जवान के पिता का दर्द- कब तक हमारे बेटे शहीद होते रहेंगे

Tuesday, Apr 25, 2017 - 02:28 PM (IST)

पटना: नक्सली हमले में शहीद दरभंगा के जवान नरेश यादव इसी साल 10 जनवरी को लंबी छुट्टी बिताने के बाद छत्तीसगढ़ के सुकमा लौटे थे। 45 वर्षीय नरेश हेड कांस्टेबल के पद पर सीआरपीएफ की 74 बटालियन में तैनात थे। 2 दिन पहले नरेश यादव ने अपनी पत्नी रीता देवी से भी बात की थी और बड़े बेटे को अच्छे कालेज में दाखिला कैसे मिले इसको लेकर चर्चा की थी। नरेश यादव वर्ष 1994 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में शामिल हुए थे।

पत्नी से किया था जल्द आने का वादा
नरेश ने अपनी पत्नी से वादा किया था कि वह बहुत जल्द अपने गांव वापस आएंगे मगर जिस तरीके से वह वापस आ रहे हैं उसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। वो बिहार के उन 6 जांबाजो में से एक हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सली हमले में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। नरेश अपने पीछे ने बुजुर्ग मां-बाप, बीवी और 3 बच्चे छोड़ गए हैं।  नरेश के पिता राम नारायण यादव केंद्र सरकार से काफी नाराज हैं और सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर कब तक माओवादियों के आगे देश के जवान शहीद होते रहेंगे? नरेश के पिता ने मांग की है कि माओवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए और उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया जाए।

नक्सली हमले में बिहार के 6 जवान हुए शहीद
नरेश की तरह, बिहार का एक और सपूत कांस्टेबल कृष्ण कुमार पांडेय भी सुकमा नक्सली हमले में शहीद हो गए। रोहतास जिले के भरनदुआ गांव के निवासी कृष्ण कुमार पांडे इसी साल होली की छुट्टियों में घर आए थे और होली मनाने के बाद वापस सुकमा लौट गए थे। कृष्ण कुमार अपने पीछे पत्नी, एक बुजुर्ग मां और अपनी 7 महीने की बेटी छोड़ गए हैं। नरेश यादव और कृष्ण कुमार पांडे की तरह बिहार के 4 और जांबाज पटना निवासी कांस्टेबल सौरव कुमार, वैशाली जिला निवासी कांस्टेबल अभय कुमार, शेखपुरा जिला निवासी कांस्टेबल रंजीत कुमार और भोजपुर जिला निवासी अभय मिश्रा ने भी छत्तीसगढ़ के नक्सली हमले में शहादत हासिल की है।

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