केंद्र ने किया समलैंगिक विवाह का विरोध, कहा- दो महिलाओं की शादी काे नहीं दे सकते मान्यता

Friday, Feb 26, 2021 - 11:46 AM (IST)

नेशनल डेस्क: भारत में विवाह दो व्यक्तियों के बीच महज मिलन नहीं है, बल्कि यह जैविक पुरुष और जैविक स्त्री के बीच एक संस्था है। केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए यह बात कही। सरकार ने कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप से पर्सनल लॉ का नाजुक संतुलन पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो जाएगा। मौलिक अधिकारों का विस्तार कर इसमें समलैंगिक विवाहों के मौलिक अधिकार को शामिल नहीं किया जा सकता।

 

शादी  मान्यता प्राप्त दो व्यक्तिों का मिलन: सरकार 
सरकार ने यह बात समलैंगिक जोड़ों की तरफ से अपनी पसंद के साथी से विवाह करने को मौलिक अधिकार के दायरे में लाने की मांग वाली एक याचिका के जबाव में कही। उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि इसने कुछ व्यवहार को अपराध मुक्त किया है और इसे वैधानिक नहीं बनाया है। इसने कहा कि शादी निश्चित रूप से सामाजिक मान्यता प्राप्त दो व्यक्तिों का मिलन है जो बिना कोड वाले पर्सनल लॉ से या संहिताबद्ध वैधानिक कानून से निर्देशित होते हैं। 

 

अदालत के निर्देशों का करें पालन: दिल्ली सरकार 
केंद्र ने हलफनामा में कहा कि एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच शादी को न तो बिना कोड वाले पर्सनल लॉ में और न ही संहिताबद्ध वैधानिक कानून में स्वीकार्यता मिली है। इस बीच दिल्ली सरकार ने इसी तरह की एक याचिका पर कहा कि विशेष विवाह कानून (एसएमए) में दो महिलाओं के बीच शादी का कोई प्रावधान नहीं है और वह अदालत के निर्देशों का पालन करना चाहेगी। 


 दो महिलाओं ने शादी की मांगी इजाजत
दिल्ली सरकार का रूख एक याचिका के जवाब में आया जिसमें दो महिलाओं ने एसएमए के तहत शादी करने की इजाजत मांगी थी। मित्रा एवं समान अधिकार कार्यकर्ता गोपी शंकर एम., गिती थडानी और जी ओ उर्वशी ने याचिका दायर कर कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा आपसी रजामंदी से एक ही लिंग के लोगों के बीच यौन क्रिया को अपराध मुक्त करने के बावजूद समलैंगिक युगल के बीच शादियां संभव नहीं हो पा रही हैं। इसके जवाब में केंद्र ने कहा है कि उच्चतम न्यायालय ने नवतेज सिंह जौहर मामले में अपने फैसले में केवल एक निर्दिष्ट मानवीय व्यवहार को अपराधमुक्त किया था।
 

vasudha

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