माेदी सरकार से पहले ये देश ले चुके हैं नाेट बैन का फैसला, जानें काैन हुए पास और काैन फेल?

Thursday, Nov 17, 2016 - 04:17 PM (IST)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्धारा 500 और 1000 रुपए के नाेटाें पर बैन लगाने के बाद से ही देशभर में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। देशभर के बैंकाें और एटीएम में लाेगाें की लंबी कतारें देखने काे मिल रही है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी देश ने करेंसी सुधार के लिए डिमॉनेटाइजेशन प्रक्रिया शुरू की।  हालांकि, कई देश एेसे है जाे इस नियम काे सफलतापूर्वक लागू कर पाए, जबकि कई देशाें काे अपना फैसला वापिस लेना पड़ा। 

किन देशाें ने पाई सफलताः-

1) इंग्लैंड
1971 में इंग्लैंड ने रोमन काल से चले आ रहे सिक्कों को हटाने के लिए पाउंड में दश्मलव पद्दति काे लागू किया था। बैंकिंग और करेंसी की टर्म में इस प्रक्रिया को डेसिमलाइजेशन कहा जाता है। इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए इंग्लैंड सरकार ने सभी बैंकों को चार दिन का वक्त दिया, जिससे नई करेंसी को पूरे देश में पहुंचाया जा सके। इस दौरान देश के सभी बैंक बंद रहे। माना जाता है कि इंग्लैंड ने सफलता के साथ अपनी अर्थव्यवस्था से पुराने सिक्कों को बाहर कर दिया और उसे किसी बड़े नुकसान का सामना नहीं करना पड़ा।

2) यूरोपियन यूनियन
यूरोप में जनवरी 2002 में यूरोपियन यूनियन के 11 देशों ने नई यूरो करेंसी लागू की (बाद में 12वें देश ग्रीस ने लागू किया)। हालांकि, यूरो का जन्म 1999 में हो चुका था और ये सभी देश तीन साल तक इस नई करेंसी को लीगल टेंडर घोषित करने के लिए तैयारी कर रहे थे। यह एक सोची-समझी रणनीति और लंबी तैयारी का नतीजा था कि यूरोप के इन 12 देशों में नई करेंसी को सफलता के साथ लांच कर दिया।

ये देश रहे असफलः-

1) सोवियत यूनियन
अपने आखिरी दिनों में सोवियत यूनियन के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाचोव ने जनवरी 1991 में डिमॉनेटाइजेशन की प्रक्रिया शुरू की। गोर्वाचोव का मकसद भी अर्थव्यवस्था से ब्लैकमनी बन चुके रूबल को बाहर करना था। लिहाजा वहां 50 और 100 रूबल की करेंसी को प्रतिबंधित कर दिया गया। यह करेंसी उनकी अर्थव्यवस्था का एक-तिहाई हिस्सा था। इस करेंसी सुधार कार्यक्रम से सोवियत यूनियन में मंहगाई पर लगाम नहीं लगाया जा सका। वहीं, उदारीकरण और राजनीतिक और आर्थिक सुधार (प्रेस्ट्रॉइका और ग्लैसनॉस्ट) से पॉपुलर हुई गोर्वाचोव सरकार तेजी से अनपॉपुलर हुई और देखते ही देखते अगस्त आते-आते सोवियत यूनियन विघटन का शिकार हो गई।

2) उत्तर कोरिया
2010 में उत्तर कोरिया ने एक बड़ा डिमॉनेटाइजेशन कार्यक्रम चलाया। तत्कालीन तानाशाह किम जॉन्ग द्वितीय ने एक झटके में काला बाजारी और लगाम लगाने और अर्थव्यवस्था को काबू करने के लिए देश की सभी करेंसी की वैल्यू से दो शून्य हटा दिए थे। यानी 1000 रुपए महज 10 रुपए और 5000 का नोट महज 50 रुपए रह गया। इस फैसले के साथ-साथ उत्तर कोरिया के सामने फसल खराब की दूसरी बड़ी चुनौती सामने थी। देश में गंभीर खाद्य संकट पैदा हो गया। चावल की कीमत आसमान छूने लगी। नतीजा यह हुआ कि तानाशाह को गलती के लिए माफी मांगनी पड़ी और उसने वित्त मंत्री को मौत की सजा सुना दी।

3) म्यांमार (बर्मा)
देश की मिलिट्री शासन ने 1987 में एक झटके में फैसला लेते हुए देश की कुल करेंसी से लगभग 80 फीसदी करेंसी को गैरकानूनी घोषित कर दिया। म्यांमार में जनता शासक ने भी पीएम मोदी की तरह यह कदम ब्लैकमनी और ब्लैकमार्केटिंग को लगाम लगाने के लिए उठाया था। इस फैसला का नतीजा यह रहा कि मिलिट्री शासन में पहली बार छात्रों ने जनता शासक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। यह विरोध प्रदर्शन एक साल तक चलता रहा और फिर सरकार ने बड़ी बर्बरता के साथ इसका दमन कर दिया। अंतिम नतीजा यह रहा कि प्रदर्शन कर रहे हजारों नागरिक सेना की गोलियों के शिकार बने।


 

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