पहलगाम हमले के बाद हालात से निपटने के लिए सरकार की ओर से कोई स्पष्ट रणनीति सामने नहीं आई: खरगे
punjabkesari.in Friday, May 02, 2025 - 09:33 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शुक्रवार को कहा कि पहलगाम आतंकी हमले से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए सरकार की ओर से कोई स्पष्ट रणनीति सामने नहीं आई है। हालांकि उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर पूरा विपक्ष केंद्र के साथ है। पार्टी के 24, अकबर रोड स्थित कार्यालय में कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में अपने संबोधन में खरगे ने यह भी कहा कि सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण की पार्टी की मांग स्वीकार कर ली है, लेकिन इस फैसले के समय ने ‘हमें हैरान कर दिया है'।
उन्होंने जाति जनगणना सबंधी फैसले को लेकर सरकार की मंशा पर संदेह जताया और पार्टी नेताओं से कहा कि जातीय सर्वेक्षण के मुद्दे को तार्किक परिणति तक ले जाने के लिए सतर्क रहें। कांग्रेस अध्यक्ष ने जाति जनगणना कराने के सरकार के फैसले का श्रेय पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को देते हुए कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अगर ‘‘हम लोगों के मुद्दों को ईमानदारी से उठाते हैं, तो सरकार को झुकना पड़ता है''।
खरगे ने कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति की पिछली बैठक में पार्टी ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में केंद्र को हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया था। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले के कई दिन बाद भी सरकार की ओर से कोई स्पष्ट रणनीति नहीं आई है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने पहलगाम हमले में मारे गए शुभम द्विवेदी के परिजनों से कानपुर में मुलाकात की थी और सरकार से मृतक को शहीद का दर्जा और सम्मान देने की मांग की थी। खरगे ने कहा, ‘‘देश की एकता, अखंडता और समृद्धि के रास्ते में आने वाली किसी भी चुनौती के खिलाफ हम एकजुट होकर और सख्ती से काम करेंगे। इस मुद्दे पर पूरा विपक्ष सरकार के साथ है। हमने पूरी दुनिया को यह संदेश दिया है।'' उन्होंने कहा कि इस बीच मोदी सरकार ने जनगणना के साथ-साथ जातीय सर्वेक्षण कराने का फैसला किया है।
खरगे ने कहा, ‘‘इसके लिए सबसे पहले मैं राहुल जी को बधाई देता हूं, जिन्होंने लगातार इस मुद्दे को उठाकर सरकार को जातिगत जनगणना पर फैसला लेने के लिए मजबूर किया। आपने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान इसे एक शक्तिशाली अभियान में बदल दिया और सामाजिक न्याय 18वीं लोकसभा के चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया।'' कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘राहुल जी ने फिर साबित कर दिया है कि अगर हम लोगों के मुद्दों को ईमानदारी से उठाते हैं, तो सरकार को झुकना पड़ता है। भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक से लेकर तीन काले कृषि कानूनों की वापसी तक और अब जातिगत जनगणना उन घटनाक्रमों की शृंखला में शामिल हो गई है, जिसमें एक अड़ियल सरकार को एक बार फिर झुकना पड़ा है।''
सरकार ने बुधवार को घोषणा की थी कि जातिगत गणना को ‘पारदर्शी' तरीके से आगामी जनगणना में शामिल किया जाएगा। सरकार ने विपक्ष पर जातीय सर्वेक्षण को ‘राजनीतिक उपकरण' के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप भी लगाया था। खरगे ने कहा कि कांग्रेस शासित तेलंगाना और कर्नाटक में जातीय सर्वेक्षण पूरे हो चुके हैं और सरकारी योजनाओं को तैयार करने में इसके निष्कर्षों को शामिल किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘गुजरात में एआईसीसी सत्र के दौरान भी हमने 9 अप्रैल को एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें अपनी मांग दोहराई थी। हमने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने की भी मांग की थी। इस सीमा को हटाने का काम संविधान संशोधन के जरिए किया जाएगा।''
उन्होंने सरकार की घोषणा का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘सरकार ने जातिगत जनगणना की हमारी सालों पुरानी मांग को स्वीकार कर लिया, लेकिन इसके लिए जो समय चुना गया, उसने हमें हैरान कर गया... जिस भाषा और भावना के साथ कई बातें कही गईं, उससे हमारे मन में कई संदेह पैदा हो गए हैं।'' खरगे ने कहा, ‘‘जब मैंने 16 अप्रैल, 2023 को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर यह मांग की थी, तो सरकार पूरी तरह इसके खिलाफ थी। फिर अचानक उनका मन कैसे बदल गया? सरकार ने हर मंच पर हमारी मांग का विरोध किया। इसे विभाजनकारी और शहरी नक्सली (सोच) कहा गया। मोदी जी और आरएसएस के नेताओं ने राज्यों में चुनाव अभियानों में इसकी आलोचना की। ‘बटेंगे तो कटेंगे' जैसे नारे लगाए गए।''
खरगे ने पार्टी नेताओं से लोगों को यह बताने का आग्रह किया कि पूर्ववर्ती संप्रग-2 सरकार के दौरान शुरू हुए 2011 के जातीय सर्वेक्षण की पूरी प्रक्रिया 31 मार्च, 2016 को समाप्त हुई। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने खुद 2022 में राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में इसे स्वीकार किया। फिर क्या हमसे 2014 में अधूरे आंकड़े प्रकाशित करने की उम्मीद करना मूर्खता नहीं थी?'' खरगे ने कहा, ‘‘एक पुरानी कहावत है, देर आए दुरुस्त आए।'' उन्होंने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी जातियों और समुदायों की जनसंख्या, उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, राष्ट्रीय संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी और शासन से जुड़ी संस्थाओं में उनके प्रतिनिधित्व को जानने के लिए एक व्यापक सामाजिक, आर्थिक और जातिगत सर्वेक्षण कराने की बात कही थी।