Krishna Janmashtami: रात 12 बजे ये करने से होगी अक्षय पुण्य की प्राप्ति

Friday, Aug 23, 2019 - 07:45 AM (IST)

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भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन जगतगुरु भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। कृष्ण भक्त इस दिन निर्जल-निराहार व्रत करते हैं। रात को 12 बजे श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। भक्त उनको स्नान करवाया गया या भोग लगाया चरणामृत ग्रहण करके अपना व्रत खोलते हैं। अगर प्रभु कृपा से हमारे पास शालिग्राम भगवान हैं तो चरणामृत जो बनता है वह नव वस्तुओं के एकत्रित होने से बनता है। शालिग्राम उसमें प्रधान हैं। भगवान नारायण ने एक क्षेत्र विशेष में विशेष प्रकार की लीला की, जिसको भगवान नारायण क्षेत्र कहते हैं। उस क्षेत्र में जितने भी पत्थर हैं वह सब शालिग्राम स्वरूप होते हैं। शालिग्राम भगवान बिना प्रतिष्ठा के और दूसरे भगवान के विग्रह होंगे तो उनमें प्राण-प्रतिष्ठा करानी पड़ती है, तब भगवान का उसमें दर्शन लाभ मिल सकता है परन्तु शालिग्राम में बिना प्रतिष्ठा किए हुए भी प्रत्यक्ष भगवान का स्वरूप माना जाता है। जैसे नर्मदा नदी के पत्थर सब शंकर हैं, उनमें प्राण प्रतिष्ठा की कोई आवश्यकता नहीं है।

चरणामृत में प्रधान शालिग्राम हैं, उनको स्नान कराने के लिए तांबे का पात्र रखना चाहिए। उसमें यंत्र बनाना चाहिए। यंत्र के मध्य में तुलसी रखकर उसके ऊपर शालिग्राम भगवान के साथ गोमती चक्र (गोमती द्वारिका में एक पीला पत्थर मिलता है जो चक्रान्तिक होता है-वह गोमती चक्र है) रखना चाहिए। उसके बाद अर्घ्य के द्वारा (शंख जो अर्घ्य जल चढ़ाने के लिए होता है) उस शंख के द्वारा जल से भगवान को स्नान कराया जाए। स्नान कराते समय गरुड़ घंटी का नाद पुरुसूक्त के वचन होने चाहिएं। इस प्रकार से चरणामृत तैयार होता है। वह चरणामृत जो अकाल मृत्यु को हरण करने वाला है, सब व्याधियों को दूर करने वाला है उसका सेवन करने से समस्त विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं।

गंगा जल के द्वारा भगवान को पुन: स्नान कराया जाए तो ज्यादा अच्छा है दूसरे जलों की अपेक्षा गंगा जल से भगवान को अभिशिक्त करके चरणोदक के रूप में पिया जाए तो बहुत उत्तम है। आप पाएंगे कि आपकी बुद्धि पवित्र होती जा रही है। अंदर से सब समाधान अपने आप होने लगेंगे। प्रभु कृपा से आपको आत्मबल व शक्ति मिलेगी, जिससे आप सत मार्ग पर चलेंगे। इसी में सबका कल्याण है।

चरणामृत बनाने की सामग्री-
दूध- 500 ग्राम 
दही- एक कप
तुलसी के पत्ते- 4 
शहद- 1 चम्मच 
गंगाजल- 1 चम्मच 
पिसी हुई चीनी-100 ग्राम 
चिरौंजी- एक चम्मच 
मखाने- 2 चम्मच 
घी- 1 चम्मच    

इस विधि से बनाएं चरणामृत- 
वैसे तो इस सामग्री से शालीग्राम अथवा लड्डू गोपाल को स्नान करवाना चाहिए। यदि आपके लिए ऐसा करना संभव न हो तो तन और मन से पवित्र भाव रखते हुए हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। महामंत्र का जाप करें। शुद्ध पात्र में ऊपर लिखी सामग्री को मिक्स करके किसी भी मंदिर में बाल गोपाल को भोग लगाकर बांट दें और स्वयं भी ग्रहण करें। 

शास्त्र कहते हैं जो व्यक्ति हर रोज़ भगवान का चरणोदक यानी चरणामृत पीता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। ‘अकाल मृत्यु हरणं, सर्वव्याधि विनाशकं’। जो अकाल मृत्यु को हरण करने वाला हो,  सब आधि-व्याधियों से मुक्त करने वाला है, ऐसा जो भगवान का चरणोदक है उसको सब कहते हैं चरणामृत। वह अमृत है, वह हमको अमृत्व की ओर ले जाने वाला है। हम हैं तो वास्तव में आत्मस्वरूप से अमृत ही, परन्तु मृत्यु को प्राप्त होने वाले इस शरीर के साथ इतने अधिक जुड़ गए, उसके साथ इतना अधिक आत्मिक रिश्ता बना लिया है कि जिसके कारण शरीर के जन्म-मृत्यु को हम अपना जन्म-मरण मानने लग गए।

अकाल मृत्यु को हरण करने वाला जो चरणामृत है वह हमको समझ देता है, बुद्धि देता है, जिससे हम अपने आत्म स्वरूप की ओर पहुंचते हैं। अपने स्वरूप को पहचानते हैं और फिर जब हम स्वरूप को पहचानते हैं तो हम जानते हैं कि हम उस अविनाशी परम पुरुष परमात्मा के शुद्ध अंश हैं। जिस प्रकार परमात्मा सत चित आनंदमय है, उसी प्रकार हम भी सत चित आनंदमय हैं। हमारा स्वभाव दुख का नहीं है। हम आनंद स्वरूप हैं, हम मरने वाले नहीं हैं। हम शुद्ध ज्ञान स्वरूप हैं।

Niyati Bhandari

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