धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुन रो पड़े लोग, जानें जजों ने क्या-क्या कहा
punjabkesari.in Thursday, Sep 06, 2018 - 03:56 PM (IST)
नेशनल डेस्कः आईपीसी की धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद वहां मौजूद तमाम लोग भावुक हो गए और कुछ तो रोने भी लग गए। कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है कियोंकि यह दो बालिगों की सहमति से बने हैं। कोर्ट ने अपने इस फैसले के साथ ही दिसंबर 2013 को सुनाए गए अपने ही फैसले को पलट दिया है।
सीजेआई दीपक मिश्रा, के साथ जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने 10 जुलाई को मामले की सुनवाई शुरु की थी और 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसपर आज फैसला सुनाया गया। मोदी सरकार ने पहले ही कहा दिया था कि सुप्रीम कोर्ट अपने विवेक से इस पर फैसला दे। केंद्र ने इस मामले से खुद को अलग कर दिया था।
जानें क्या-क्या बोले जज
- न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन, न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने एकमत वाले फैसले अलग-अलग लिखे।
- दीपक मिश्रा ने अपनी और न्यायाधीश ए एम खानविलकर ओर से कहा कि खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाना मरने के समान है।
- अदालतों को व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी गई है।
- पशुओं के साथ किसी तरह की यौन क्रिया भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध बनी रहेगी।
- पशुओं और बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन क्रिया से संबंधित धारा 377 का हिस्सा पूर्ववर्त लागू रहेगा।
- जो सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बताता है, तर्कहीन, बचाव नहीं करने वाला और मनमाना है।
- व्यक्तिगत पसंद को इजाजत दी जानी चाहिए।
- एलजीबीटीक्यू समुदाय को अधिकार देने से इंकार करने और डर के साथ जीवन जीने के लिए बाध्य करने पर इतिहास को इस समुदाय से माफी मांगनी चाहिए : न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा
- धारा 377 के कारण एलजीबीटी सदस्य छुप कर और दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में रहने को विवश थे जबकि अन्य लोग यौन पसंद के अधिकार का आनंद लेते हैं।
- संविधान समाज के सेफ्टी वाल्व के रूप में असहमति का पोषण करता है, हम इतिहास नहीं बदल सकते लेकिन बेहतर भविष्य के लिए राह प्रशस्त कर सकते हैं।
- न्यायमूर्ति चंदचूड़ ने कहा, एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को अन्य नागरिकों की तरह संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं।
- जहां तक किसी निजी स्थान पर आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का सवाल है तो ना यह हानिकारक है और ना ही समाज के लिए संक्रामक है।
- सरकार, मीडिया को उच्चतम न्यायलय के फैसले का व्यापक प्रचार करना चाहिए ताकि एलजीबीटीक्यू समुदाय को भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े : न्यायमूर्ति नरीमन
- यौन रुझान को जैविक स्थिति बताते हुए कहा कि इस आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।