ऑफ द रिकॉर्डः अहमद पटेल को खजांची क्यों बनाया?

Thursday, Aug 30, 2018 - 11:52 AM (IST)

नेशनल डेस्कः कांग्रेस पार्टी को फंड की सख्त जरूरत है। मई 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस को फंड की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है। नोटबंदी ने हर राजनीतिक दल को बुरी तरह प्रभावित किया और यदि दिल्ली में अफवाह के गढ़ पर विश्वास किया जाए तो बसपा 300 करोड़ रुपए की नकदी परिवर्तित करने में असफल रही, जबकि किसी के पास इस बात का कोई सुराग नहीं कि कांग्रेस की कितनी नकदी बर्बाद हुई। भाजपा का आरोप है कि उसने समय पर सभी नकदी जमा करवाने के लिए बेहतर योजना बनाई थी लेकिन अब कांग्रेस पार्टी के लिए फंड के स्रोत सूख रहे हैं। दान देने वाले इस बात को लेकर चिंतित हैं कि सी.बी.आई., ई.डी., इन्कम टैक्स और अन्य प्रवर्तन एजैंसियां उन पर नजर रख रही हैं।

एजैंसियों ने 20 शीर्ष कांग्रेस नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए हैं और उनमें से ज्यादातर के घरों पर रेड की है। यहां तक कि नवनियुक्त खजांची अहमद पटेल भी स्टरलाइट बायोटैक मामले में ई.डी./सी.बी.आई. की राडार पर हैं। उनके बंगले पर कब रेड हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। पार्टी को धन की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले मुरली देवड़ा के बेटे मिलिंद देवड़ा को खजांची बनाने की बात चली थी क्योंकि उन्हें मुम्बई में मुकेश अंबानी और अन्य का करीबी माना जाता था। मोतीलाल वोरा को इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि उनका स्वास्थ्य कमजोर है। कनिष्क सिंह कॉर्पोरेट दुनिया में किसी को भी नहीं जानते, तो विकल्प क्या था?

मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे तो अहमद पटेल संचालक थे। तत्कालीन वित्त मंत्री चिदंबरम और यहां तक कि प्रणव मुखर्जी के साथ उनका सबसे अच्छा रिश्ता था। मुख्यमंत्री भी उन्हें रिपोर्ट करते थे, हरियाणा में भूपिंद्र सिंह हुड्डा, राजस्थान में अशोक गहलोत, यहां तक कि महाराष्ट्र में पृथ्वीराज चव्हाण, अशोक चव्हाण आदि भी। यहां तक कि कांग्रेस की चलती-फिरती मनी मशीन कमलनाथ भी पटेल की सुनते हैं। सख्त जरूरत ने पटेल को लगाया। हालांकि राहुल गांधी ने उन्हें पसंद नहीं किया और पिछले एक साल से उन्हें हटा दिया।

Seema Sharma

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