NASA ने स्पेस में भेजे आलू! वजह जानकर उड़ जाएंगे होश
punjabkesari.in Friday, May 30, 2025 - 03:58 PM (IST)

नेशनल डेस्क। आपके किचन की सबसे पसंदीदा और हर सब्जी में फिट होने वाली आलू एक ऐसी सब्जी है जिसे हम हर व्यंजन में शामिल कर सकते हैं - चाहे वह आलू-टमाटर हो, आलू-गोभी हो, या आलू के पकौड़े। आलू की इसी बहुमुखी प्रतिभा को दुनिया भर में सेलिब्रेट करने के लिए हर साल 30 मई को 'अंतरराष्ट्रीय आलू दिवस' मनाया जाता है। इसकी शुरुआत हाल ही में साल 2024 से ही हुई है।
अंतरिक्ष में आलू का अनोखा सफर: NASA का बड़ा प्रयोग
यह जानकर आपको शायद हैरानी होगी कि आलू ने सिर्फ हमारी थाली में ही नहीं बल्कि अंतरिक्ष में भी अपनी जगह बनाई है! दरअसल NASA (नासा) ने आलू को अंतरिक्ष में कई खास मकसदों से भेजा था:
- शून्य गुरुत्वाकर्षण में पौधों का अध्ययन: वैज्ञानिक यह समझना चाहते थे कि शून्य गुरुत्वाकर्षण में पौधे कैसे विकसित होते हैं।
- अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ताज़ा भोजन: इसका उद्देश्य अंतरिक्ष यात्रियों को लंबे मिशनों के दौरान ताज़ा भोजन उपलब्ध कराने के तरीके खोजना था।
- प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन की खोज: NASA यह भी पता लगाना चाहता था कि क्या पौधे मंगल ग्रह जैसी खराब और विषम परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
- चुनाव का कारण: आलू को इसलिए चुना गया क्योंकि यह अलग-अलग जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है और इसकी कठोरता तथा विभिन्न परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता इसे मंगल ग्रह पर एक संभावित खाद्य स्रोत के रूप में देखा गया।
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ISS (अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन) पर NASA ने 'वेजी' (Veggie) नाम की एक प्रणाली विकसित की जिसमें अंतरिक्ष में पौधे उगाए जाते हैं। नासा ने माइक्रोग्रैविटी में आलू की बढ़ोतरी आलू का इस्तेमाल करके कंक्रीट बनाने और अलग तरह के पर्यावरण में आलू उगाने की क्षमता का भी अध्ययन किया है।
आलू का दिलचस्प इतिहास: पेरू से भारत तक का सफर
आलू का इतिहास काफी पुराना और दिलचस्प है। इसकी खेती सबसे पहले दक्षिण अमेरिका के पेरू में लगभग 7000 साल पहले शुरू हुई थी। तब वहां इसे 'कामाटा' और 'बटाटा' जैसे नामों से जाना जाता था।
- यूरोप में आगमन: 16वीं सदी में यह स्पेन के रास्ते यूरोप पहुंचा जहां इसे 'पोटैटो' नाम दिया गया। कहा जाता है कि कोलंबस जब दुनिया की यात्रा पर निकले तो वे अपने साथ आलू लेकर आए थे।
- भारत में प्रवेश: भारत में आलू यूरोपीय और डच व्यापारियों के ज़रिए 15वीं शताब्दी में पहुंचा। जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने आलू के व्यापार में लाभ देखा तो 18वीं सदी में भारत में इसकी बड़े पैमाने पर खेती शुरू हो गई।
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बंगाली व्यंजनों से पूरे भारत में पहचान
ब्रिटिश शासन के दौरान जब वे कलकत्ता (अब कोलकाता) में थे तो उन्होंने लगभग हर बंगाली व्यंजन में आलू का इस्तेमाल किया। जब लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह कलकत्ता पहुंचे तो उनके शाही खानसामे ने भी शाही पकवानों में आलू का प्रयोग किया। तब से आलू सिर्फ कलकत्ता में ही नहीं बल्कि पूरे भारत के कोने-कोने में लोकप्रिय हो गया और आज यह हर भारतीय रसोई का एक अभिन्न अंग है।