दुष्कर्म की घटनाएं रोकने के लिए ‘कानून का डर’ एकमात्र समाधान

Saturday, Apr 28, 2018 - 01:51 AM (IST)

नेशनल डेस्कः आखिरकार केन्द्र सरकार ने समझदारी दिखाते हुए बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वालों को मौत की सजा देने का निर्णय किया, अच्छी बात है। मगर 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वालों को ही क्यों? क्यों अन्य सभी महिलाओं, जो किसी भी उम्र की हों और ऐसे जघन्य अपराधों की शिकार बनती हैं, को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया? एक राष्ट्र के तौर पर हमें महिलाओं के साथ-साथ बच्चों की भी पूर्ण सुरक्षा तथा सम्मान सुनिश्चित करना होगा। कई वर्षों से मैं ऐसे वीभत्स आपराधिक कृत्यों के लिए मौत की सजा तथा शहरी व ग्रामीण भारत में फास्ट ट्रैक अदालतों की शृंखला स्थापित करने की वकालत करता आ रहा हूं।


सजा दिलाने के लिए सबको एकसाथ आना होगा
उन लोगों के बारे में भूल जाएं,जो ‘मानवाधिकारों’ अथवा राजनीतिक बाध्यताओं के पर्दे में दुष्कर्मियों के पक्ष में खड़े होते हैं। हमारे लिए महिलाओं के अधिकार तथा सम्मान किसी भी अन्य चीज से अधिक पवित्र हैं। बड़े दुख की बात है कि दुष्कर्म की घटनाओं को आमतौर पर राजनीतिक रंग दे दिया जाता है बजाय इसके कि अपराधियों को सजा दिलाने के लिए सभी एकजुटता दिखाएं। ऐसा नवीनतम मामला कठुआ (जम्मू) का है जिसमें 8 वर्षीय एक बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या कर दी गई।

मई 2017 में पंजाब में बस में यौन उत्पीडऩ के दो मामलों, जिनमें से एक मोगा में तथा दूसरा खन्ना के नजदीक हुआ, को राजनीतिक मोड़ दे दिया गया है क्योंकि जघन्य अपराध तब शिअद-भाजपा शासित पंजाब में हुए थे। मोगा की घटना में 13 वर्षीय एक लड़की को यौन उत्पीडऩ के बाद चलती बस से बाहर फैंक दिया गया था। अफसोस की बात है कि दुष्कर्म तथा हत्या की ऐसी शर्मनाक घटनाएं हर कहीं जारी हैं। इसी तरह विरोधी राजनेताओं के बीच भी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहता है।

सच है कि भारतीय काफी हद तक अत्यंत धार्मिक लोग हैं। मगर बदलती सामाजिक आदतों, मानदंडों, पुरुष मानसिकता तथा नैतिक मूल्यों के बीच कानून के डर के अतिरिक्त कुछ काम नहीं आएगा। मोदी सरकार द्वारा पेश नवीनतम अध्यादेश की धाराओं से भी बढ़कर हमें कानूनी प्रावधानों, न्यायिक प्रक्रियाओं, पुलिस बलों तथा कानून लागू करने से जांच को अलग करने के लिए बड़े सुधारों की जरूरत है। हमें एक प्रभावी महिला पुलिस बल की भी जरूरत है।
 

मोदी सरकार ने किशाेर न्याय कानून में किया बदलाव
यह सच है कि 12 दिसम्बर, 2012 को निर्भया कांड के बाद जस्टिस वर्मा समिति के सुझावों के चलते यू.पी.ए. सरकार द्वारा यौन अपराधों से जुड़ी कुछ कानूनी धाराओं को मजबूत किया गया। आपराधिक कानून संशोधन विधेयक की कुछ धाराओं को बदला गया। यहां तक कि दुष्कर्म की परिभाषा तेजाब हमले, यौन प्रताडऩा, ताक-झांक तथा पीछा करना जैसे सम्मिलित अपराधों तक विस्तारित किया गया है। मोदी सरकार ने भी किशोर न्याय कानून में बदलाव किया है जिसके अंतर्गत दुष्कर्म तथा हत्या जैसे गम्भीर अपराधों में 16 वर्ष से अधिक उम्र के किशोरों पर वयस्कों की तरह मुकद्दमा चलाया जाएगा।

नि:संदेह नवीनतम अध्यादेश बच्चों तथा महिलाओं के साथ दुष्कर्मों तथा हत्या के मामलों के खिलाफ देश के निरंतर जारी संघर्ष में एक कदम और आगे है। मगर मुझे संदेह है कि क्या यह उनके खिलाफ अपराधों के लिए पर्याप्त डर पैदा करने वाला होगा।

अब जिस टिप्पणी ने झटका पहुंचाया है वह भाजपा सरकार के केन्द्रीय मंत्री संतोष गंगवार की है। उन्होंने कहा, ‘‘इतने बड़े देश में यदि एक-दो घटनाएं हो जाएं तो बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए।’’ मुझे हैरानी होती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा सांसदों तथा विधायकों को ‘मीडिया को मसाला नहीं देने की सलाह’ क्या काम आएगी!

प्रति घंटा देश में होते हैं 40 रेप
यह उतना ही परेशान करने वाला है कि मंत्री को देश की खौफनाक कहानियों बारे नहीं पता। प्रति घंटा देश में 40 से अधिक दुष्कर्म होते हैं। भाजपा नीत केन्द्र सरकार के अंतर्गत 2016 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 3,38,594 मामले हुए। इनमें से 38,947 (11 प्रतिशत) दुष्कर्म के थे। जम्मू-कश्मीर में 2016 में दुष्कर्म के 256 मामले हुए। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में दुष्कर्म के 4,816 मामले थे। मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र में ऐसी क्रमश: 4,882 तथा 4,189 घटनाएं हुईं और 4 दुष्कर्मियों में से केवल एक को सजा हुई।

इसके साथ ही आपराधिक रिकार्ड्स वाले सांसदों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इससे भी बढ़कर, सभी राज्यों के विधायकों में से 30 प्रतिशत की आपराधिक पृष्ठभूमि है तथा 1581 विधायकों का आपराधिक रिकार्ड है जिनमें से 51 विधायक महिलाओं के खिलाफ अपराधों में शामिल हैं। इनमें से 4 विधायकों के खिलाफ दुष्कर्म के मामले दर्ज हैं।

नि:संदेह बच्चों तथा महिलाओं के खिलाफ उन्नाव, कठुआ तथा उन जैसे कई मामलों को लेकर जनता का गुस्सा बढ़ रहा है। हमारे बीच कई ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जो अभी भी महिलाओं के ‘उत्तेजक’ पहरावे को दोष देते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो पुरुषों द्वारा किए गए अपराधों को यह कह कर नजरअंदाज कर देते हैं कि ‘लड़के तो लड़के होते हैं’ तथा ‘गलतियां हो जाती हैं’ या ‘इसमें बड़ी बात क्या है’।

यह आशा करना तर्कसंगत है कि हमारे राजनीतिज्ञों को रास्ता दिखाने और ‘विदेशी’ पुरुष मानसिकता को बदलने का प्रयास करना चाहिए। जैसा कि बहुत से अन्य मामलों में है, यहां भी पुरुष मानसिकता में सुधार करने की जिम्मेदारी सिविल सोसाइटी तथा समाज सुधारकों की है। अब बहुत हो गया।   - हरि जयसिंह

Punjab Kesari

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