कृषि में ‘महिलाओं की भूमिका’ को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए

Saturday, Aug 31, 2019 - 03:20 AM (IST)

यह हैरान करने जैसी हकीकत है कि जिस खेतीबाड़ी को आमतौर से किसान यानी पुरुषों का काम समझा जाता है, इसके विपरीत इस काम में महिलाओं का योगदान अधिक होता है लेकिन केवल पुरुष के पास ही सभी तरह के फैसले लेने का अधिकार होता है और उसमें औरत की भूमिका लगभग न के बराबर है। 

हमारा मकसद स्त्री और पुरुष के बीच कोई मतभेद, प्रतियोगिता या छोटा-बड़ा समझने का नहीं है बल्कि यह है कि अगर महिला कृषि कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती है तो इस बात का फैसला करने का अगर उसे पूरा अधिकार नहीं भी देते, फिर भी कम से कम उस की राय तो लें कि खेत में उगाने के लिए कौन सा बीज उत्तम रहेगा, सिंचाई का कौन सा साधन इस्तेमाल हो और खाद कौन सी लेनी चाहिए तथा फसल के निपटान से लेकर उसकी बिक्री तक कहां और कैसे हो? यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि खेतीबाड़ी का लगभग आधा काम करना किसान परिवार की महिलाओं के जिम्मे आता है और अगर आंकड़े देखें तो दुनिया की अस्सी प्रतिशत महिलाएं खेतीबाड़ी से जुड़ी हैं और हमारे देश में भी यह आंकड़ा कोई कम नहीं है। 

महिलाओं को खेती की समझ
अभी जो वास्तविकता है, वह यह कि अगर किसान के घर की महिला यह कहे कि इस बार हमारे खेत में जो आप हमेशा उगाते हो, उसके बदले यह उगाओ तो झिड़क दिया जाता है कि तेरा काम यह नहीं और तू बस उतना ही कर जो तुझे बोने, काटने को कहा जाए, हम मर्दों को ज्यादा पता होता है कि क्या उगाना है क्या नहीं? अब जब फसल कम होती है, मर जाती है तथा कम या ज्यादा और गलत खाद व पानी देने से नष्ट हो जाती है तो किसान इसके लिए अपनी किस्मत को कोसता रहता है लेकिन उसे यह गवारा नहीं कि इस काम में अपने घर की महिलाओं से सलाह-मशविरा कर ले और इसका कारण यह है कि खेतों के काम में औरतों का ज्यादा वक्त गुजरता है और उन्हें अपनी जमीन के बारे में परिवार के पुरुषों से अधिक जानकारी होती है। 

खेतीबाड़ी से जुड़े विषयों पर फिल्में बनाते समय मैंने स्वयं इस बात को देखा है कि यदि मान लीजिए पंचायत की सरपंच महिला है तो भी उसे अपने पति या ससुर के कहने और निर्देश के अनुसार ही पंचायत के फैसले करने होते हैं और अगर किसी महिला सरपंच ने अपनी मर्जी से कुछ किया तो परिवार में उसकी दुर्दशा होना निश्चित है। हमारे देश में किसानी से कम आमदनी होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि ज्यादातर किसान इस काम में पूरा ध्यान नहीं देते और सरकार या कोई संस्थान अगर उन्हें बताने और समझने के लिए छपी सामग्री या आधुनिक टैक्नॉलोजी बारे जानकारी देता है तो वे उसका उपयोग न कर पुरानी प्रणालियों से ही खेतीबाड़ी करने को प्राथमिकता देते हैं। 

हालांकि जिन किसान परिवारों ने आधुनिक  कृषि के तरीकों को अपनाया और महिलाओं का पूरा सहयोग लिया, वे समृद्धि और खुशहाली का स्वाद ले रहे हैं लेकिन बढ़ती मांग के अनुरूप न होने से पुराने पड़ चुके तरीकों से खेती करने वाले ज्यादातर किसान बदहाली और गरीबी की हालत में जी रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के फूड और एग्रीकल्चर संस्थान की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि महिला किसानों का कृषि उत्पादन तीस प्रतिशत तक इसलिए कम होता है क्योंकि उनके पास वह जानकारी और साधन नहीं पहुंच पाते जो पुरुषों के पास आते हैं और वे उनके बारे में महिलाओं को नहीं बताते और उनका इस्तेमाल करने में खुद उनकी कोई रुचि नहीं होती।

