कैसे तबाह हुआ श्रीलंका? पीएम मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए समझाई सारी 'शॉर्टकट' राजनीति

Tuesday, Jul 12, 2022 - 06:10 PM (IST)

नेशनल डेस्कः श्रीलंका अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। इतिहास में पहली बार श्रीलंका को दिवालिया घोषित किया गया है। लोगों के पास सामान खरीदने के लिए पैसे नहीं है और वस्तुएं इतनी महंगी हो चुकी हैं कि जनता की पहुंच से दूर होती जा रही हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इसी से सबक लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को देवघर में शॉर्टकट राजनीति पर जोरदार प्रहार किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना नाम लिए विपक्ष पर निशाना साधा है। पीएम मोदी मोदी ने देवघर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक ओर ऐसी चुनौती आ खड़ी हुई है। ये चुनौती है। शॉर्टकट की राजनीति। बहुत आसान होता है लोकलुभावन वादे करके शॉर्टकर्ट अपनाकर लोगों से वोट बटोर लेना। शॉर्टकट अपनाने वालों को न ही मेहनत करनी पड़ती है और न ही उन्हें दूरगामी परिणामों के बारे में सोचना पड़ता है। उन्होंने कहा कि ये भी सच्चाई है कि जिस देश की राजनीति शॉर्टकट पर आधारित हो जाती है। उस देश का एक न एक दिन शॉर्टसर्किट हो ही जाता है। उन्होंने कहा कि शॉर्टकट की राजनीति भारत को तबाह कर देती है। भारत में हमें ऐसी शॉर्टकट अपनाने वाली राजनीति से दूर रहना चाहिए।

क्या है शॉर्टकट
देश में राजनीतिक पार्टियां सत्ता पाने के लिए हर तरीके के हथकंडे अपनाती हैं। चुनावों में जनता को लोकलुभावन वादे करके वोट बटोरने का काम किया जाता है। जैसे फ्री राशन, फ्री बिजली, फ्री सिलेंडर, फ्री पेट्रोल, बस का किराया माफ, महिलाओं को घर बैठे 1000 रुपए मासिक, बेरोजगार युवाओं को 5000 रुपए प्रति महीने आदि सब लोकलुभावन वादे हैं, जो राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए जनता से करती हैं।

क्या होता है असर
राजनीतिक पार्टियां चुनावों के दौरान लोकलुभावन वादे तो कर देती हैं लेकिन जब वह सत्ता में आ जाती हैं तो उनको पूरा करने के लिए उनके पास बजट की कमी होती है। जब किसी राज्य के पास चुनावी वादों को पूरा करने के लिए बजट नहीं होता है तो वह बाजार से कर्ज लेकर जनता से किए वादे पूरे करती हैं और कर्ज सरकार के राजकोषीय घाटे में चला जाता है। इससे सरकार पर कर्ज बढ़ता चला जाता है और राज्य पिछड़ता चला है।

अभी नहीं संभले तो हो जाएंगे श्रीलंका जैसे हालात- आरबीआई रिपोर्ट
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले महीने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि देश के पांच राज्यों की वित्तीय हालात बहुत खराब है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रत्यक्ष रूप से राजस्थान सहित देश के पांच राज्यों पंजाब, बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल को वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए चेताया है। ऋणगस्त राज्यों को पड़ोसी श्रीलंका में हालिया आर्थिक संकट को ध्यान में रखना चाहिए। श्रीलंका में भी आर्थिक स्थिति बिगड़ने का कारण हालात बिगड़े थे।

क्या हैं राज्यों के हालात
कर्जदार राज्यों में पंजाब पर सबसे ज्यादा प्रभावित रहने की संभावना है। इसका ऋण से सकल राज्य घरेलू उत्पाद अनुपात 2026- 27 में 45% से अधिक होने का अनुमान है। राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल में उस समय तक ऋण जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) अनुपात 35% से अधिक होने का अनुमान है। राज्यों के कर राजस्व में मंदी, प्रतिबद्ध व्यय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा और सब्सिडी के बढ़ते बोझ ने, राज्य सरकार के वित्त को बढ़ाया है, जो पहले से ही कोविड से तनावग्रस्त है। ‘गैर-मेरिट फ्रीबीज’ पर बढ़ते खर्च, आकस्मिक देनदारियों के विस्तार और डिस्कॉम के बढ़ते अतिदेय के रूप में जोखिम के नए स्रोत सामने आए हैं। 

श्रीलंका को ले डूबा कर्ज वाला विकास
इसके चलते श्रीलंका में 16 लाख लोग गरीबी से बाहर निकले, जो वहां की आबादी का 8.5 फीसदी हिस्सा थे। इससे देश में मिडिल क्लास की एक बड़ी आबादी तैयार हुई। 2019 में तो श्रीलंका वर्ल्ड बैंक की रैंकिंग में अपर मिडिल-इनकम वाले देशों की सूची में शामिल हो गया। हालांकि उसके पास यह ताज सिर्फ एक साल ही रहा क्योंकि यह ग्रोथ कर्ज की कीमत पर हासिल की गई थी। 2006 से 2012 के दौरान श्रीलंका का कर्ज तीन गुना बढ़ते हुए जीडीपी के 119 फीसदी के बराबर हो गया। इन नीतियों पर 2015 में लगाम लगाई गई। इससे अर्थव्यवस्था में ऊपरी तौर पर स्थिरता भले ही नजर आई, लेकिन कर्ज बढ़ता ही रहा। इसकी वजह यह थी कि इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए श्रीलंका ने बड़े पैमाने पर ऊंची ब्याज दर वाले कर्ज का सहारा लिया था।

यूक्रेन युद्ध ने संकट की आग में डाल दिया घी
इस संकट से निपटने के लिए श्रीलंका सरकार को अर्थशास्त्रियों ने सलाह दी थी कि वह अंतरराष्ट्रीय सहायता हासिल करे, लेकिन उसने ऐसा करने की बजाय चीन जैसे पड़ोसी देशों से कर्ज ले लिया। दूसरी तरफ केंद्रीय बैंक ने रुपये की कीमत को घटाया और आयात पर रोक लगा दी। इससे श्रीलंका ऐसे दलदल में फंस गया, जिससे पैर निकालना उसके लिए मुश्किल हो चला। किसी तरह श्रीलंका में मुश्किल भरे दिन गुजर ही रहे थे कि फरवरी के आखिरी सप्ताह में रूस ने यूक्रेन पर अटैक कर दिया। इसके चलते श्रीलंका का पर्यटन भी प्रभावित हुआ। इसकी वजह यह थी कि यूक्रेन और रूस से बड़ी संख्या में यात्री आते थे। यही नहीं तेल, गेहूं और अन्य जरूरी चीजों के दामों में भी आग लग गई। 

Yaspal

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