90 लाख लोग पाकिस्तान को कह चुके हैं अलविदा

Saturday, May 07, 2016 - 03:06 PM (IST)

एक अनुमान के अनुसार विश्व की कुल जनसंख्या का 3.3 फीसदी हिस्सा अपने देश को छोड़कर दूसरे देशों में रहता है। करीब 24.4 करोड़ लोगों की इस संख्या में नौकरी-पेशा करने वाले, युद्ध के हालातों से दूसरे देशों में पनाह ले रहे प्रवासी और अन्य लोग शामिल हैं। इसमें करीब 1.6 करोड़ लोगों की संख्या के साथ भारत सबसे ऊपर है। सबसे ज्यादा भारतीय दुनिया के विभिन्न कोनों में फैले हुए हैं। दूसरे नंबर पर मैक्सिको है। इसकी 1.2 करोड़ जनसंख्या विदेशों में रह रही है। अधिकतर लोग अमरीका में हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक प्रवासियों का ये जमावड़ा मुख्य तौर पर शीर्ष 20 देशों में है। इसके बाद नंबर आता है पाकिस्तान का। आतंकवाद से पी​डित पाकिस्तान की हालत यह है कि उसके नागरिकों को देश में जीविका के पर्याप्त साधन नहीं मिल रहे हैं। जो लोग अन्य देशों में रोजगार और नागरिकता पाने में सफल हो जाते हैं फिर वे लौट कर नहीं आते। एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार 1971 से अब तक 90 लाख लोग पाकिस्तान को अलविदा कर चुके हैं। 

ताजा जानकारी के मुताबिक बेहतर मौके की तलाश में पिछले साल पाकिस्तान के 10 लाख लोगों ने अपना देश छोड़ दिया। ये लोग ब्यूरो आॅफ इमीग्रेशन एंड ओवरसीज इंप्लायमेंट के माध्यम से विदेश गए हैं। इसमें अन्य देश भी शामिल हैं और भारत यहां भी शीर्ष स्थान पर कायम है। ''एशिया-पैसिफिक आप्रवासी रिपोर्ट 2015'' के अनुसार एशिया प्रशांत क्षेत्र के अन्य देशों के मुकाबले काम की तलाश में देश से बाहर जाने वालों की संख्या भारत में सबसे अधिक है।

यदि पिछले साल की बात करें तो 2015 में पाकिस्तान के इन लोगों की संख्या 9,46,571 थी। इसी प्रकार 2013 में 23.2 लाख लोग काम की तलाश में अन्य देशो में गए। इनमें छह प्रतिशत लोग खाड़ी देशों में गए। एक प्रतिशत ने यूरोप की ओर रुख् किया और तीन प्रतिशत ने एशिया के लीबिया, मलेश्यिा, दक्षिण कोरिया में रोजगार के साधन ढूंढने में सफलता पाई। अन्य लोगों की जानकारी नहीं​ मिल पाई है। कबायली इलाकों से भी हजारों लोग विदेश की ओर गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2013 में रूस, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, फिलिपिंस, अफगानिस्तान, कजाखस्तान, तुर्की और इंडोनेशिया का स्थान भी आता है।

2015 के आंकड़ों पर गौर करें, तो इस साल सबसे ज्यादा प्रवासी अमरीका, जर्मनी, रूस और सऊदी अरब पहुंचे। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के इन आंकड़ों में वैध और अवैध तरीके से पहुंचे प्रवासियों के बीच फर्क नहीं किया गया है। भारत के शीर्ष होने के पीछे एक कारण यह भी है कि सबसे युवा जनसंख्या एशियाई देशों में है। वे रोजगार की खोज में अन्य देशों में पहुंच रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा उन यूरोपीय देशों को हो रहा है, जिनकी जनसंख्या तेजी से बूढ़ी हो रही है। भारत समेत अन्य एशियाई देशों की जनसंख्या जवान है, जो वहां की अर्थव्यवस्था में मानवीय श्रम की जरूरत को पूरा करती है। यही कारण है कि एशियाई देशों से आने वाले प्रवासियों का वहां खुले दिल से स्वागत किया जाता हैं। 

संयुक्त राष्ट्र ने आग्रह किया है ​कि सरकारों को आप्रवासी कामगारों को ​भी वही सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए जो वे अपने नागरिकों को देती हैं। इससे वे संतुष्ट रहेंगे। इससे उन देशों की अर्थव्यवस्था और कामगार की उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा। अरब देशों की ओर जाने वाले लोगों के बारे में खबरें आती रहती हैं कि किस प्रकार वे कम साधनों में भी गुजारा कर रहे हैं। वष 2013 में दुनिया भर में मौजूद 23 करोड़ 20 लाख अप्रवासियों मेंं से, साढ़े नौ करोड़ से भी अधिक आप्रवासी केवल एशिया प्रशांत से हैं। 

रिपोर्ट में विश्व बैंक के अनुमानों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ये आप्रवासी मेजबान देशों के जीडीपी की विकास दर में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। साथ ​ही 2015 में आप्रवासियों ने अपने विकासशील देशों को लगभग 4350 करोड़ डॉलर की राशि भेजी है। सबसे बड़ा हिस्सा एशिया प्रशांत देशों को ही मिला है। छोटे देशों की अर्थव्यवस्थाओं को उन देश के आप्रवासियों की ओर से भेजे धन से बहुत मदद मिलती है। नेपाल की जीडीपी का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा बाहर काम कर रहे लोगों के भेजे पैसे से बनता है।

 
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