ी चुनौती नहीं है लेकिन मैरीलैंड यूनिवॢसटी के एसोसिएट रिसर्च साइंटिस्ट कान ली के मुताबिक जिस हिसाब से जनसंख्या में वृद्धि के साथ बिजली की डिमांड बढ़ रही है उस हिसाब से यह उत्सर्जन खतरनाक हो सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत को आने वाले दिनों में 28 हजार मैगावाट बिजली की और जरूरत है तथा हर साल 80 हजार मिलियन यूनिट बिजली की अतिरिक्त आवश्यकता है। देशभर में 70 प्रतिशत बिजली थर्मल पावर प्लांटों में उत्पन्न होती है और यह मांग बढ़ती जा रही है। 

और भी कारण हैं दिल्ली और आसपास के एरिया में प्रदूषण के 
आई.आई.टी. कानपुर की स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक पावर प्लांटों में कोयले के जलन को ही दिल्ली या आसपास के एरिया में प्रदूषण के लिए कारण नहीं माना जा सकता है। इसके लिए दूसरे कारण भी उत्तरदायी हैं। पार्टिकुलेट मैटर (पी.एम.) 2.5 के पैदा होने के पीछे दिल्ली की सड़कों पर धूल (38 प्रतिशत), व्हीकल (20 प्रतिशत), डोमैस्टिक फ्यूल बॄनग (12 प्रतिशत) और इंडस्ट्रीयल प्वाइंट स्रोत (11 प्रतिशत) ये 4 कारण भी प्रदूषण के कारक हैं। इंडिया स्पैंड रिपोर्ट अक्तूबर, 2017 के मुताबिक पराली के जलने पर पाबंदी से 90 प्रतिशत तक प्रदूषण में सुधार आ सकता है। 

नासा से जारी सैटेलाइट तस्वीरें, जो कि 25 अक्तूबर, 2017 से 8 नवम्बर, 2017 को ली गई हैं, के मुताबिक पंजाब और आसपास के एरिया में पराली जलाए जाने से गहरी धुंध और स्मॉग पैदा हुई है जिससे उत्तर भारत में प्रदूषण लैवल खतरनाक स्तर तक बढ़ा है। 21 नवम्बर, 2016 को जारी इंडिया स्पैंड रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन में एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित करने का फैसला हुआ था। चीन के 900 शहरों में स्थापित 1500 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन के मुकाबले भारत में 23 शहरों में केवल 39 सिस्टम ही स्थापित किए गए हैं। 

एयर क्वालिटी अलर्ट में दिल्ली फेल
ग्रेडिड रिस्पांस एक्शन प्लान (जी.आर.ए.पी.) के डाटा पर ऐश्वर्य सुधीर द्वारा किए अध्ययन मुताबिक दिल्ली सरकार पिछले 11 महीनों (12 जनवरी, 2017 से) में 150 बार प्रदूषण पर अलर्ट करने में फेल साबित हुई है। अध्ययन बताता है कि इस समय के दौरान 95 बार दिल्ली का एयर क्वालिटी लैवल ‘वैरी पुअर’, 49 बार ‘वैरी पुअर टू सेवेयर’ रहा जबकि 6 बार एमरजैंसी जैसी नौबत भी आई। इससे पहले मानसून सीजन ही दिल्ली वासियों के लिए राहत भरा रहा। 9 नवम्बर, 2017 को जारी इंडिया स्पैंड रिपोर्ट मुताबिक अक्तूबर और नवम्बर महीने में भी दिल्ली में 30 बार अलर्ट जारी नहीं किया गया है। सुधीर ने कहा है कि अभी भी समय है कि दिल्ली सरकार दूसरे प्रदेशों की सरकार के साथ मिलकर प्रदूषण लैवल और जहरीला न हो इसके लिए आवश्यक कदम उठाना यकीनी बनाए।  

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