exclusive: परिवारवाद कहां नहीं, राहुल को सिर्फ इसलिए तो नहीं नकारा जा सकता: शत्रुघ्न सिन्हा

punjabkesari.in Tuesday, Nov 28, 2017 - 09:10 AM (IST)

नेशनल डैस्कः भाजपा के कद्दावर नेता, अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा आजकल अपनी पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई साथी नेताओं पर खुल कर हमला कर रहे हैं। इन सबके बावजूद वह मोदी को एक अच्छा और लोकप्रिय राजनेता मानते हैं। लेकिन, यह भी कहते हैं कि सियासत में पॉपुलैरिटी (लोकप्रियता) कोई बैरोमीटर नहीं, बहुमत मायने रखता है। बकौल शत्रुघ्न श्रीमती इंदिरा गांधी से ज्यादा लोकप्रिय शायद ही कोई रहा होगा, बहुमत साथ नहीं होने पर उन्हें भी शिकस्त खानी पड़ी। वह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को भी लोकप्रिय मानते हैं। उनका कहना है कि राहुल को सिर्फ इसलिए तो नहीं नकारा जा सकता कि वह नेहरू-गांधी परिवार से हैं। उनका मानना है कि परिवारवाद कहां नहीं है? यह सवाल वह अपनी पार्टी पर भी उठाते हैं और दूसरों पर भी। पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स ने शत्रुघ्न सिन्हा से  विशेष बातचीत की, प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:

भाजपा में सीनियर लीडर हाशिए पर हैं। क्या कहेंगे आप ?
मेरी बात को अन्यथा न लिया जाए तो हालात वन मैन आर्मी और टू मैन शो वाले हैं। अक्सर दुख होता है कि पार्टी में एक से बढ़कर एक योग्य व्यक्ति हैं, लेकिन कोई उनकी ओर देख नहीं रहा है। नई सरकार मोदी सरकार है। इसे पहले दिन से ही भाजपा की सरकार नहीं कहा गया। पार्टी के वरिष्ठतम नेता लाल कृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, अटल बिहारी वाजपेयी, यशवंत सिन्हा सबको हाशिए पर फैंक दिया गया है। विद्वान व्यक्ति अरुण शौरी को भी साइडलाइन कर दिया गया और मुझ जैसे व्यक्ति को भी। मेरा कसूर क्या? यही न कि मैंने कह दिया था कि जिसे भी नेता बनाएं, अटल और अडवानी जी की रजामंदी ले ली जाए। मैंने न तो किसी का विरोध किया और न ही पैरोकारी। हां, अडवानी जी मेरे सियासी गुरु हैं। अगर यह किसी को बुरा लगता है तो लगे।

यशवंत सिन्हा और आप इन दिनों खुलकर अपनी ही पार्टी और नेता को निशाना बना रहे हैं?
निशाना किसी को नहीं बना रहे हैं। जो पार्टी और देश हित में है, वही बोल रहे हैं। हमारी पार्टी में भी लोकतंत्र है। इस सैटअप में व्यक्ति से बड़ी पार्टी और पार्टी से बड़ा देश। जनहित में जब कोई बात कही जा रही है तो वह पार्टी हित में कही जा रही होती है और राष्ट्रहित में भी। यशवंत सिन्हा ने 7 बार संसद में बजट पेश किया है। आर्थिक मामलों में उनके अनुभव और ज्ञान का उपयोग पार्टी को करना चाहिए था। नोटबंदी और जी.एस.टी. जैसे मामलों पर अगर वह कुछ बोल रहे हैं तो निश्चित रूप से वह मायने रखता है। देश के लिए भी और पार्टी के लिए भी।

टी.वी. कलाकार के मंत्री बनने वाले बयान को क्या समझा जाए?
मैंने कभी पार्टी की मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। जी.एस.टी. या नोटबंदी जैसे आॢथक मामलों का मैं विशेषज्ञ नहीं हूं। लेकिन, लोगों से मैं मिलता हूं। उनसे बात करता हूं। जानकारी लेता हूं और समझने-सीखने की कोशिश करता हूं। नोटबंदी के बाद जाने कितने लोग बर्बाद हो गए। बेरोजगार हो गए। फैक्ट्रियां-उद्योग बंद हो गए। इसीलिए मैंने कहा कि जब टी.वी. कलाकार एच.आर.डी. मंत्री बन सकती हैं, वकील को वित्तमंत्री बनाया जा सकता है और चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बन सकता है तो मैं नोटबंदी और जी.एस.टी. पर क्यों नहीं बोल सकता?

