पर्यावरण मंत्री अनिल दवे के निधन पर बोले PM मोदी, 'ये मेरे लिए निजी क्षति'
Thursday, May 18, 2017 - 12:08 PM (IST)
नई दिल्ली: केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अनिल माधव दवे का आज सुबह यहां दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 60 वर्ष के थे। सुबह अचानक तबीयत बिगड़ जाने की वजह से उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ले जाया गया था जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। वन और पर्यावरण मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि दवे का आज सुबह कोयम्बटूर जाने का कार्यक्रम था लेकिन इसी बीच उनकी तबीयत बिगड़ गई और उन्हें तुरन्त अस्पताल ले जाना पड़ा।
मोदी ने जताया दुख
Anil Madhav Dave ji will be remembered as a devoted public servant. He was tremendously passionate towards conserving the environment.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 18, 2017
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दवे के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे अपनी निजी क्षति बताया है। मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, मैं कल शाम को अनिल दवे जी के साथ था। उनके साथ नीतिगत मुद्दों पर चर्चा कर रहा था। उनका निधन मेरा निजी नुकसान है। उन्हें लोग जुझारू लोक सेवक के तौर पर याद रखेंगे। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में वह काफी जुझारू थे। केन्द्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू, सुरेश प्रभु, स्मृति ईरानी, आदि ने भी श्री दवे के निधन पर शोक व्यक्त किया है।
I was with Anil Madhav Dave ji till late last evening, discussing key policy issues. This demise is a personal loss.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 18, 2017
पर्यावरण संरक्षण के अभियान में थे काफी सक्रिय
मध्यप्रदेश से राज्यसभा के सांसद दवे पर्यावरण मंत्री बनने से पहले ही पर्यावरण संरक्षण के अभियान में काफी सक्रिय रहे थे। नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए उन्होंने अपना एक संगठन बना रखा था। वह पर्यावरण के क्षेत्र में काफी अध्ययन करते थे और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते का भारत की ओर से अनुमोदन किये जाने में दवे ने अहम भूमिका निभाई थी। पीएम की पर्यावरण से जुडी योजनाओं में वह एक प्रमुख नीतिकार और सलाहकार थे। दवे का जन्म छह जुलाई 1956 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था। वह शुरू से ही आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्त्ता रहे थे। दवे को पांच जुलाई 2016 को वन एवं पर्यावरण मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था। उनके मंत्रित्वकाल में हाल ही में सरसो की जीएम फसल को पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने व्यवसायिक खेती की मंजूरी दी थी जिसे लेकर कई कृषक संगठनों ने गहरा विरोध जताया था।