नजरिया : 370 पर असली तमाचा तो ट्रम्प और जिनपिंग को मारा है मोदी ने

Tuesday, Aug 06, 2019 - 04:46 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा) : कश्मीर में अनुच्छेद 370 के मुख्य प्रावधानों का निरस्तीकरण भारत की ओर से पाकिस्तान को करारा जवाब माना जा रहा है। लेकिन दरअसल बात इससे भी आगे की है। पाकिस्तान की वास्तव में भारत के सामने कोई हैसियत है ही नहीं। वो तो भारत की कूटनीति के चलते वैश्विक पटल पर अलग-थलग पड़ा हुआ है। यहां तक कि इस्लामिक देशों के संघ तक में उसके विरोध के बावजूद सुषमा स्वराज का भाषण हुआ। ऐसे में 370 का हटाया जाना पाकिस्तान से अधिक उसके शुभचिंतक राष्ट्रों चीन और अमरीका के लिए ज्यादा बड़ा झटका है। यूं कह लें कि मोदी ने जिनपिंग और ट्रम्प को सीधे सीधे कूटनीतिक तमाचा मारा है। ये दोनों देश अपने निजी हितों के लिए कश्मीर का मसला उभारकर भारत पर दवाब बढ़ाना चाह रहे थे।

शंघाई संगठन की बैठक के दौरान शी जिनपिंग ने कश्मीर मसले पर मध्यस्थता का प्रस्ताव रखा था। पीएम मोदी ने बिना वक्त गंवाए उन्हें वहीं जवाब दे डाला था कि यह दोनों देशों का आपसी मामला है और इसमें किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं है। उधर हाल ही में अमरीका में इमरान खान के साथ बातचीत के दौरान ट्रम्प का ब्यान आया था कि मोदी ने अमरीका से बातचीत शुरू करवाने में मदद को कहा था। ट्रम्प का यह ब्यान झूठा था जिसे खुद ट्रम्प प्रशासन ने भी माना , लेकिन इससे अमरीका की पाकिस्तान को खुश करने की रणनीति सार्वजानिक हो गयी। अतीत में पाकिस्तान की थोड़ी बहुत मदद रोककर अमरीका ने यह दर्शाना चाहा था कि वो भारत का समर्थक है। लेकिन इस बार बिल्ली थैले से बाहर आ गयी। ऐसे में अब जब भारत सरकार ने 370 में आमूल चूल परिवर्तन (इसके मूल प्रावधानों के निरस्तीकरण के साथ ) कर डाला तो जाहिर है यह चीन और अमरीका के लिए बड़ा झटका है। पाकिस्तान से भी बड़ा।


अब बदल जाएगी कश्मीर को लेकर स्थिति
कश्मीर से 370 को ख़त्म करके और केंद्र शासित प्रदेश बनाकर भारत ने अब इस मसले पर अब तक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर होने वाली तमाम चर्चाओं को विराम लगा दिया है। अब कश्मीर भारत का हिस्सा है। इस लिहाज़ से यह भारत -पाकिस्तान के बीच बातचीत का विषय भी नहीं रहा। जब तक कश्मीर में दो निशान, दो विधान थे तब तक यह पाकिस्तान के लिए विषय था। अब यह विषिद्ध रूप से भारत का आंतरिक मामला है। ऐसे में भविष्य में अगर भारत पाकिस्तान के बीच कोई बातचीत होती है तो उसमे कश्मीर कभी भी शामिल नहीं होगा क्योंकि अब कश्मीर पर कोई विवाद नहीं है और यह भारत का हिस्सा है जहां भारत का निशान, विधान सब लागू होता है। जबकि इससे पहले पाकिस्तान हर बातचीत में कश्मीर को एजेंडे में शामिल कराता था। यही वजह है कि उसका विधवा विलाप बड़े जोर से हो रहा है।


कुछ नहीं होगा, न राष्ट्र में न संयुक्त राष्ट्र में
एक धारणा यह है कि केंद्र के इस कदम को अदालत में चुनौती मिलेगी। अव्वल तो यह होता नहीं दिख रहा। हुआ भी तो जरूरी नहीं कि सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई करे क्योंकि तमाम काम संविधान के दायरे में रहकर किया गया है। जो आरोप लग रहे हैं वे महज सियासी हैं कानूनी मोर्चे पर नहीं टिकेंगे। यानी राष्ट्र में ज्यादा कुछ नहीं होने वाला अब। उधर पाकिस्तान को भी मालूम है कि बात उसके हाथ से निकल चुकी है। यही बात है कि वो इसे इस्लामिक संगठन में उठाने की बात कर रहा है। हालाँकि कोई बड़ी बात नहीं कि वो यूएन में भी मसला उठाये। लेकिन तकनीकी रूप से यूएन में कश्मीर मसला कई बार उठा है और हमेशा पाकिस्तान ने मुंह की खाई है। वास्तव में यूएन नियमानुसार इसमें हतस्क्षेप कर ही नहीं सकता और इसमें दिलचस्प ढंग से पाकिस्तान की सहमति है। शिमला समझौते के अनुसार पाकिस्तान ने माना है कि कश्मीर दो देशों के बीच का मसला है और तीसरा पक्ष इसमें शामिल नहीं होगा। इसलिए यूएन में इसी आधार पर उसके प्रयास औंधे होते रहे हैं।


शाह ने क्यों छेड़ा पीओके राग
संसद में आज अमित शाह ने साफ़ किया कि जब भी वे कश्मीर की बात करते हैं तो अक्साई चीन और पीओके उसमे शामिल है। अक्साई चीन अब केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का हिस्सा होगा और पीओके पर भारत का पूरा दावा भी उन्होंने दोहराया। इसमें भी विशेष रणनीति निहित है। भारत ने 1948 में कश्मीर पर यूएन में पहला प्रस्ताव दिया था। उस प्रस्ताव की संख्या 38 थी , उसी साल प्रस्ताव 39 , 47 और 51 भी दिए गए। इन प्रस्तावों की परिणीति यह हुई थी कि भारत कश्मीर में जनमत संग्रह पर राजी हो गया था (जिसे नेहरू की बड़ी गलती कहा जाता है यह वही प्रस्ताव था, जिसे अब सुब्रह्मण्यम स्वामी वापस लेने की मांग कर रहे हैं ) हालाँकि इसमें यह तय हुआ था कि दोनों पक्ष विवादित क्षेत्र से अपनी सेनाएं पीछे ले जायेंगे।भारत ऐसा करते हुए एलओसी पर आकर टिक गया। पाकिस्तान ने पीओके में ऐसा नहीं किया और अपना कब्ज़ा नहीं छोड़ा। उसी आधार पर भारत भी अब तक जनमत संग्रह से इंकार करता रहा है। लेकिन इस सबसे यह हो गया कि भारत -पाकिस्तान के बीच पीओके तो आधिकारिक रूप से विवादित क्षेत्र हो गया जबकि भारत का कश्मीर इससे बाहर रहा क्योंकि भारत ने इसे स्वायत्तता दे रखी थी। ऐसे में अब अगर जितेंद्र सिंह पीओके लेने की बात कर रहे हैं तो यह उसी वजह से है। यानी अब पाकिस्तान को पीओके पर लड़ना होगा यह कश्मीर तो अब भारत का अभिन्न अंग है। अब जिस कश्मीर पर भी बात होगी वो पीओके ही होगा।

Seema Sharma

Advertising