भारत-चीन सीमा का सबसे बड़ा फैसला दलाई लामा और तिब्बत कार्ड पर निर्भर

Monday, Oct 19, 2020 - 03:33 PM (IST)

नेशनल डेस्कः भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को लेकर इन दिनों तनाव चल रहा है। दोनों देशों के बीच स्थिति ऐसी बनी हुई है कि सातवें दौर की सैन्य वार्ता में भी मुद्दा हल नहीं हुआ। चीन ने एक-दो बार हिसंक झड़प की शुरुआत की लेकिन भाकत ने शांति का रास्ता अपनाते हुए जवाब दिया। ऐसे में चीन को पटकनी देने के लिए भारत दलाई लामा और तिब्बत कार्ड खेलकर गेम चेंजर बन सकता है।

 

भारत को क्या फायदा
असल में तिब्बत छोड़कर भारत में रह रहे तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा की पूरी दुनिया में पहचान है। दलाई लामा को अमेरिका से लेकर सभी मजबूत यूरोपियन देशों की सहानुभूति मिली है, चीन इस बात से चिढ़ता है। दरअसल चीन को डर है कि दलाई लामा और दूसरे निर्वासित तिब्बतियों की मदद से भारत चीन के खिलाफ नया मोर्चा न खोल दे। दलाई लामा को लेकर चीन का सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स आए दिन भारत को ऐसा न करने के लिए धमकाता भी रहता है। चीन से गहराते तनाव के बावजूद भारत तिब्बतियों में अपनी पैठ का इस्तेमाल नहीं कर रहा, हालांकि चीनी मीडिया अक्सर इस बात पर डरता है कि भारत कहीं अपनी तिब्बत नीति पलट न दे और चीन को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

 

भारत की रक्षा करते हुए तिब्‍बती इंडियन आर्मी ऑफिसर शहीद
51 साल के तिब्बती इंडियन आर्मी ऑफिसर न्‍याइमा तेनजिन ने देश प्रेम और ड्यूटी के लिए समर्पण की जो मिसाल पेश की है, वह कई सदियों तक याद रखी जाएगी। कंपनी लीडर की रैंक पर तेनजिन ने उस समय भारत की सीमाओं की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्‍यौछावर कर दिए जब 30 अगस्‍त को पीपुल्‍स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) के जवानों ने लद्दाख के चुशुल में घुसपैठ की थी। तेनजिन, तिब्‍बती अवस्‍थान (सेटलमेंट) चोग्‍लामसार के रहने वाले थे। यह जगह लद्दाख की राजधानी लेह के करीब है। भारत ने ऑफिसर के पार्थिव शरीर को तिब्बती झंडे और भारतीय तिरंगे से ढका और पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया। वहीं इस दौरान तिब्बती-भारतीय 24 साल का जवान तेनजिन लोदेन घायल हुआ था। दोनों सैनिक स्‍पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) की 7 विकास बटालियन के साथ तैनात थे। इसे टू-टू के नाम से भी जाना जाता है। इस यूनिट का गठन तिब्‍बत के निर्वासित नागरिकों को शामिल करके किया गया है। शुरुआत में यह इंटेलीजेंस एजेंसी रॉ का हिस्‍सा था लेकिन अब भारतीय सेना का अंग है। 29 और 30 अगस्‍त को भारत ने चीन के उस प्रयास को विफल कर दिया है जिसमें पैंगोंग झील के दक्षिणी हिस्‍से पर कब्‍जे करने के मकसद से घुसपैठ की गई थी। तिब्‍बत के सैनिक उस समय थाकुंग पोस्‍ट के करीब थे और उन्‍होंने पीएलए के सैनिकों के निर्माण कार्य को रोक दिया था।

 

भारत अपनी नीति पर कायम
भारत ने कभी भी तिब्बती कार्ड को चीन के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया, इसके पीछे भी इतिहास है। साल 1959 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद वहां के नेता और धर्म गुरु दलाई लामा भागकर भारत आ गए, उनके साथ ही तिब्ब्तियों की एक बड़ी आबादी आई, जो अब हिमाचल के धर्मशाला से लेकर देश के कई हिस्सों में बस चुकी है। यहीं रहते हुए दलाई लामा चीन के खिलाफ मोर्चाबंदी किए हुए हैं और लगातार अपने देश की चीन से आजादी की बात उठाते रहते हैं। साल 2003 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना और चीन ने सिक्किम को भारत का हिस्सा मान लिया। ये एक तरह से करार था कि दोनों देश आपसी मामले में दखल न दें, तब चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन हुआ करते थे, इसके साथ ही भारत उत्तरी सीमा को आधिकारिक तौर पर भारत-तिब्बत सीमा कहने की बजाए, भारत-चीन सीमा कहने लगा, ये एक तरह से चीन के तिब्बत पर अधिकार को मान्यता थी। आज के हालात देखें तो भारत अपना कार्ड खेल सकता है लेकिन वह ऐसा इसलिए नहीं कर रहा क्योंकि इससे साल 2003 में हुई बातचीत का उल्लंघन होगा। वहीं यह भी हो सकता है कि चीन सिक्कम पर फिर से अपना हक जताने लगे।

Seema Sharma

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