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आपके साथ पी.एम. के रिश्ते  कैसे हैं?
नरेंद्र मोदी मेरे अच्छे सहयोगी रहे। मेरे कद्रदान भी रहे। हम उनके शुक्रगुजार हैं कि तमाम व्यस्तता के बीच वक्त निकाल कर वह मेरे बेटे के विवाह समारोह में शामिल हुए थे, लेकिन इसके लिए जब मैंने शुक्रिया अदा करने को वक्त मांगा तो वह नहीं मिले। शायद उन्हें लगा हो कि मैं कैबिनेट में जगह पाने के वास्ते उनसे मिलना चाहता था। लेकिन, यह सवाल तो है ही। जब मुझ पर किसी तरह का दाग नहीं, कोई इल्जाम नहीं तो हर तरह से योग्य होते हुए भी कैबिनेट में जगह क्यों नहीं  दी गई?  सिर्फ पी.एम. का विवेकाधिकार कह देने भर से नहीं चलेगा न। ॉ

नोटबंदी और जी.एस.टी. को लेकर आप क्या कहेंगे?
यह तो नीम पर करेला जैसा है। मैं इसका एक्सपर्ट नहीं हूं। लेकिन विश्व बैंक, आर.बी.आई., कई अर्थशास्त्रियों ने इस बारे में सरकार को अलर्ट किया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर कुछ भी कहें, लेकिन उनकी योग्यता को नकारा नहीं जा सकता। विपक्ष में हैं, लेकिन विपक्ष जब कुछ कह रहा है तो वह केवल सियासत की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। विपक्षी हमेशा विरोध के लिए ही नहीं बोलता। वह अगर कुछ कह रहा है तो उस पर मनन करना चाहिए। जी.एस.टी. जिस दिन लांच की गई, उस दिन उसे वन कंट्री, वन टैक्स बता कर एक इतिहास बनने का दावा किया गया। लेकिन, यह तो वन कंट्री सैवन टैक्स और अब संशोधन के बाद वन कंट्री फाइव टैक्स है। आगे क्या होगा, कहना मुश्किल है।

दिल्ली में प्रदूषण पर चल रहे ब्लेम गेम पर क्या कहना है?
जब लोगों को शुद्ध हवा तक सरकार नहीं दिला पाए तो समझ लीजिए कि वह क्या कर सकती है। प्रदूषण को लेकर सरकारों के साथ आम लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है। सरकार को इच्छा शक्ति दिखानी होगी। पराली जलाने को लेकर कोई ठोस कानून बनाए और सख्ती से लागू करे। अरविंद केजरीवाल ने पिछली बार ऑड-ईवन का फार्मूला बहुत सही दिया था। सुप्रीमकोर्ट ने भी इसकी तारीफ की थी। इस बार एन.जी.टी. ने इसमें अड़ंगा लगा दिया। लेकिन, प्रदूषण रोकने के लिए किया क्या जाना चाहिए, इस बारे में कुछ नहीं बताया। केजरीवाल की क्रैडिबिलिटी है। वह कर सकता है। नरेंद्र मोदी की भी नीति और नीयत पर कोई शक नहीं किया जा सकता। लेकिन जरूरत है क्रियान्वयन और उसके फॉलोअप की।

