ऑफ द रिकॉर्डः प्रणव मुखर्जी ने RSS की ओर क्यों रुख किया?

Sunday, Jun 03, 2018 - 08:07 AM (IST)

नेशनल डेस्कः पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के नागपुर में आर.एस.एस. मुख्यालय में एक समारोह में जाने के फैसले के पीछे के रहस्य की परतें धीरे-धीरे खुलनी शुरू हो गई हैं। प्रणव दा के नाम से कांग्रेस में जाने जाते मुखर्जी को आशा थी कि पार्टी नेता विशेषकर नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी उनके अनुभव के आधार पर नियमित रूप से राजनीतिक मामलों पर उनकी सलाह लेंगे। यद्यपि पूर्व राष्ट्रपति पद छोडऩे के बाद सक्रिय राजनीति में नहीं लौटते मगर उनको उम्मीद थी कि कांग्रेस नेतृत्व अनौपचारिक रूप से उनसे सलाह लेता रहेगा क्योंकि दादा के पास बहुत-सी जानकारी है। पिछले वर्ष जुलाई में राष्ट्रपति पद से विमुक्त होने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मुखर्जी के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, मुलायम सिंह यादव और अन्य नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं मगर न तो सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी ने मुखर्जी के प्रति अधिक रुचि दिखाई जैसी कि उनको उम्मीदथी।

इसी बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अरुण जेतली, प्रकाश जावड़ेकर, रविशंकर प्रसाद सहित राजग के अन्य नेता उनसे नियमित रूप से मिलते रहे। अगर खबरों पर विश्वास किया जाए तो नितिन गडकरी ने आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत और प्रणव मुखर्जी के बीच नियमित बैठकों का आधार बनाया था। भागवत और मुखर्जी के बीच कम से कम 4 बैठकें हो चुकी हैं। अंतिम बैठक में मुखर्जी ने नागपुर में आर.एस.एस. मुख्यालय में समारोह को संबोधित करने के अपने फैसले को अंतिम रूप दे दिया। एक तरफ ये सभी नेता मुखर्जी से मुलाकातें करते रहे दूसरी तरफ राहुल गांधी ने पार्टी के वरिष्ठतम पदाधिकारी से केवल एक बार मुलाकात की।

कांग्रेसी सूत्रों का कहना है कि प्रणव मुखर्जी जल्दी ही आपा खो देते हैं और खुद को सर्वज्ञाता मानते हैं। उनके इसी व्यवहार ने राहुल गांधी को उनसे दूर रखा। दूसरा कारण यह है कि गांधी परिवार ने प्रणव मुखर्जी पर कभी विश्वास नहीं किया। यही प्रमुख कारण है कि उन्हें 2004 में प्रधानमंत्री के पद से वंचित रखा गया। उन्हें वित्त मंत्री भी नहीं बनाया गया और विदेश मंत्री का पद भी छीन लिया गया। कांग्रेस नेतृत्व द्वारा उपेक्षित किए जाने के बाद प्रणव मुखर्जी ने आर.एस.एस. से बातचीत करने का फैसला किया। मुखर्जी के इस फैसले से कांग्रेस में उनके महत्वाकांक्षी पारिवारिक सदस्यों को कितनी मदद मिलेगी, यह अभी देखना बाकी है या फिर क्या वे भी कांग्रेस को अलविदा कहेंगे।

मुखर्जी को सबसे बड़ी कठिनाई इस बात को लेकर हुई कि राहुल गांधी ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) अध्यक्ष शरद पवार के साथ पिछले एक वर्ष के दौरान कई बार बैठकें कीं। मुखर्जी को पार्टी के भीतर चल रही गतिविधियों से भी अवगत नहीं करवाया गया। यद्यपि पवार-राहुल गांधी की बैठकें कांग्रेस-राकांपा गठबंधन को फिर से मजबूत बनाने की ओर एक कदम है ताकि भाजपा विरोधी व्यापक मोर्चा बनाया जा सके। मुखर्जी इस बात को लेकर नाराज हैं। वह हैरान हैं कि क्या पवार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नए राजनीतिक ‘मेंटर’ हैं।

Seema Sharma

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