उपराष्ट्रपति ने सांसदों और विधायकों के व्यवहार पर जताई नाराजगी

Sunday, Jul 28, 2019 - 08:02 PM (IST)

नई दिल्लीः भारत के उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू शनिवार को कहा है कि संसद और विधानसभाओं के कामकाज को अवरुद्ध करना लोकतंत्र को नष्ट करने और लोगों के साथ विश्वासघात करने के समान है। नायडू  ने महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग द्वारा मुंबई में आयोजित एक समारोह में 'लोकतंत्र पुरस्कार' प्रदान करने के बाद कहा कि पिछले दो वर्षों के दौरान वह राज्यसभा में कुछ धड़ों के व्यवहार से बहुत दुखी हुए। जब सदस्य सदन में नियमों और परंपराओं की अवहेलना करते हैं तो उपराष्ट्रपति को दुख हुआ। उन्होंने कहा कि राज्यसभा के सदस्यों पर उदाहरण प्रस्तुत करने की विशेष जिम्मेदारी होती है। यदि सांसद और विधायक नारेबाजी करते हैं और कार्यवाही को बाधित करते हैं, तो वे संसदीय लोकतंत्र का अपकार करते हैं।

महिला सांसद पर आपत्तिजनक टिप्पणी पर जताया दुख
नायडू ने एक महिला पीठासीन अधिकारी के बारे में लोकसभा के एक सदस्य द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणी पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि महिलाओं का अनादर करना हमारी संस्कृति में नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसा व्यवहार हमारे संसदीय लोकतंत्र का अपमान करेगा। यह बताते हुए कि सत्ताधारी और विपक्षी दलों को एक-दूसरे को शत्रु या विरोधी नहीं मानना चाहिए।उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोगों के जनादेश का सम्मान करना और जनादेश के अनुसार सरकारों को कार्य करने देना विधायिकाओं का एक अनिवार्य सिद्धांत होना चाहिए।

कामकाज सुनिश्चित करना पक्ष-विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी
यह देखते हुए कि संसद और विधानसभाओं के प्रभावी कामकाज को सुनिश्चित करने में सत्ताधारी और विपक्षी दोनों दलों की साझा जिम्मेदारी है, नायडू ने उनसे आपसी सम्मान और समायोजन की भावना अपनाने का आग्रह किया। उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र का अर्थ बहस, चर्चा और निर्णय है और इनकी जगह व्यवधान, विघ्न और कार्य में देरी "जो कि लोकतंत्र की भावना की उपेक्षा के अलावा कुछ नहीं है" नहीं ले सकती।

लोगों के कल्याण के लिए करें काम
नायडू ने कहा कि सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों को देश के लोगों के कल्याण और देश के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन में संयुक्त हितधारकों के रूप में कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि “हमारे राष्ट्र को प्रभावी और जिम्मेदार सरकारों और विपक्ष दोनों की आवश्यकता है। यदि दोनों में से किसी की भी कमी पाई जाती है तो देश के हितों की अच्छी सेवा नहीं मानी जा सकती।”

उपराष्ट्रपति ने कहा "राज्यसभा के पीठासीन अधिकारी के रूप में मैंने हमेशा जोर देकर कहा है कि विपक्ष को सदन के कामकाज के सभी पहलुओं में अपनी बात कहने की अनुमति दी जानी चाहिए। यही एकमात्र तरीका है जिससे हम दुनिया के अपने संसदीय लोकतंत्र को अधिक सार्थक बना सकते हैं। हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। हम गुणवत्ता के मामले में भी सबसे अच्छे होंगे।”
 

Yaspal

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