खालसा पंथ के संस्थापक श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ‘हम इह काज जगत मो आए’

Monday, Dec 25, 2017 - 10:55 AM (IST)

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के 10वें गुरु हैं। आप जी का प्रकाश सम्वत 1723 (दिसम्बर 1666 ई.) को पटना साहिब में श्री गुरु तेग बहादुर जी के घर माता गुजरी जी की कोख से हुआ। आप का बचपन का नाम गोबिंद राय था। पहले 5 वर्ष पटना साहिब  में ही व्यतीत हुए। पटना साहिब में ही रहते हुए उन्होंने पढ़ाई तथा शस्त्र विद्या सीखने का काम शुरू कर दिया था। बचपन में वह गुलेल का अचूक निशाना लगाते थे।


गुरु तेग बहादुर जी ने पंजाब आकर अपने परिवार को पटना से अपने पास आनंदपुर साहिब में बुलाया। आनंदपुर साहिब में गोबिंद राय जी ने धार्मिक विद्या ग्रहण की तथा शस्त्रविद्या में भी कुशलता हासिल की। कश्मीर के उस समय के गवर्नर इफ्तखार खान ने औरंगजेब के इशारे पर कश्मीरी ब्राह्मणों पर बहुत अत्याचार किए। जुल्मों से तंग आकर 16 कश्मीरी ब्राह्मणों का एक दल मटन के निवासी पंडित कृपाराम दत्त की अध्यक्षता में गुरु तेग बहादुर जी को आनंदपुर साहिब में 25 मई 1675 ई. को आकर मिला तथा अपने धर्म की रक्षा के लिए पुकार की। गोबिंद राय जी ने स्वयं अपने पिता जी को हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु दिल्ली की तरफ रवाना किया। गुरु तेग बहादुर जी  गुरुगद्दी श्री गोबिंद राय जी को सौंप गए। 


गुरु जी ने अपने पिता जी की शहादत के बाद जुल्म से सीधे टक्कर लेने के लिए अपनी सेना में बढ़ौतरी करनी शुरू कर दी। जब गुरु जी पांवटा साहिब गए हुए थे, तो वहां फरवरी 1686 ई. में भंगाणी के मैदान पर बाइस धार के राजाओं ने मुगलों से मिलकर गुरु जी से लड़ाई की, जिसमें गुरु जी की जीत हुई। इस जंग से कुछ ही समय बाद आप जी के घर माता सुंदरी जी की कोख से साहिबजादा अजीत सिंह जी का जन्म हुआ। बाद में माता जीतो जी की कोख से साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह तथा साहिबजादा फतेह सिंह का जन्म हुआ। 1 वैशाख सम्वत 1756 (1699 ई.) को गुरु जी ने खालसा पंथ का सृजन किया तथा पांच प्यारे सजाए। इन पांच प्यारों का जन्म तलवार की धार में से हुआ। गुरु जी ने बाद में पांच प्यारों से खुद अमृतपान किया तथा ‘आप ही गुरु व आप ही चेला’ का संकल्प दिया। आप जी का नाम गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह जी हो गया।


हालांकि गुरु जी को बहुत ज्यादा समय युद्धों में रहना पड़ा, इसके बावजूद उन्होंने बहुत बाणी रची। इसलिए उन्हें कलम तथा तलवार का धनी भी कहा जाता है। आनंदपुर साहिब तथा पांवटा साहिब में रहते हुए गुरु जी ने प्राचीन धार्मिक ग्रंथों का अनुवाद भी करवाया। आप जी की हजूरी में 52 कवि हमेशा रहा करते थे, जिन्होंने काफी साहित्य की रचना की। 


6 पौष सम्वत 1761 मुताबिक 20 दिसम्बर 1704 ई.(प्रिंसीपल तेजा सिंह, डा. गंडा सिंह अनुसार 1705 ई.) को गुरु जी ने आनंदपुर साहिब को अलविदा कह दिया। सरसा नदी पर घोर युद्ध हुआ जिसमें गुरु जी का परिवार बिखर गया। उन्हें चमकौर साहिब में मुगलों से युद्ध लडऩा पड़ा, जिसमें उनके दो बड़े साहिबजादे, तीन प्यारे तथा कई सिंह शहीद हो गए।  दो छोटे साहिबजादों को सरहिन्द के सूबेदार वजीर खान द्वारा दीवारों में चिनवा कर शहीद कर दिया गया। माता गुजरी जी भी सरहिन्द में ही शहीद हुईं। चमकौर साहिब से गुरु जी पांच प्यारों का हुक्म मानकर माछीवाड़े के जंगलों में जा पहुंचे, जहां गुरु जी ने पंजाबी में शब्द उचारा:-
‘मित्तर प्यारे नूं हाल मुरीदां दा कहणा॥ तुधु बिनु रोगु रजाइयां दा ओढण नाग निवासां दे रहणा।।
सूल सुराही खंजर प्याला बिन्ग कमाइयां दा सहणा॥ यारड़े दा सानू सत्थरु चंगा भट्ठ खेडिय़ां दा रहणा।।’


इसके बाद गुरु जी माछीवाड़े से आगे के लिए रवाना हुए। जब वह खिदराणे की ढाब के निकट पहुंचे तो मुगल सेना ने दोबारा उन पर हमला कर दिया। यहां माई भागो जी तथा भाई महां सिंह जी के नेतृत्व में गुरु जी का किसी समय साथ छोड़ चुके बेदावा देने वाले सिखों ने मुगलों से लड़ाई लड़ी। यहां भी जीत गुरु जी की हुई। गुरु साहिब ने मुक्तसर की लड़ाई के बाद तलवंडी साबो (बठिंडा) में आकर कुछ समय तक आराम किया तथा यहां गुरु ग्रंथ साहिब जी की पवित्र बीड़ दोबारा लिखवाई, जिसमें गुरु तेग बहादुर जी की बाणी भी शामिल की गई। 


इससे पहले गुरु जी ने औरंगजेब को जफरनामा भी लिखा। इतिहास बताता है कि औरंगजेब जफरनामे को पढ़कर इतना भयभीत हुआ कि उसके पाप उसको डराने लगे तथा अंत में उसकी मौत हो गई। महाराष्ट्र के शहर नांदेड़ में रह रहे माधो दास बैरागी को अमृत छका कर बाबा बंदा सिंह बहादुर बनाया जिन्होंने सरहिन्द की ईंट से ईंट बजाते हुए गुरु साहिब जी के छोटे साहिबजादों की शहीदी का बदला लिया। नांदेड़ में ही आप जी ने गुरुगद्दी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को सौंप दी तथा 7 अक्तूबर 1708 ई. को ज्योति जोत समा गए। गुरु जी की सारी लड़ाई मानवता की रक्षा के लिए थी। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी बचित्तर नाटक में फुरमान करते हैं-
‘‘हम इह काज जगत मो आए॥ धर्म हेतु गुरदेव पठाए॥
जहां तहां तुम धर्म बिथारो॥ दुष्ट दोखिन पकरि  पछारो॥
याही काज धरा हम जन्मम्॥ समझ लेहु साधु सब मनमम्॥
धर्म चलावन संत उबारन॥दुष्ट सबन को मूल उपारन॥’’

 

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