मामला बेवफाई का नहीं, महिलाओं की बराबरी का है

Saturday, Sep 29, 2018 - 10:57 AM (IST)

नई दिल्ली (विशेष): सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के ऊपर फैसला सुनाते हुए इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिसका मतलब है कि विवाहेत्तर संबंध अब अपराध नहीं रह गया। इस मामले पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि पति अपनी पत्नी का मालिक नहीं है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में कई टिप्पणी की है, जो महिलाओं की स्वतंत्रता और उसके व्यक्तिगत अधिकार को सुरक्षित करने से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट के पास गया यह मामला किसी की बेवफाई से जुड़ा नहीं, बल्कि औरतों को बराबरी का अधिकार देने का था। आईपीसी की धारा 497 में कहा गया था कि अगर महिला अपने पति की सहमति के बगैर किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध बनाती है, तो इसे व्यभिचार माना जाएगा। इसमें महिला को अपने पति की इच्छा के अधीन बताया गया था, जबकि पुरुष के लिए ऐसा नहीं है। महिला और पुरुष के बीच की असमानता को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को असंवैधानिक बताकर इसे खारिज कर दिया। 

क्या है मामला
आईपीसी की धारा 497 के तहत विवाहेत्तर संबंध को अपराध माना गया था। हालांकि, इस अपराध के लिए सजा केवल पुरुषों को दी जाती थी। अगर कोई विवाहित महिला अपने पति के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के साथ संबंध बनाती है, तो इसकी शिकायत करने पर उस पुरुष को पांच साल तक की सजा और जुर्माना या दोनों हो सकता था। इसी तरह अगर किसी पुरुष के खिलाफ किसी दूसरी महिला के साथ संबंध के लिए उसकी पत्नी मामला दायर करती है, तो उसके लिए भी पुरुष को सजा का प्रावधान था। 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद की स्थिति 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक बताकर इसे खारिज कर दिया, जिसके बाद विवाहेत्तर संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया। इसका मतलब है कि विवाहेत्तर संबंध के लिए किसी को सजा नहीं दी जाएगी। 

बना रहेगा तलाक का आधार 
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विवाहेत्तर संबंध अब अपराध नहीं रहा लेकिन अभी भी इसे शादी को तोड़ने का आधार बनाया जा सकता है। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाहेत्तर संबंध को विवाह विच्छेद के लिए आधार बनाया जा सकता है, जिसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने कोई छेड़छाड़ नहीं की है और अभी भी ऐसे संबंधों के आधार पर कोई दंपत्ति तलाक लेने के लिए अपील कर सकता है। 

सिलसिला फिल्म से समझें मामला 
अगर आईपीसी 497 लागू होता 

  •  चांदनी के साथ संबंध रखने के लिए अमित के खिलाफ मामला दायर किया जा सकता था, क्योंकि चांदनी के पति आनंद ने इसके लिए सहमति नहीं दी थी। 
  •  अगर अमित दोषी पाया जाता, तो उसे इसके लिए पांच साल की सजा और जुर्माना हो सकता था। 
  •  चांदनी को इसके लिए सजा नहीं दी जा सकती थी, क्योंकि पत्नी के लिए सजा का कोई प्रावधान नहीं था। 


अगर सीआरपीसी सेक्शन 198 (2) लागू होता....

  •  पीड़ित शोभा कभी अपने पति या चांदनी के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकती थी। आनंद भी अपनी पत्नी चांदनी के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकता था। 
  •  अपने पति के खिलाफ शिकायत करने के लिए शोभा को चांदनी के पति आनंद से अनुरोध करना होता, क्योंकि वो अपने पति के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकती थी। 
  • अगर चांदनी अविवाहित होती, तो अमित के खिलाफ विवाहेत्तर संबंध का कोई मामला नहीं बनता।   
     

क्या नहीं बदला है

  • हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शोभा तलाक की अपील कर सकती थी।   
  • शोभा अब भी ऐसा कर सकती है। 
  • आनंद भी अपनी पत्नी से तलाक के लिए अपील कर सकता था। 
  • आनंद अब भी ऐसा कर सकता है। 


सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या बदला
सुप्रीम के फैसले के बाद अब अमित के खिलाफ आनंद किसी भी तरह की शिकायत नहीं कर सकता है। चांदनी की सहमति होने पर अमित सुरक्षित है। 

Anil dev

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