सनसनीखेज दावा! कोविड वैक्सीन से 6 तरह के कैंसर का खतरा, रिसर्च ने उड़ाई दुनिया की नींद
punjabkesari.in Monday, Oct 06, 2025 - 01:06 PM (IST)

नेशनल डेस्क। कोरोना महामारी के दौरान लाखों लोगों की जान बचाने वाली कोविड-19 वैक्सीन एक बार फिर विवादों के घेरे में है। शुरुआत से ही हार्ट अटैक और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी रही इस वैक्सीन को लेकर अब दक्षिण कोरिया के वैज्ञानिकों ने एक चौंकाने वाला दावा किया है।
कोरियाई रिसर्च का हैरान करने वाला दावा
रिपोर्ट के अनुसार कोरियाई शोधकर्ताओं ने एक स्टडी में दावा किया है कि कोविड वैक्सीन लेने वाले लोगों में 6 तरह के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। यह अध्ययन 2021 से 2023 तक लगभग 84 लाख वयस्कों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड पर आधारित है जिसकी तुलना वैक्सीनेटेड और नॉन-वैक्सीनेटेड लोगों में एक साल के अंदर कैंसर की दर से की गई।
किस कैंसर का कितना बढ़ा जोखिम? (रिसर्च के अनुसार)
स्टडी में विभिन्न प्रकार के कैंसर के जोखिम में वृद्धि दर्ज की गई:
कैंसर का प्रकार | कथित जोखिम वृद्धि |
प्रोस्टेट कैंसर | 68% तक |
फेफड़ों का कैंसर | 53% तक |
थायरॉइड कैंसर | 35% तक |
गैस्ट्रिक (पेट) कैंसर | 34% तक |
कोलोरेक्टल कैंसर | 28% तक |
ब्रेस्ट कैंसर | 20% तक |
शोध में यह भी दावा किया गया कि mRNA वैक्सीन (Pfizer और Moderna) का संबंध थायरॉइड, फेफड़े, कोलन और ब्रेस्ट कैंसर से है जबकि cDNA वैक्सीन को थायरॉइड, गैस्ट्रिक, कोलन, फेफड़े और प्रोस्टेट कैंसर से जोड़ा गया।
विशेषज्ञों ने रिसर्च को किया खारिज, बताया कमजोर
इस सनसनीखेज दावे पर अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा विशेषज्ञों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। अमेरिका की जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के डॉ. बेंजामिन मेजर ने इस स्टडी को वैज्ञानिक रूप से कमजोर बताया। डॉ. मेजर ने तर्क दिया कि कैंसर अचानक नहीं होता। इसे विकसित होने में सालों लगते हैं। किसी भी वैक्सीन को कैंसरजनक साबित करने के लिए लंबी अवधि तक ट्रैक करना जरूरी है। उनका कहना है कि यह स्टडी सिर्फ "कैंसर डायग्नोसिस" पर आधारित है न कि उसकी वास्तविक उत्पत्ति पर। विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि अगर वैक्सीन वास्तव में कैंसर का कारण होती तो 2022 तक कोरिया में कैंसर मामलों में भारी वृद्धि दर्ज होती जिसका समर्थन कोरियन कैंसर एसोसिएशन के आधिकारिक आंकड़े नहीं करते हैं।
फिलहाल इस रिसर्च ने कोविड वैक्सीन और कैंसर के बीच एक नई बहस छेड़ दी है लेकिन मुख्यधारा के चिकित्सा विशेषज्ञ इसे निर्णायक साक्ष्य मानने से इनकार कर रहे हैं।