तीन तलाक: शाहबानो से शायरा बानो तक जानिए कब क्या हुआ

Wednesday, Jul 31, 2019 - 05:23 AM (IST)

नई दिल्ली: राज्यसभा में मंगलवार को मुस्लिम महिलाओं को अति परेशान करने वाली, चिंताजनक, दुखदायी एवं परिवार को बर्बाद करने वाली 3 तलाक की 1400 वर्ष पुरानी त्रासदी से निजात देते हुए  ऐतिहासिक विधेयक पास हो गया है। इस बिल के समर्थन में 99 और विपक्ष में 84 मत पड़ें।इस क्रांतिकारी फैसले से मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से छुटकारा ही नहीं मिला बल्कि भविष्य में भारतीय संविधान में दिए गए स्वतंत्रता एवं समानता के अधिकारों के दरवाजे भी हमेशा-हमेशा के लिए खुल जाएंगे और वे दूसरे धर्मों की महिलाओं की तरह मौलिक अधिकारों को हासिल करके सम्मानपूर्वक जीवन बसर कर सकेंगी।

यह फैसला उनके लिए एक नए युग का आगाज होगा और वे वर्षों पुरानी रूढि़वादी पुरातन पंथी और जीर्ण-शीर्ण समाजिक बुराई एवं कुप्रथा से छुटकारा पा सकेंगी। भारत के पांच भिन्न-भिन्न धर्मों से संबंधित पंच-परमेश्वर के फैसले की विश्व भर में प्रशंसा हो रही है। इस्लाम के अन्य सम्प्रदायों में शिया बोहरा, खोजे और अहमदियों ने भी इसे सहर्ष स्वीकार किया है क्योंकि 22 मुस्लिम देशों ने पहले ही 3 तलाक को हमेशा के लिए दफन कर दिया है जिनमें भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान और बंगलादेश भी हैं। 

 

1978 में शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर मच गया था बवाल
1978 में मध्‍य प्रदेश के इंदौर की शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने तलाक दे दिया था। 5 बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानून की शरण ली। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और उस पर सुनवाई हुई। उच्चतम न्यायालय तक पहुंचते मामले को 7 साल बीत चुके थे। न्यायालय ने IPC की धारा 125 के अंतर्गत निर्णय दिया जो हर किसी पर लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो। कोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाते हुए शाहबानो के हक में फैसला देते हुए मोहम्मद खान को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।


कानूनी तलाक भत्ते पर देशभर में मचा था हंगामा
शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देशभर में राजनीतिक बवाल मच गया। शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पुरजोर विरोध किया। राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले मुआवजे को निरस्त करते हुए एक साल के भीतर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया।

2016 में उत्तराखंड की शायरा बानो ने किया संघर्ष
उत्‍तराखंड के काशीपुर की रहने वाली शायरा बानो ने साल 2016 की फ़रवरी में अपनी याचिका दायर की। उनकी शादी 2001 में हुई थी और 10 अक्टूबर 2015 को उनके पति ने उन्हें तलाक दे दिया। जब वह अपना इलाज कराने के लिए उत्तराखंड में अपनी मां के घर गईं तो उन्हें तलाक़नामा मिला। शायरा बानो ने इलाहाबाद में रहने वाले अपने पति और दो बच्चों से मिलने की कई बार गुहार लगाई लेकिन उन्हें हर बार दरकिनार कर दिया गया। उन्हें अपने बच्चों से भी मिलने नहीं दिया गया। शायरा बानो ने अपनी याचिका में इस प्रथा को पूरी तरह प्रतिबंधित करने की मांग उठाई। कोर्ट ने शायरा की मांग मानते हुए तीन तलाक को अंसवैधानिक घोषित कर दिया।


भारत में एक संविधान है जिसके तहत समूचे राष्ट्र के लोगों को चलना है, न कि रूढि़वादी धार्मिक प्रथाओं से। संविधान का अनुच्छेद 14 समानता के मौलिक अधिकार की स्वतंत्रता देता है। भारतीय संविधान भी समानता को महत्व देता है और न्यायपालिका ने भी अनुच्छेद 14 को ही सर्वोच्च माना है। 

shukdev

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