journalist से पॉलिटिक्स तक कुछ ऐसा रहा इस स्टाइलिश ट्रांसजेंडर का सफर, लंदन से है पोस्ट ग्रेजुएट

Tuesday, Jun 07, 2016 - 09:35 AM (IST)

नई दिल्ली: आज के समय में ट्रांसजेंडर्स की लाइफ में काफी बदलाव आया है। समाज में आज उनकी अलग पहचान है लेकिन फिर भी लोग उन्हें आज भी पूरी तरह से अपना नहीं पाए हैं। लोगों की बेतुकी बातों और उनके रवैये को दरकिनार कर फिर भी ये लोग जिंदगी जी रहे हैं और लोगों की बेरुखी के बाजवूद भी खुश हैं। अप्सरा रेड्डी ने आज अपनी समाज में जो पहचान बनाई उसके लिए वे तारीफ की हकदार हैं। अप्सरा का जन्म लड़के के रूप में हुआ था लेकिन वे अपना सैक्स चेंज कराकर लड़की बन गई।

अप्सरा ने दुनिया के कई बड़े न्यूजपेपर्स में काम किया है। अब वह राजनीति में अपनी किस्मत अजमा रही है। इसी साल वुमन्स डे पर अप्सरा ने भाजपा ज्वाइन की है। पार्टी ने उन्हें स्पोकपर्सन बनाया है। अप्सरा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई चेन्नई से की और उसके बाद ऑस्ट्रेलिया के मोनाश यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म में ग्रैजुएशन किया। अप्सरा ने लंदन के सिटी यूनिवर्सिटी से ब्रॉडकास्टिंग में पोस्ट ग्रैजुएशन भी किया है।
 

पढ़ाई खत्म करने के बाद अप्सरा ने यूनिसेफ ज्वाइन किया और पूरे तमिलनाडु में हेल्थ कैंपेन लॉन्च किया। इसके बाद उसने बीबीसी और कॉमनवेल्थ सेक्रिटेरिएट के अलावा भारत के कई न्यूज पेपर्स के साथ काम किया।इसके साथ-साथ वह वुमन्स एम्पावरमेंट, करप्शन और महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाती रही। अप्सरा ने बताया कि वह राजनीति में इसलिए आई क्योंकि वह यूथ को सेल्फ डिपेंडेंट बनाने, एनवायरनमेंट और वुमन्स एम्पावरमेंट के लिए काम करना चाहती है।

अप्सरा ने बताया था कि बीबीसी के साथ काम करते हुए वे ई स्टार्स से मिली जो कि उनकी लाइफ का सबसे अच्छा एक्सपीरियंस था। अप्सरा माइकल शूमाकर के साथ ग्रैंड प्रिक्स टूर पर भी गई हैं। यही नहीं अमेरीकन एक्टर और प्रोड्यूसर निकोलास केज का इंटरव्यू तक उन्होंने लिया है। अप्सरा ने बताया कि जब उसने अपना सैक्स चेंज करवाया तो लोगों की व्यवहार उनके प्रति बदल गया लेकिन फिर भी वह खुश है क्योंकि उशे किसी से कोई शिकायत नहीं है।

बता दें कि भारत में अभी तक ट्रांसजेंडर्स के लिए कोई कानून नहीं बना है। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों को ''थर्ड जेंडर'' कहा था जो न तो मेल हैं और न ही फीमेल। हालाकि कोर्ट ने उनके वोटर कार्ड और अन्य सरकारी सुविधाएं देने को कहा गया है। यही नहीं कोर्ठ सरकार से इन लोगों को  ''सोशियली एंड इकोनॉमिकली बैकवर्ड''  मानने को कहा था ताकि इनको नौकरी औऱ शिक्षा में कोटा मिल सके और ये लोग भी अपनी जिंदगी आम तरीके से जी सकें।

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