सबरीमाला मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बंटे विशेषज्ञ

Thursday, Nov 08, 2018 - 09:05 PM (IST)

नई दिल्लीः सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने वाले उच्चतम न्यायालय के आदेश के कथित उल्लंघन पर विधि विशेषज्ञों ने अलग-अलग राय जाहिर की। कुछ ने ‘अधिक धैर्य’ रखने का सुझाव दिया जबकि अन्य ने आदेश का पालन नहीं होने का ठीकरा केंद्र पर फोड़ा। गत 28 सितंबर को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4: 1 के बहुमत के फैसले में केरल के सबरीमला स्थित अयप्पा मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश देने का रास्ता साफ कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि 10 से 50 आयुवर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाली परंपरा लैंगिक भेदभाव के समान है।



पहाड़ी पर स्थित मंदिर में 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश देने के न्यायालय के आदेश के पक्ष और विपक्ष में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिला है। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संविधान विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी और राजीव धवन की राय है कि यद्यपि नागरिक कमोबेश शीर्ष अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन सबरीमला मामले जैसे विवादास्पद मुद्दों पर फैसले को लागू करने में अधिक धैर्य की आवश्यकता है। द्विवेदी ने कहा, ‘‘इन मामलों में लोगों के निहित स्वार्थ की वजह से अधिक धैर्य की आवश्यकता है। आपको इसका (फैसले का) उल्लंघन हो रहा है, इस निष्कर्ष पर पहुंचने की जगह अधिक वक्त देना चाहिये। इसके लिये और समय की आवश्यकता है। इन मामलों में बदलाव धीरे-धीरे होगा।’’



इसी तरह की राय जाहिर करते हुए धवन ने कहा कि यद्यपि सबरीमला ‘बेहद विवादास्पद मुद्दा’ है, लेकिन शीर्ष अदालत के फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए। अमेरिकी अदालत के फैसले का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘इन चीजों से बलपूर्वक नहीं निपटा जा सकता और मुद्दा लोगों के दिमाग में घूमना चाहिये।’’



दूसरी तरफ वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सदस्य के टी एस तुलसी ने सबरीमला फैसले के लागू नहीं होने के लिये केंद्र सरकार पर दोषारोपण किया। उन्होंने कहा, ‘‘यह बेहद दुखद है कि सत्तारूढ़ पार्टी खुद ही उच्चतम न्यायालय के फैसले का विरोध करने के लिये भीड़ बुला रही है। यह संविधान के उल्लंघन सरीखा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे विचार में इतनी ढिठाई से ऐसा पहले कभी नहीं किया गया। दिल्ली में भाजपा कहती है कि वह फैसले का पालन करेगी और केरल में यह भीड़ को बुलाती है, जो उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू किये जाने का विरोध कर रही है। यह बेहद दुखद घटनाक्रम है।’’


एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत सिन्हा ने कहा कि ‘‘जब जनांदोलन हो रहा हो’’ तो फैसले को लागू करना कठिन हो जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘दूसरी तरफ अधिकारियों की तरफ से भी ढिलाई है। इसे लागू वैसे लोगों को करना है जो जमीन पर हैं। उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दे दिया है, लेकिन जब तक लोग नहीं समझते कि इसे लागू करना उनका काम है, तब तक यह नहीं किया जा सकता।’’

Yaspal

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