मिजोरम: जहां सभी दलों का भाजपा से रहा है ‘खट्टा मीठा’ रिश्ता!

Tuesday, Nov 13, 2018 - 07:39 PM (IST)

आइजोलः केवल दस लाख की आबादी वाले इस छोटे से पर्वतीय राज्य में, दलों के राजनीतिक समीकरण अभी उलझे हुए हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी एमएनएफ दोनों अपनी ‘भाजपा विरोधी’ पहचान साबित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं और दोनों का भाजपा से अपना-अपना गठजोड़ रहा है। ईसाई बहुल इस राज्य की 40 विधानसभा सीटों पर 28 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले भाजपा का मुख्य चुनावी मुद्दा बनना मिजोरम के तीन दशक के चुनावी इतिहास के आंकड़ों के विपरीत है। दरअसल, भाजपा ने अब तक यहां कभी विधानसभा चुनाव नहीं जीता है। लेकिन अब भाजपा कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के चुनाव अभियान में मुख्य निशाने पर है। ये दोनों दल एक के बाद एक मिजोरम पर शासन करते रहे हैं।

पार्टियां एक दूसरे पर लगा रहीं हैं आरोप
चुनाव प्रचार में तेजी आने के बीच, कांग्रेस और एमएनएफ भाजपा को ‘‘ईसाई-विरोधी’’ बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। उधर भाजपा ने भी उत्तर-पूर्व के इस राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से प्रचार शुरू किया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया है कि इस साल दिसंबर में इस राज्य में क्रिसमस भाजपा के शासन में मनाया जाएगा। मतगणना 11 दिसंबर को होनी है। भाजपा नेता मिजोरम को अपने ‘‘कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर’’ अभियान में ‘‘अंतिम मोर्चे’’ के रूप में देख रहे हैं क्योंकि पार्टी असम, त्रिपुरा, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में सत्ता हासिल कर चुकी है जबकि मेघालय और नगालैंड में वह सत्तारूढ गठबंधन में शामिल है।

मिजोरम कांग्रेस के लिए क्यों है महत्वपूर्ण
मिजोरम कांग्रेस के लिए भी महत्वपूण है क्योंकि उसके शासन वाला यह पूर्वोत्तर का अंतिम राज्य है। केवल दो साल पहले कांग्रेस की असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर सहित इस क्षेत्र के पांच राज्यों में सरकार थी। कांग्रेस 2008 से मिजोरम में सत्ता में हैं और वह लगातार तीसरी जीत पर नजर बनाए हुए है। निवर्तमान विधानसभा में कांग्रेस के 34 विधायक हैं जबकि एमएनएफ के पांच और मिजोरम पीपुल्स कांफ्रेंस का एक विधायक है। कांग्रेस ने 2013 में अपनी सीटों में इजाफा किया था। वर्ष 2008 में उसके पास 32 सीटें थीं लेकिन भाजपा इस बार सत्ता हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। इससे पहले पूर्वोत्तर के दो अन्य ईसाई बहुल राज्यों मेघालय और नगालैंड में भाजपा ने दूसरे स्थान पर रहीं पार्टियों के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली और सर्वाधिक सीटों वाली पार्टी (मेघालय में कांग्रेस सहित) सरकार नहीं बना पाई।

कैसा रहा है क्षेत्रीय पार्टियों का भाजपा से रिश्ता
एमएनएफ भाजपा नीत राजग में शामिल रह चुकी है लेकिन भाजपा ने सभी 40 सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे का फैसला किया है।  हालांकि कांग्रेस राज्य में उसकी पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी रही एमएनएफ पर आगामी चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन पर चुप्पी साधने का आरोप लगा रही है। कांग्रेस ने भाजपा और एमएनएफ के बीच संबंधों को दिखाने के लिए मिजो भाषा में 50 हजार पुस्तिकाएं छपवाई हैं जिसमें दो दलों के प्रमुख अमित शाह और जोरामथांगा एक साथ बैठे दिख रहे हैं। उधर, एमएनएफ चुनावों के लिए भाजपा के साथ किसी भी तरह के संबंधों से इंकार कर रही है और मिजोरम के चकमा स्वायत्त जिला परिषद (सीएडीसी) में दोनों राष्ट्रीय दलों के गठबंधन को उछाल रही है।

कांग्रेस की राह नहीं है आसान
कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि अब उसका परिषद में भाजपा के साथ कोई गठबंधन नहीं है। बीस सदस्यीय सीएडीसी के लिए 20 अप्रैल को हुए चुनाव में खंडित जनादेश आया था और पारंपरिक राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वियों भाजपा और कांग्रेस ने आदिवासी परिषद की कार्यकारी समिति गठित करने का दावा करने के लिए गठबंधन किया था। हालांकि कुछ कांग्रेसी सदस्यों ने भाजपा नीत सीएडीसी से समर्थन वापस ले लिया था। 

Yaspal

Advertising