RJD 0 seat Rajya Sabha: 30 सालों का रिकॉर्ड टूट सकता है: RJD के लिए पहली बार राज्यसभा में कोई सदस्य नहीं!
punjabkesari.in Saturday, Nov 15, 2025 - 11:59 AM (IST)
नेशनल डेस्क: बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव आने वाला है। 30 सालों तक राज्यसभा में अपनी मजबूत उपस्थिति बनाए रखने वाली राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अब पहली बार शून्य प्रतिनिधित्व के मुहाने पर है। 2030 के विधानसभा चुनावों तक पार्टी का ऊपरी सदन में कोई सदस्य नहीं रह सकता, जो RJD के लिए ऐतिहासिक झटका साबित होगा।
दरअसल, नई बिहार विधानसभा में NDA का स्पष्ट बहुमत है, जिसमें JDU और BJP प्रमुख भूमिका में हैं। इस गणित के अनुसार 2026 और 2028 में होने वाले चुनावों में संभावित रूप से सभी 5 सीटें NDA के पक्ष में जा सकती हैं। इसका मतलब यह है कि RJD, जो दशकों से बिहार की राजनीति में ऊपरी सदन में प्रभावी रही है, अगले कुछ वर्षों में राज्यसभा में अपना प्रतिनिधित्व पूरी तरह खो सकती है।
2026 के राज्यसभा चुनाव:
2026 में जिन पांच सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होगा, उनमें JDU के दो, राष्ट्रीय लोक मोर्चा के एक और आरजेडी के दो सदस्य शामिल हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि NDA का बहुमत और गठबंधन की रणनीति इस चुनाव में निर्णायक होगी और आरजेडी के लिए सीट पाना बेहद मुश्किल होगा।
2028 के राज्यसभा चुनाव:
आने वाले 2028 में भी पांच सदस्य सेवानिवृत्त होंगे, जिनमें तीन बीजेपी, एक जदयू और एक आरजेडी का प्रतिनिधि शामिल है। इस बार भी राजनीतिक समीकरण एनडीए के पक्ष में दिख रहे हैं, जिससे आरजेडी की स्थिति और कमजोर हो सकती है।
छोटे दल क्या बदल सकते हैं खेल?
नई विधानसभा में AIMIM के पांच विधायक हैं। सैद्धांतिक रूप से उनके समर्थन से आरजेडी को 2030 में एक सीट मिल सकती है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि छोटे दल अपने राजनीतिक हितों के आधार पर निर्णय लेते हैं, इसलिए आरजेडी को बिना शर्त सहयोग मिलने की संभावना न्यूनतम है।
राजनीतिक और संगठनात्मक संकेत
यदि यह स्थिति बनती है, तो यह आरजेडी के लिए एक ऐतिहासिक झटका होगा। लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में दशकों तक राज्यसभा में मजबूत उपस्थिति रखने वाली पार्टी अब विधानसभा में घटते प्रभाव और एनडीए की मजबूती के चलते ऊपरी सदन में पूरी तरह अनुपस्थित हो सकती है।
बिहार के इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य से स्पष्ट है कि अगले राज्यसभा चुनाव राज्य की सत्ता-संतुलन की दिशा तय करेंगे और एनडीए के दबदबे को और मजबूत करेंगे, जबकि आरजेडी को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।