इसके अतिरिक्त सरकार और बहुत-सी निजी संस्थाओं द्वारा किसानों को ट्रेङ्क्षनग देने के अनेक कार्यक्रम जब-तब आयोजित होते रहते हैं, जिनमें पुरुष किसान ही अधिकतर जाते हैं और अगर कोई महिला जाती भी है तो उसकी कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं होती क्योंकि ट्रेनर पुरुष होते हैं और गांव की औरतों के लिए यह वर्जित है कि वे पराए मर्दों से बात करें। अब जो मर्द इनमें भाग लेते हैं उनके लिए यह सैर-सपाटा ज्यादा होता है और वे घर आते-आते वह सब कुछ भूल चुके होते हैं जो उन्हें इन ट्रेनिंग शिविरों में बताया जाता है। जरूरत इस बात की है कि ट्रेङ्क्षनग के लिए महिला किसानों और किसान परिवार की महिलाओं के लिए ऐसे शिविर लगाए जाएं जो महिलाओं द्वारा आयोजित हों। वे न केवल नई जानकारी और टैक्नॉलोजी को घर तथा खेतों तक ले आएंगी बल्कि पुरुषों को भी प्रेरणा देने का काम करेंगी जो अभी तक परम्परागत खेती के तरीकों से ही चिपके रहना चाहते हैं।

हमारे देश में ज्यादातर खेती छोटी जोतों में होती है, इसलिए औरतों के लिए उनका प्रबंध करना और भी आसान है तथा वे घर व खेत दोनों ही स्थानों को कुशलतापूर्वक संभाल सकती हैं। इसके साथ-साथ यह भी एक सच्चाई है कि महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा इस बात की जानकारी होती है कि पौष्टिक भोजन कौन-सा है और किस चीज की परिवार को जरूरत है जिससे सभी सेहतमंद रहें। महिला किसान इस बात का पहले ध्यान रखेगी कि उसके खेत से जो उपज निकले, चाहे अनाज, फल, सब्जी या कुछ भी हो, वह पौष्टिक और अधिक समय तक टिकाऊ भी हो ताकि इस्तेमाल करने तक खराब न हो।

कृषि विकास में महिला किसानों की भूमिका
जब किसानी करने वाली आधी संख्या महिलाओं की है तो उन्हें यह अधिकार देने में क्या हर्ज है कि वे अपनी बुद्धि और कौशल से खेतीबाड़ी से संबंधित सभी फैसले करें और पुरुषों के साथ इस मामले में भी कंधे से कंधा मिलाकर चलें। असलियत यह है कि कृषि वैज्ञानिक हों या अनुसंधानकत्र्ता, वे सब पुरुष किसानों से ही बात करते हैं जबकि खेतीबाड़ी हो या पशुपालन, इस सब में महिलाओं की भूमिका अधिक है और विडम्बना यह है कि उनसे कोई बात ही नहीं करता और न उन तक पहुंचने की कोशिश करता है। पुरुष और महिला के बीच बुनियादी फर्क यह होता है कि जहां मर्द को अपने मतलब की बात पहले समझ आती है वहां औरत को वह बात ज्यादा और जल्दी समझ में आती है जो परिवार और समाज के लिए अधिक फायदेमंद हो, इसलिए खेतीबाड़ी के मामले में स्त्री की भूमिका को नजरअंदाज करने की बजाय उसका लाभ उठाने में ही समझदारी है। 

किसान की गरीबी दूर करने का यह कोई सार्थक तरीका नहीं है कि उसकी पैसों से मदद कर दी जाए बल्कि यह है कि बेहतर तकनीक, उत्तम बीज, बढिय़ा खाद और सिंचाई तथा बिजली की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित कर दी जाए, ऐसा होने पर उसे थोड़े ही समय में न सरकारी सबसिडी और न ही नकद पैसों की खैरात की जरूरत पड़ेगी। यह बात ऐसी नहीं है कि नई हो बल्कि हरित क्रांति के जनक और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डाक्टर नॉर्मन बोरलोग ने बहुत पहले ही कह दी थी कि कृषि क्रांति अगर करनी है तो उसमें महिलाओं की निश्चित भूमिका हो और उनके सहयोग के बिना यह सम्भव नहीं है। यही नहीं, भारत में हरित क्रांति के पुरोधा और जनक एम. एस. स्वामीनाथन ने तो अपनी राज्यसभा की सदस्यता के दौरान संसद में एक बिल भी पेश किया था जिसमें कृषि में महिलाओं के सक्रिय योगदान को कानून सम्मत बनाने की बात कही गई थी। दुर्भाग्य से यह बिल सरकार और सदस्यों की उदासीनता के कारण परवान ही नहीं चढ़ सका। 

अभी भी इस बारे में कानून बनाया जा सकता है जिसमें महिला किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सुविधाएं और कानूनी संरक्षण मिल सके। इसमें कोई बुराई भी नहीं क्योंकि अक्सर हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात करते ही रहते हैं तो फिर कृषि के क्षेत्र में उनके योगदान को न केवल सराहा जाना चाहिए बल्कि उन्हें अधिक से अधिक किसानी करने के लिए आमंत्रित भी करना चाहिए।-पूरन चंद सरीन
 

Pardeep

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