इन गलतियों कारण हुआ श्रीलंका का आर्थिक पतन, चीन फैक्टर और भारत की अनदेखी भी पड़ी भारी

Wednesday, Apr 13, 2022 - 03:49 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः  श्रीलंका के आर्थिक पतन को लेकर पूरी दुनिया हैरान है। सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर श्रीलंका की इस दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है? श्रीलंका में चल रहा आर्थिक संकट इतना बढ़ गया है कि मंगलवार को देश के वित्त मंत्रालय ने विदेशी कर्ज चुकाने में असमर्थता प्रकट करते हुए खुद को दिवालिया घोषित कर दिया। श्रीलंका के वित्त मंत्रालय ने कहा कि वह दूसरे देशों की सरकारों समेत अन्य सभी कर्जदाताओं का कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं है। यह भी कहा गया है कि ये कर्जदाता उससे मंगलवार दोपहर से अपने कर्ज पर ब्याज ले सकते हैं या श्रीलंकाई रुपए में कर्ज राशि वापस ले सकते हैं। 

श्रीलंका की सरकार और वहां के लोगों के लिए यह संकट कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकार ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि देश की कमाई के हर 100 अमेरिकी डॉलर पर उन्हें 119 डॉलर का कर्ज अदा करना है । देश के हालात को लेकर श्रीलंका की जनता सड़कों पर है और सवाल कर रही है कि देश इस बदहाली तक पहुंचा कैसे? 

 

श्रीलंका ने की ये बड़ी गलतियां

  • 1948 में अंग्रेजी शासन से आजादी के बाद से अब तक श्रीलंका के ऐसे बुरे दिन कभी नहीं आए। श्रीलंका में राजनीतिक और आर्थिक संकट अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकारों, अर्थशास्त्रियों और श्रीलंका पर्यवेक्षकों के लिए शायद ही कोई आश्चर्य की बात हो।  पिछले कुछ सालों में श्रीलंका ने आर्थिक और राजनीतिक मोर्चों पर कई गलतियां की हैं, जिन्होंने देश को दोहरे घाटे वाली अर्थव्यवस्था बना दिया। 
     
  • इस समस्या के दो पहलू रहे। पहला, पिछले कुछ वर्षों में श्रीलंका ने दूसरे देशों से- खास तौर पर चीन से काफी ज्यादा मात्रा में कर्ज लिया और  इस कर्ज की शर्तें और कर्जा उतारने की किश्तें कुछ इस तरह हैं कि श्रीलंका पर काफी बड़ा लोन लद गया है। दूसरा पहलू यह है कि पिछले कुछ सालों में श्रीलंका में निर्यात योग्य वस्तुओं के उत्पादन में भारी कमी आयी है। 
     
  • राजपक्षे के तुगलकी नीतियों का इसमें बड़ा योगदान है।मिसाल के तौर पर चाय और चावल के उत्पादन  को लेकर राजपक्षे ने 2021 में रासायनिक फर्टिलाइजर के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया।  नतीजन चीनी कर्जे की मार झेल रहे देश का निर्यात स्तर काफी घट गया और श्रीलंका को दोहरे घाटे वाली अर्थव्यवस्था बनने में देर नहीं लगी। 

 
कोविड महामारी की मार 
कोविड महामारी के चलते पर्यटन पर निर्भर श्रीलंकाई अर्थव्यवथा की हालत और लचर हो गई। फरवरी के अंत तक इसका भंडार घटकर 2.31 अरब डॉलर रह गया, जो दो साल पहले की तुलना में करीब 70 फीसदी कम है। भारत, बांग्लादेश और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने श्रीलंका की मदद करने की कोशिश तो की लेकिन कर्जा बहुत है और इससे निपटने के लिए सुधार की क्षमता और इच्छा कम है। 

चीन से दोस्ती  और भारत की अनदेखी पड़ रही भारी
दक्षिणी श्रीलंका में एक बंदरगाह निर्माण के लिए श्रीलंका को 1.4 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्जा चुकाना था। ऐसा न कर पाने की स्थिति में श्रीलंका को हंबनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों के लिए एक चीनी कंपनी को सुविधा पट्टे पर देने के लिए मजबूर होना पड़ा था।   भारत, जापान, और अमेरिका की तमाम सलाहों के बावजूद श्रीलंका ने साफ इंकार कर दिया कि उसके बंदरगाहों का इस्तेमाल किसी भी सैन्य उद्देश्य के लिए किया जा सकता है।  हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर भारत की सलाह की अनदेखी भी श्रीलंका को भारी पड़ रही है।

 

 वर्षों के वित्तीय और आर्थिक कुप्रबंधन, 2019 की कर कटौती जैसी लोकलुभावन नीति, रासायनिक उर्वरकों पर पूर्ण प्रतिबंध जैसी गलत नीतियों ने पिछले कई बरसों से श्रीलंका को खोखला कर डाला।  अपनी लोकलुभावन नीतियों और विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए श्रीलंका ने चीन से बेल्ट और रोड परियोजना के तहत भी बड़ा कर्जा लिया। 

राजपक्षे भाइयों की नीतियों ने किया बेड़ागर्क
इन तमाम गलतियों के साथ साथ एक बड़ी समस्या यह रही कि राजपक्षे भाइयों ने सत्ता में बने रहने के लिए एक के बाद एक बड़ी लोकलुभावन नीतियों की भी घोषणा की। 2019 में चुनाव प्रचार के दौरान राजपक्षे ने टैक्स में भारी छूट का वादा किया और यह उनके सत्ता में आने के बाद राजकोषीय घाटे को बढ़ाने की एक बहुत बड़ी वजह बना। ऐसे तमाम छोटे बड़े लोकलुभावन निर्णयों ने श्रीलंका की आर्थिक हालत चौपट कर दी।  लिहाजा श्रीलंका को चीन से कर्जे लेने पड़े और साथ ही अपने बंदरगाहों को भी चीन को चालाने के लिए देना पड़ा। जो पैसे श्री लंका ने इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए और बेल्ट और रोड के जरिये विकास के लिए लिए थे,  बोगस निवेश के प्रोजेक्टों में और जनता को बेतहाशा सब्सिडी देने में वो खर्च हो गए।  अब श्री लंका के पास विदेशी मुद्रा रिसर्व नाम मात्र को बचा है। 

संकट में भारत बना मसीहा 
अब भारत ने 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट के माध्यम से श्रीलंका और उसके लोगों की मदद करने की कोशिश की है। भारत ने बड़े पैमाने पर बिजली कटौती का सामना कर रहे देश को 2,70,000 मीट्रिक टन ईंधन की आपूर्ति भी की है।  यह सराहनीय कदम हैं और मोदी की नेबरहुड फर्स्ट की नीति की गम्भीरता की पुष्टि करते हैं। 

Tanuja

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