जेब ढीली किए बिना चाहिए ज़िन्दगी में आराम तो ज़रूर करें ये काम

Thursday, Aug 22, 2019 - 07:40 AM (IST)

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भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में लिखा- तुम क्या लेकर पैदा हुए थे? कर्म करो, फल की इच्छा मत रखो, तब मन को संतोष मिलता है। हमेशा याद रखें जो आपके भाग्य में नहीं है, वह दुनिया की कोई भी शक्ति आपको दे नहीं सकती और आपके भाग्य में है, उसे दुनिया की कोई भी ताकत आप से छीन नहीं सकती। ईश्वरीय शक्ति असंभव को भी संभव बना सकती है।

भौतिक स्तर पर आप अपनी तुलना हमेशा ऐसे व्यक्ति से करें जो आप से कम भाग्यशाली है। इससे आपको भौतिक संतोष प्राप्त होगा। एक आदमी भगवान को कोसता हुआ अति दुखी मन से चला जा रहा था क्योंकि उसके पास पांव में पहनने के लिए जूते नहीं थे। कुछ दूरी तय करने के पश्चात उसकी नजर एक ऐसे इंसान पर पड़ी जिसके पांव ही नहीं थे। तत्काल उसका दुख हल्का हो गया वह प्रभु को धन्यवाद देने लगा कि प्रभु ने उसे लंगड़ा-लूला पैदा नहीं किया।

आध्यात्मिक स्तर पर आप ऐसे व्यक्ति से अपनी तुलना करें जो आपसे आगे हैं। इससे आपका आध्यात्मिक असंतोष बढ़ेगा और आप आध्यात्मिक रूप से उससे आगे जाने की चेष्टा करेंगे। प्रगति और शांति की यही डगर है।

किसी की भी किसी बात के लिए कभी आलोचना न करें, चाहे वह कितना ही गलत क्यों न हो। मानसिक शांति चाहिए तो अपने काम से ही काम रखें। मन की शांति के लिए अपने काम से काम रखना अचूक औषधि है। भगवान ने आपको दुनिया का थानेदार या जज नियुक्त नहीं किया है। संसार में जो कुछ भी हो रहा है, वह परमेश्वर की इच्छा से ही हो रहा है। भगवान संसार की हर घटना को तीनों काल के संदर्भ में देखते हैं। परनिन्दा परमपिता परमेश्वर की निंदा के समान है क्योंकि ऐसा करके आप भगवान की इच्छा बुद्धि एवं न्याय का विरोध करते हैं। परनिन्दा न करने से आपका मन शांत रहेगा।

कई बार अपनी कोई समस्या नहीं होती लेकिन दूसरों के पास क्या है, यही देखकर आप निराशा एवं तनाव से ग्रसित हो जाते हैं। दूसरे के पास क्या है? कहां से आया? आपको यह सोचने की जरूरत नहीं है। दूसरे की तरफ ध्यान रखेंगे तो जो आपके पास है वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। पूर्वजन्म के संस्कार भी साथ चलते हैं जिसके कारण कोई राजा के घर पैदा होता है तो कोई रंक के घर। यह हम सभी के पिछले जन्मों का लेखा-जोखा है। हर हालात में प्रभु को धन्यवाद करें, आपको संतोष मिलेगा अपने नंगे पांव न देखें, उनको देखें जिनके पांव ही नहीं है। हर काम प्रभु के होकर करें तो पाप होगा ही नहीं। हर धर्म ने पाप को बुरा कहा है। दुनिया के सारे धर्म इंसान की सेवा में जुटे हैं। मुसलमानी खैरात, हिंदू दान, सिख लंगर, ईसाई सेवा-यह सब प्रभु की इच्छा ही तो है। इंसान जब कोई अच्छा काम करता है तो उसे अपार सुख मिलता है। तनाव कम करने के लिए दान देना भी अच्छा तरीका है।

कम बोलने से भी तनाव कम होता है। घर हो या बाहर, ज्यादा बोलने वालों से सभी नफरत करते हैं। कम बोलना समझदारी की निशानी है। बिना सोचे कुछ भी बोलने से अनर्थ हो सकता है। महाभारत इसका साक्षात उदाहरण है। एक बार द्रौपदी ने दुर्योधन को कहा था-‘अंधे का पुत्र अंधा’ उसके बाद द्रौपदी के साथ क्या-क्या घटित हुआ, सभी जानते हैं। अत: कम बोलो। बिन मांगे किसी को भी सलाह न दें। अपने काम से काम रखें। किसी से भी बहस न करें। इससे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। बहस में जीतने पर आपका अहंकार बढ़ेगा और सामने वाला आहत होगा, जिससे दोस्तों में दरार पड़ेगी।

दूसरों को अपनी बात पर अड़ा रहने दीजिए। संसार में ऐसे मूर्खों की कमी नहीं है, जो किसी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं है, उनसे बहस करके अपनी शक्ति एवं समय का दुरुपयोग न करें। यही तनावरहित जीवन जीने की कला है।

Niyati Bhandari

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