शिक्षा पर पड़ी कोरोना की मार! लॉकडाउन में इतनी फीसदी लड़कियों की छूटी पढ़ाई
punjabkesari.in Wednesday, Mar 02, 2022 - 04:22 PM (IST)
नेशनल डेस्क: कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान 67 प्रतिशत लड़कियां पढ़ाई से वंचित रहीं, 67 प्रतिशत को स्वास्थ्य एवं पोषण सेवायें नहीं मिल सकीं और 56 प्रतिशत घरों में बंद होकर रह गयीं। एक अध्ययन के अनुसार बदली हुई परिस्थितियों में ज्यादातर माताओं ने स्वीकार किया कि कोविड-19 के कारण लड़कों के मुकाबले लड़कियों की शादी जल्दी किए जाने की संभावना अधिक हो गयी है।
सामाजिक संस्था ‘सेव द चिल्ड्रन' की शहरी झुग्गियों में रहने वाली लड़कियों पर कोविड-19 के प्रभाव पर एक रिपोर्ट ‘स्पॉटलाइट ऑन एडोलेसेंट गर्ल्स एमिड कोविड-19: सेव द चिल्ड्रन विंग्स 2022' में खुलासा हुआ कि शहरी झुग्गियों में अधिकतर किशोरियां-लड़कियां महामारी के दौरान लड़कों की तुलना में मूलभूत स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं से वंचित रहीं। 68 प्रतिशत किशोरियों-लड़कियों को स्वास्थ्य और पोषण की सेवाएं प्राप्त करने में चुनौतियां आईं।
इसके अलावा आर्थिक तनाव और घरेलू परिस्थितियों के कारण 67 प्रतिशत लड़कियां लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में उपस्थित नहीं रहीं। अध्ययन के अनुसार 56 प्रतिशत लड़कियों को लॉकडाउन के दौरान ‘आउटडोर खेल' एवं ‘रिक्रिएशन' के लिए समय नहीं मिला। वे ज्यादातर समय घरों में बंद रहीं। अध्ययन में शामिल आधी से ज्यादा माताओं ने स्वीकार किया कि कोरोना महामारी के कारण आर्थिक दबाव बढ़ गया है और कोविड-19 के कारण लड़कों के मुकाबले लड़कियों की शादी जल्दी किए जाने की संभावना ज्यादा है। इस रिपोर्ट में देश में महामारी के कारण लगे लॉकडाऊन के दौरान और उसके बाद लड़कियों की स्थिति का विश्लेषण किया है।
इस अध्ययन में उनकी असुरक्षा के संपूर्ण संदर्भ में होने वाले परिवर्तनों पर केंद्रित रहते हुए स्वास्थ्य, शिक्षा, एवं खेल और मनोरंजन के अवसरों में आई रुकावटों का खुलासा किया गया। इसमें स्वास्थ्य और पोषण की बढ़ती असुरक्षाओं, पढ़ाई के अवसरों में आई अचानक गिरावट, जल्दी शादी करने का दबाव, खेल और मनोरंजन की सीमित सुविधाओं के साथ परिवारों के व्यवहारों को समझना शामिल है। प्रभावशाली और विस्तृत परिवर्तन लाने के उद्देश्य से यह अध्ययन चार राज्यों-दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और तेलंगाना में किया गया। ये देश के चार भौगोलिक क्षेत्रों पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण का प्रतिनिधित्व करते हैं। अध्ययन में दिल्ली के संदर्भ में कहा गया है कि सबसे बड़ा प्रभाव बालिकाओं के पोषण सूचकांक पर पड़ा। दिल्ली में पाँच में से चार परिवार (79 प्रतिशत) भोजन की अपर्याप्तता से पीड़ति रहे।
तीन में से दो माताओं (63 प्रतिशत) ने बताया कि उनकी किशोरियों-बच्चियों को लॉकडाउन की अवधि में सैनिटरी नैपकिन मिलने में मुश्किलें आईं। दस में से नौ किशोरियों-लड़कियों (93 प्रतिशत) ने बताया कि उन्हें कोई स्वास्थ्य और पोषण सेवा नहीं मिल पाई। दो किशोरियों-लड़कियों में से एक (45 प्रतिशत) को महामारी के दौरान यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों की जानकारी नहीं मिल पाई। स्कूलों के बंद होने से अध्ययन की निरंतरता में बड़ी बाधा आई। दस माताओं में से नौ (89 प्रतिशत) ने बताया कि महामारी ने उनकी बेटी की पढ़ाई पर बहुत बुरा असर डाला। माताओं के अनुसार महामारी के दौरान स्कूल बंद हो जाने के बाद पाँच में से एक लड़की (20 प्रतिशत) को स्कूल ने संपर्क नहीं किया।