सच हुए एग्जिट पोल तो क्या होगा? राहुल का बढ़ेगा रुतबा या मोदी लहर पड़ेगी फीकी

Sunday, Dec 09, 2018 - 09:35 AM (IST)

नेशनल डेस्कः 7 दिसम्बर को आए अधिकांश एग्जिट पोल में भाजपा पर कांग्रेस की बढ़त दिखाई गई है। ये नतीजे 2019 के लोकसभा चुनाव की दिशा और जनता का मिजाज तो सामने रखेंगे ही, साथ में पी.एम. नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की लोकप्रियता की कसौटी भी होंगे। अगर यही नतीजे 11 दिसम्बर को आए तो इसके क्या मायने होंगे और 2019 के लिए ये क्या संकेत देंगे? क्या मोदी की राह मुश्किल व राहुल की राह आसान हो जाएगी?

राहुल को मिलेगा सफलता का टॉनिक
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए पहली बार एग्जिट पोल्स में भाजपा के सामने बड़ी सफलता मिलने का अनुमान है। अगर 11 दिसम्बर को यही नतीजे रहे तो राहुल गांधी को आम चुनाव से ठीक पहले सफलता का टॉनिक मिलेगा जिसकी कांग्रेस को सख्त जरूरत थी। इससे 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल स्थापित होंगे और विपक्षी दलों के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी। चूंकि कांग्रेस एम.पी., राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बिना किसी चेहरे के उतरी थी। ऐसे में अगर कांग्रेस जीतती है तो उसका सेहरा राहुल के सिर ही बंधेगा।

ब्रैंड मोदी की धार हो सकती है कुंद
एग्जिट पोल्स के हिसाब से नतीजे आए तो ये ब्रैंड मोदी पर भी असर डालेंगे। पी.एम. नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों में जाकर रैलियां कीं और राजस्थान में तो पूरा जोर लगा दिया था। भाजपा भी पूरे प्रचार में इसी पर फोकस कर रही थी कि 2019 में फिर से मोदी को लाने के लिए इन राज्यों में भाजपा की जीत जरूरी है। कांग्रेस अगर इन राज्यों में भाजपा को मात देने में सफल होती है तो यह मोदी की उस अजेय इमेज को बुरी तरह तोड़ेगा जो इमेज भाजपा दिखाने की कोशिश करती रही है।

वसुंधरा का करियर पड़ सकता है खतरे में
राजस्थान में सी.एम. वसुंधरा राजे सिंधिया के खिलाफ नाराजगी की बात सामने आती रही है। उन्हें हटाने की भी चर्चा हुई लेकिन केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती देते वह जमी रहीं। टिकट वितरण में भी उनकी चली। प्रदेश अध्यक्ष भी अपने हिसाब से तय किया लेकिन जिस तरह एग्जिट पोल्स के नतीजे, जो उनके खिलाफ दिख रहे हैं, अगर सही हुए तो उनके नेतृत्व पर सवाल उठेंगे। पार्टी उन्हें हटा भी सकती है। वहीं गजेंद्र सिंह शेखावत और राज्यवर्धन राठौर जैसे नेताओं को भाजपा राजस्थान में आगे कर सकती है।

शाह का जलवा नहीं रहेगा पहले जैसा
अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद हुए सभी चुनावों की वह धुरी रहे। सभी तरह के चुनावी प्रबंधन, रणनीति एवं टिकट वितरण भी उन्हीं के मार्गदर्शन में हुआ। ऐसे में एग्जिट पोल में आए अधिकांश नतीजों की तरह अगर भाजपा 5 राज्यों में चुनाव हार जाती है तो इससे इनका जलवा पहले जैसा नहीं रहेगा। वहीं उनकी ‘हमारा बूथ सबसे मजबूत’ वाली रणनीति भी फेल मानी जाएगी।

मायावती व अखिलेश की साख भी दाव पर
एग्जिट पोल्स के संकेत बता रहे हैं कि एम.पी., राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में छोटे और क्षेत्रीय दलों को कोई बड़ी सफलता नहीं मिलेगी। हालांकि वे कांग्रेस और भाजपा के लिए मुश्किलें जरूर खड़ी कर रहे हैं। सभी राज्यों में कांटे की टक्कर में इनको मिला वोट किसी का गेम बना रहा है तो बिगाड़ भी रहा है। साथ ही यह अखिलेश और मायावती के लिए भी झटका होगा, जो अंतिम समय में कांग्रेस गठबंधन से अलग होकर लड़े।

चंद्रबाबू नायडू का घटेगा कद
तेलंगाना में कांग्रेस ने टी.आर.एस. के खिलाफ बड़ा गठबंधन बनाया। इसमें चंद्रबाबू नायडू की अगुवाई वाली टी.डी.पी. भी थी। गठबंधन ने बहुत हाई वोल्टेज प्रचार किया लेकिन नतीजे यही रहे तो चंद्रबाबू नायडू का कद तो घटेगा ही, साथ ही गठबंधन के प्रयोग पर भी सवाल उठेंगे और इसके भविष्य पर भी असर पड़ सकता है। के.सी.आर. का समय पूर्व चुनाव कराने का दाव भी सही लगता दिख रहा है। अपरोक्ष रूप से भाजपा भले दौड़ में नहीं दिख रही है लेकिन टी.आर.एस. की जीत से निराश नहीं होगी।

भाजपा पर सहयोगी बनाएंगे दबाव
अगर इन चुनावों में भाजपा चुनाव हार जाती है तो पार्टी को इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है। इस हार से भाजपा सहयोगी उस पर हावी हो जाएंगे। पहले से ही बगावती तेवर दिखा रही भाजपा की पुरानी सहयोगी शिवसेना व कुशवाहा और अधिक दबाव बना सकते हैं।

Seema Sharma

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