हिमाचल और गुजरात चुनाव को आप किस तरह से देख रहे हैं?
मेरा मानना रहा है कि चुनाव हमेशा चुनौती होती है। हां, जिस तरह का माहौल इस बार दिख रहा है, खासकर गुजरात में युवा पीढ़ी एक नहीं तीन-तीन युवा भाजपा के सामने आ खड़े हुए हैं, कांग्रेस के लिए यह स्थिति सोने पे सुहागा जैसी है। इससे भाजपा के सामने विशेष चुनौती आ खड़ी हुई है। इन हालातों को पार्टी के रणनीतिकारों को सावधानी से संभालना होगा और चुनाव आयोग को भी अभी से सावधान रहना चाहिए। ऐसा न हो कि बाद में ई.वी.एम.-वी.वी.पैट जैसे इल्जाम लगने लगें। हम तो अपनी पार्टी और उम्मीदवारों को शुभकामनाएं ही देंगे।

राहुल गांधी के बारे में आप क्या कहेंगे?
मैं बहुत साफ-साफ अपनी बात रखने का आदी हूं। राहुल गांधी को सिर्फ इसलिए तो नहीं नकारा जा सकता कि वह नेहरू-गांधी वंश परंपरा से आए हैं। वह चुनाव जीत कर बाकायदा निर्वाचित होकर संसद में पहुंच रहे हैं। परिवारवाद कहां नहीं है? किस-किस का नाम लूं। तो सिर्फ राहुल गांधी पर वंशवाद का आरोप लगाया जाना उचित नहीं है। क्या हम उनके परिवार के बलिदान को भूल जाएं। नेहरू ने इस देश के लिए क्या किया, इंदिरा और राजीव गांधी ने क्या किया, क्या उसे नकारा जा सकता है?

नीतीश कुमार के पाला बदलने को आप किस तरह से देख रहे हैं?
वह मेरे मित्र हैं। मैं तो यही कहूंगा कि वह काफी समझदार हैं, मैच्योर हैं। उन्होंने क्यों और क्या सोच कर फैसला लिया, वही बेहतर बता सकते हैं।

पद्मावती: भंसाली सामने आएं 
मैं इसे प्रमोशनल स्टंट नहीं मानता। पद्मावती और पॉल्यूशन दोनों का मामला है। वोट बैंक की सियासत है। कोई एक्शन नहीं ले रहा है। मेरा मतलब यह कतई नहीं कि करणी सेना को मैं कंडम कर रहा हूं। राजपूत वीर सपूत इज्जतदार और खुद्दार कौम है। अगर वह कुछ कह रहे हैं तो उन्हें सुना जाना चाहिए। सिनेमेट्री लिबर्टी वहीं तक होनी चाहिए, जहां तक किसी की भावना आहत न हो। संजय लीला भंसाली बहुत योग्य निर्देशक हैं। विवाद पर मेरे, अमिताभ या शाहरुख-आमिर के बोलने से बेहतर है भंसाली खुद अपनी बात रखें, या फिर ऐसे लोग बोलें जो अथॉरिटी हैं। सूचना प्रसारण मंत्री बोलें। प्रधानमंत्री बोलें।

...तो मैं कांग्रेस में होता
मैं यह तो कहूंगा कि श्रीमती इंदिरा गांधी जीवित होतीं तो मैं शायद कांग्रेस में होता। वह मुझे बहुत मानती थीं। इज्जत देती थीं। मेरी छवि की कद्र करती थीं। अब सब कुछ बदल चुका है। नाना जी देशमुख, अडवानी जी, अटल जी के संपर्क में आने के बाद भाजपा मेरी पार्टी बनी। जहां तक पार्टी छोडऩे का सवाल है तो मैंने अपनी किताब में भी जिक्र किया है। मेरे ज्योतिषी ने कहा था कि एक बार मैं अपनी पार्टी छोड़ूंगा। लेकिन, फिलहाल मैं यही कहूंगा कि भाजपा मेरी पहली और आखिरी पार्टी है। बाकी सिचुएशन क्या बनती है, समय तय करेगा। अभी इस पर क्या बोलना।


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