तीन तलाक पर कब-कब कोर्ट ने क्या कहा? जानिए पूरा घटनाक्रम

punjabkesari.in Tuesday, Aug 22, 2017 - 04:18 PM (IST)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज एक एेतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुस्लिमों में तीन तलाक के जरिए दिए जाने वाले तलाक की प्रथा अमान्य अवैध और असंवैधानिक है।  शीर्ष अदालत ने 3:2 के मत से सुनाए गए फैसले में तीन तलाक को कुरान के मूल तत्व के खिलाफ बताया। आईए हम आपको बताते हैं तीन तलाक के मामले की सुनवाई का पूरा घटनाक्रम।

 16 अक्तूबर 2015: उच्चतम न्यायालय की पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार से संबधित एक मामले की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश से उचित पीठ का गठन करने के लिए कहा ताकि यह पता लगाया जा सकें कि क्या तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाएं लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं।  

पांच फरवरी 2016: उच्चतम न्यायालय ने तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से तीन तलाक निकाह हलाला और बहुविवाह की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत की मदद करने के लिए कहा।  

28 मार्च: उच्चतम न्यायालय ने महिलाओं और कानून: शादी, तलाक, संरक्षण, वारिस और उत्तराधिकार से संबंधित कानूनों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ पारिवारिक कानूनों के आकलन पर उच्च स्तरीय पैनल की रिपोर्ट दायर करने के लिए केंद्र से कहा।  उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) समेत विभिन्न संगठनों को पक्षकार बनाया।  

29 जून: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम समाज में तीन तलाक को संवैधानिक रूपरेखा की कसौटी पर परखा जाएगा।  

07 अक्तूबर: भारत के संवैधानिक इतिहास में पहली बार केंद्र ने उच्चतम न्यायालय में इन प्रथाओं का विरोध किया और लैंगिक समानता तथा धर्मनिरपेक्षता जैसे आधार पर इस पर विचार करने का अनुरोध किया।  

14 फरवरी 2017: उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न याचिकाओं पर मुख्य मामले के साथ सुनवाई करने की अनुमति दी।  

16 फरवरी: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तीन तलाक निकाह हलाला और बहुविवाह को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी और फैसला देगी।  

27 मार्च: एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि ये मुद्दे न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार के बाहर है इसलिए ये याचिकाएं विचार योग्य नहीं हैं।  

30 मार्च: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हैं और इनमें भावनाएं जुड़ी हुई है और संविधान पीठ 11 मई से इन पर सुनवाई शुरू करेगी।  

11 मई: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या मुस्लिमों में तीन तलाक की प्रथा उनके धर्म का मूल सिद्धान्त है।  

12 मई: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तीन तलाक की प्रथा मुस्लिमों में शादी तोडऩे का सबसे खराब और गैर जरुरी तरीका है।  

15 मई: केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि अगर तीन तलाक खत्म हो जाता है तो वह मुस्लिम समुदाय में शादी और तलाक के लिए नया कानून लेकर आएगा।  शीर्ष अदालत ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत यह देखेगा कि क्या तीन तलाक धर्म का मुख्य हिस्सा है।  

16 मई: एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि आस्था के मामले संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखे जा सकते। उसने कहा कि तीन तलाक पिछले 1,400 वर्षों से आस्था का मामला है। तीन तलाक के मुद्दे को इस आस्था के बराबर बताया कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था।  

17 मई: उच्चतम न्यायालय ने एआईएमपीएलबी से पूछा कि क्या एक महिला को निकाहनामा  के समय तीन तलाक को ना कहने का विकल्प दिया जा सकता है। केंद्र ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि तीन तलाक ना तो इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है और ना ही यह अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का मामला है बल्कि यह मुस्लिम पुरुषों और वंचित महिलाओं के बीच अंतर सामुदायिक संघर्ष का मामला है।  

18 मई: उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक पर फैसला सुरक्षित रखा।  

22 मई: एआईएमपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर करते हुए कहा कि वह दूल्हों को यह बताने के लिए काजयिों को एक परामर्श जारी करेगा कि वे अपनी शादी तोडऩे के लिए तीन तलाक का रास्ता ना अपनाए। एआईएलपीएलबी ने उच्चतम न्यायालय में विवाहित दंपतियों के लिए दिशा निर्देश रखे। इनमें तीन तलाक देने वाले मुस्लिमों का सामाजिक बहिष्कार करना और वैवाहिक विवादों को हल करने के लिए एक मध्यस्थ नियुक्त करना भी शामिल था।  

22 अगस्त: उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ दो के मुकाबले तीन के बहुमत से फैसला दिया कि तीन तलाक के जरिए तलाक देना अमान्य, गैरकानूनी और असंवैधानिक है और यह कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।  
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News