पहाड़ों की आग में सुलगता देश, हो रहा भारी नुकसान

Monday, May 28, 2018 - 05:07 PM (IST)

नेशनल डेस्क: देश के तीन पहाड़ी राज्यों हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर में जंगलों में भयंकर आग लगी हुई है। एक सप्ताह से जारी आग के इस तांडव के कारण हज़ारों हेक्टेयर जंगल स्वाह हो चुके हैं और करोड़ों की वन सम्पदा ख़ाक हो चुकी है। उत्तराखंड के 13 में से 12 जिलों में जंगलों की आग भड़की हुई है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं की कर्णप्रयाग, चमोली, श्रीनगर और टिहरी नगरों के साथ लगते जंगल भी धू-धू कर जल रहे हैं और लोग बेबस होकर देख रहे हैं। 

वहीं हिमाचल में इस समय 800 जगहों पर जंगलों में आग लगी हुई है। इस वजह से प्रदेश में भय का माहौल है क्योंकि अधिकांश जगहों पर जंगल गांवो के साथ सटे हुए हैं। उधर जम्मू कश्मीर में भी हालात काबू से बाहर हैं। जंगलों की आग चरम पर है और इसका प्रभाव माता श्री वैष्णो देवी यात्रा पर भी पड़ चुका है। तीन बार यात्रा रोकनी पडी है लेकिन वनाग्नि है कि लगातार फ़ैल रही है और कोई समाधान नहीं सूझ रहा। यहां तक कि इस आग के कारण एलओसी पर सेना द्वारा आतंकियों के लिए बिछाई गयी माईन्स तक में विस्फोट होने की खबर है।  इस आग में झुलस रहे पक्षी और जानवर
वनाग्नि से तीनो राज्यों में करीब चालीस हज़ार हेक्टेयर वन भूमि पर पेड़ जल चुके हैं। इसके अतिरिक्त इस दावानल में असंख्य पक्षी और जानवर भी झुलस चुके हैं। वन सम्पदा के साथ साथ वन्य जीवन का भी भारी नुक्सान हो रहा है। हालांकि तीनो राज्यों की सरकारें दावानल को नाथने की भरपूर कोशिश कर रही हैं लेकिन बात नहीं बन रही। कसौली में तो सेना की मदद से हेलीकॉप्टर द्वारा आग बुझाने का प्रयास भी किया जा चूका है।

कैसे लगती है आग 
जगंलों की आग विशुद्ध रूप से मानवीय भूल की परिणिति है। अक्सर सैलानी या अन्य लोग जंगलों में सुलगती सिगरेट, बीड़ी, या कैम्प फायर को अनबुझा छोड़ देते हैं। यही चीज़ें दावानल को जन्म देती हैं। इसके अतिरिक्त स्थानीय लोग घास के लालच में भी जंगलों में आग लगा देते हैं ताकि सतह से पत्तियां साफ़ हो जाएं और घास ज्यादा उगे। लेकिन यही आग बेकाबू होकर कहर मचा देती है। शहद के लिए जंगलों का रुख करने वाले भी पीछे आग छोड़ जाते हैं। इन तीनों राज्यों में अधिकांशत: चीड़ प्रजाति के पेड़ हैं। चीड़ की पत्तियां सूखने पर अत्यधिक  ज्वलनशील हो जाती हैं। ऐसे में हल्की सी चिंगारी भी बड़े अग्निकांड में बदल जाती है।
 
और भी हैं नुक्सान 
जंगलों की आग से सिर्फ वन और वन्य प्राणियों का ही नुक्सान नहीं होता। इससे पर्यावरण को भी भारी नुक्सान पहुंचता है। देहरादून के वन्य संस्थान के शोध बताते हैं कि अक्सर वनाग्नि से आस पास के इलाकों में तापमान तीन से पांच डिग्री तक बढ़ जाता है। जंगल जलने से सम्बंधित इलाके में पेयजल स्त्रोत भी सूख जाते हैं। इससे पेयजल संकट पैदा हो जाता है। यहीं नहीं मनाली स्थित हिम अध्ययन संस्थान के शोध कहते हैं कि वनाग्नि का धुआं ग्लेशियरों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। आग के कारण बढ़ा तापमान और धुएं की परत बर्फ पर बैठकर उसे तेज़ी से पिघलाते हैं। इस वजह से ग्लेशियर अस्थिर हो रहे हैं। 

क्या है देश-दुनिया की वर्तमान स्थिति
भारत में 7 लाख,1 हज़ार 673 वर्ग किलोमीटर भूमि पर जंगल हैं। यह पूरे देश का करीब 21 फीसदी है। कुल 50 फीसदी जंगल आग के लिहाज़ से संवेदनशील हैं। हर 80 हेक्टेयर पर एक फायर वाचर की नियुक्ति जरूरी है पर ऐसा होता नहीं है। दुनिया के कई देशों में वनाग्नि को बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर इस्तेमाल होते हैं। भारत में ऐसा सिस्टम अभी नहीं है। इस समय दुनियाभर में हर इंसान के लिए 422 पेड़ मौजूद हैं। प्रतिव्यक्ति सबसे ज़्यादा पेड़ के मामले में रूस पहले नंबर पर है। रूस में क़रीब 64 हज़ार करोड़ पेड़ हैं। जबकि कनाडा में 31 हज़ार 800 करोड़ पेड़ हैं। ब्राज़ील में 30 हज़ार  करोड़ और अमेरिका में 22 हज़ार 800 करोड़ पेड़ हैं। भारत की बात करें तो हमारे देश में सिर्फ 3500 करोड़ पेड़ हैं। इसे भारत के हर व्यक्ति में बांट दिया जाए तो ये संख्या होगी 28 पेड़ प्रति व्यक्ति यानी भारत में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए 28 पेड़ मौजूद हैं। पेड़ों की कटाई की बात करें तो दुनियाभर में हर साल 1500 करोड़ पेड़ काटे जा रहे हैं जबकि 500 करोड़ पेड़ उगाए जा रहे हैं यानी हर साल दुनिया को 1000 करोड़ पेड़ों का नुकसान हो रहा है।

vasudha

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