युद्ध के दौरान हथियारों पर कंडोम क्यों चढ़ाते थे सैनिक? वजह उड़ा देगी होश
punjabkesari.in Sunday, Jun 08, 2025 - 12:02 PM (IST)

नेशनल डेस्क। पुराने समय में युद्ध के दौरान हथियारों को सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती थी क्योंकि नमी, कीचड़ और अन्य बाहरी तत्वों से वे जल्दी खराब हो सकते थे। हथियारों को बचाने के लिए कई तरीके अपनाए जाते थे और इन्हीं में से एक अनोखा तरीका था हथियारों पर कंडोम का इस्तेमाल करना। यह सिर्फ एक या दो युद्धों की बात नहीं है बल्कि बड़े पैमाने पर इसका उपयोग होता था।
क्यों किया जाता था हथियारों पर कंडोम का उपयोग?
हथियारों पर कंडोम का इस्तेमाल मुख्य रूप से उन्हें पानी और कीचड़ से बचाने के लिए किया जाता था। इसकी वॉटरप्रूफ प्रकृति इसे इस काम के लिए आदर्श बनाती थी। इसे बंदूक की नोक पर खींचकर ढक दिया जाता था ताकि उसके अंदर नमी या मिट्टी न जा सके।
- 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध: इस युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने इस तकनीक का बखूबी इस्तेमाल किया था। राइफलों की नाल (barrel) को पानी और कीचड़ से बचाने के लिए कंडोम लगाए गए जिससे युद्ध के दौरान राइफलें खराब होने से बच गईं।
- भारतीय नौसेना का इस्तेमाल: इसी युद्ध में भारतीय नौसेना ने भी कंडोम का उपयोग लिम्पेट माइन (limpet mine) को लगाने के लिए किया था। लिम्पेट माइन को दुश्मन के जहाजों पर चिपकाया जाता था और कंडोम उन्हें पानी के भीतर सुरक्षित रखने में मदद करता था। दोनों ही तरीके सफल साबित हुए।
यह भी पढ़ें: शहीद की पत्नी को बदनाम करने की घिनौनी साजिश, AI से बनाया अश्लील वीडियो, पिता-पुत्र...
- द्वितीय विश्व युद्ध: यह तकनीक केवल 1971 के युद्ध तक सीमित नहीं थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी इसका व्यापक उपयोग किया गया था। सैनिकों को अक्सर जंगलों और दलदली इलाकों में लड़ना पड़ता था जहाँ भारी बारिश और कीचड़ आम बात थी। ऐसे में राइफलों को सुरक्षित रखने के लिए कंडोम एक सस्ता और प्रभावी उपाय था।
क्या अब भी हथियारों पर कंडोम का इस्तेमाल होता है?
आज के दौर में हथियार काफी आधुनिक हो गए हैं। उन्हें इस तरह से डिज़ाइन और निर्मित किया जाता है कि वे नमी और गंदगी जैसी बाहरी परिस्थितियों से आसानी से प्रभावित न हों। इसलिए बड़े पैमाने पर अब हथियारों को सुरक्षित रखने के लिए कंडोम का उपयोग नहीं होता है।
हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में, जैसे गुरिल्ला सेनाएँ या सीमित संसाधनों वाली छोटी सैन्य इकाइयाँ, जहाँ आधुनिक रखरखाव उपकरण उपलब्ध नहीं होते वहाँ अभी भी इस तरह के साधारण और प्रभावी तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन सामान्य रूप से अब यह एक पुरानी तकनीक बन चुकी है।