जानें केंद्र सरकार के इस फैसले से सेना के 1 लाख अफसरों में है भारी नाराज़गी

Wednesday, Dec 05, 2018 - 07:19 PM (IST)

नेशनल डेस्क (मनीष शर्मा): देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 में दिल्ली के रामलीला मैदान में जय जवान जय किसान का नारा दिया था। आधी सदी बीत जाने के बाद भी यह नारा, नारा ही रहा वास्तविकता में कभी तब्दील नहीं हुआ। क़र्ज़ के बोझ में दबे किसान ख़ुदकुशी कर रहे हैं और सीमा पर जवान भीषण गर्मी और सर्दी की परवाह किये बिना देश की रक्षा के लिए अपनी जान दे रहे हैं। इन दोनों के लिए मुश्किल मौत नहीं बल्कि  ज़िन्दगी है। खुशहाल ज़िन्दगी के लिए आज भी जवान और किसान सरकार से भीख नहीं अपना हक़ मांग रहे हैं लेकिन बदले में उनके हाथ निराशा ही लग रही है।

किसान का MSP और जवान का MSP
पिछले सप्ताह देश भर से किसान दिल्ली में फसलों का मिनिमम सपोर्ट प्राइस मतलब  न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लागत से डेढ़ गुना करने की मांग करने के लिए जुटे थे। यह पिछले तीन महीनों किसानों की तीसरी बड़ी रैली थी। उनको खाली हाथ लौटना पड़ा।

वहीँ इस सप्ताह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने थलसेना के जूनियर कमीशंड अधिकारियों (जेसीओ) सहित सशस्त्र बलों के करीब 1.12 लाख जेसीओ को ज्यादा मिलिट्री सर्विस पे मतलब सैन्य सेवा वेतन (MSP) दिए जाने की बहुप्रतीक्षित मांग को खारिज कर दिया है। वित्त मंत्रालय के इस फैसले से थलसेना मुख्यालय में ‘‘बहुत रोष’ है और वह इसकी समीक्षा की मांग करने जा रहा है।

क्या थी जवानों की मांग?

  • जूनियर कमीशंड अधिकारियों की मासिक एमएसपी 5,500 रुपए से बढ़ाकर 10,000 रुपए करने की मांग थी।
  • यदि सरकार ने मांग मान ली होती तो सरकार पर हर साल सिर्फ 610 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ता।
  • सैनिकों की विशिष्ट सेवा स्थितियों और उनकी मुश्किलों को देखते हुए सशस्त्र बलों के लिए एमएसपी की शुरुआत की गई थी। अभी एमएसपी की दो श्रेणियां हैं - एक अधिकारियों के लिए और दूसरी जेसीओ एवं जवानों के लिए।
  • थलसेना जेसीओ के लिए ज्यादा एमएसपी की मांग करती रही है। उसकी दलील है कि जेसीओ राजपत्रित अधिकारी (ग्रुप बी) हैं और सेना की कमान एवं नियंत्रण ढांचे में अहम भूमिका निभाते हैं। लिहाजा उन्हें जवानों के बराबर की एमएसपी देना गलत है। सरकार के इस फैसले से 87,646 जेसीओ और नौसेना एवं वायुसेना में जेसीओ के समकक्ष 25,434 कर्मियों  सहित करीब 1.12 लाख सैन्यकर्मी प्रभावित होंगे।
  • जब हम गर्व से कहते हैं कि हमारी आर्मी दुनिया की सबसे बड़ी आर्मी है तो हम भूल जाते हैं कि जितनी अधिक संख्या होगी उसके रखरखाव पर उतना ही अधिक खर्चा होगा। इंडियन आर्मी में इस समय 13 लाख से ज़्यादा जवान हैं। सीमा पर तो हमारे जवान शहीद होते ही हैं लेकिन आर्थिक और मानसिक परेशानियों के चलते उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में दिसंबर 2017 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक:
युद्ध के बिना ही हर साल 1600 से ज़्यादा जवानों की मौत हो रही है।
औसतन 120 जवान हर साल आत्महत्या कर रहे हैं।
2014 से २०१७ तक  330 जवान जिसमे 19 जेसीओ भी हैं ने आत्महत्या की।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात में कहते हैं कि हर भारतीय को  सशस्त्र बलों और सेना के जवानों पर गर्व है लेकिन अगर आज सरकार 1 लाख से अधिक जेसीओ की मांग मान लेती तो उन्हें भी अपनी सरकार पर गर्व होता। 
 

shukdev

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