तेलंगाना: 9 और जज सस्पेंड, विरोध में 200 जज गए हड़ताल पर

Wednesday, Jun 29, 2016 - 11:15 AM (IST)

तेलंगाना: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच न्यायाधीशों के अस्थायी आवंटन के खिलाफ आंदोलन मंगलवार को उस समय और तेज हो गया जब उच्च न्यायालय ने अनुशासनहीनता के आधार पर निचली अदालत के नौ और न्यायाधीशों को निलंबित कर दिया। ताजा विवाद आंध्र में जन्मे 130 जजों के तेलंगाना में नियुक्ति का है। हैदराबाद हाईकोर्ट ने नियुक्ति का विरोध कर रहे दो जजों को सोमवार और नौ को मंगलवार को सस्पेंड कर दिया। इसके बाद 200 जजों ने आपात बैठक की और 15 दिन की छुट्‌टी पर चले गए। 125 जजों ने इस्तीफे भी एसो. अध्यक्ष को सौंप दिए हैं। ताकि मामला हल होने पर इस्तीफा राज्यपाल को सौंपा जा सके। तेलंगाना जज एसो. की मांग है कि निलंबित जजों की फौरन बहाली हो।

पहली बार जज इस तरह गए हड़ताल पर
देश में पहली बार जज इस तरह ‘हड़ताल’ पर गए हैं। इससे पहले 2004 में पंजाब हाईकोर्ट के 25 जज एक दिन की छुट्‌टी पर चले गए थे। इस बीच तेलंगाना के वकील भी जजों के समर्थन में उतर आए हैं। वारंगल में तो आंध्र में जन्मे जज केवी नरसिम्हुलु को तेलंगाना छोड़ने को कहा। उनसे हाथापाई भी की। सत्ताधारी टीआरएस सांसद कविता ने आराेप लगाया कि ‘मुख्यमंत्री ने कई बार प्रधानमंत्री से हाईकोर्ट बंटवारे पर बात की, पर कोई रास्ता नहीं निकाला गया। मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव जल्द ही दिल्ली में धरना देंगे।’ बता दें कि हाईकोर्ट में भी कुल 21 जजों में से सिर्फ तीन तेलंगाना के हैं। बाकी 18 आंध्र के हैं। यहां भी अनुपात सुधारने की जरूरत है। इससे कई बार निर्णय प्रभावित हो रहे हैं। खासतौर पर 2014 के बाद किए गए दोनों राज्यों से जुड़े फैसलों में ये देखा गया है।

केंद्र सरकार जिम्मेदार नहीं
वहीं केन्द्रीय विधि मंत्री डीवी सदानंद गौडा ने आज कहा कि तेलंगाना के लिए नए उच्च न्यायालय के गठन में केन्द्र की कोई भूमिका नहीं है। गौडा ने कहा कि इस मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा केन्द्र को जिम्मेदार ठहराना ‘अस्वीकार्य एवं बर्दाश्त से बाहर है।’ उन्होंने टीआरएस के इस आरोप को भी खारिज किया कि केन्द्र आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तरफ से राजनीतिक दबाव में है। गौडा ने कहा कि तेलंगाना के लिए नए उच्च न्यायालय का गठन मुख्यमंत्री और उस उच्च न्यायालय (आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के लिए यह साझा है, और जून 2014 में पूर्व राज्य के विभाजन के बाद जिसका विभाजन नहीं हुआ है) के मुख्य न्यायाधीश के हाथों में है।

भगवान नहीं हैं जज
राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एन.एन. माथुर ने कहा कि न्यायाधीश का पद ईश्वर तुल्य है क्योंकि उन्हें ईश्वर तुल्य प्रदत्त अधिकारों को प्रयोग करने की स्वतंत्रता है लेकिन स्थितियां उस वक्त गंभीर हो जाती हैं, जब जस्टिस खुद को ईश्वर समझने लगें। जज का हड़ताल पर उतरना संवैधानिक नहीं है। यदि 11 जज को निलंबित करने का निर्णय हुआ है तो वह किसी एक जज का निर्णय नहीं हाेगा, ऐसे निर्णय फुल बैंच लेती है। जो ठीक ही होंगे और यदि ठीक नहीं भी है तो कानून के तहत कार्य करना चाहिए। यदि जज हड़ताल पर जाएंगे तो जनता में क्या संदेश जाएगा।

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